डिजिटल अरेस्ट, शेयर में मुनाफे का लालच और पलक झपकते खाता साफ… !
डिजिटल अरेस्ट, शेयर में मुनाफे का लालच और पलक झपकते खाता साफ…, हांगकांग, थाईलैंड में हैं अपराधी
ईडी ने यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के तहत की। बंगलूरू की विशेष धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) कोर्ट के समक्ष दायर आरोपपत्र में आरोपियों पर धोखाधड़ी वाले एप्स के जरिये से फर्जी आईपीओ आवंटन और शेयर बाजार में निवेश के जरिये आम लोगों को ठगने का आरोप है। जांच में पता चला कि देश में साइबर घोटालों का एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है। इसमें फर्जी शेयर बाजार निवेश और डिजिटल गिरफ्तारी करने जैसे साजिशें शामिल हैं। इन गतिविधियों को मुख्य रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से अंजाम दिया जाता है।
ईडी ने 17 ठिकानों पर छापा मारकर कई मोबाइल फोन, चेकबुक, कंपनी स्टांप, डेबिट कार्ड और अन्य डिजिटल उपकरण जब्त किए थे। साथ ही ईडी ने आरोपियों की कंपनी साइबरफॉरेस्ट टेक्नोलॉजीज प्रा.लि. के बैंक खाते में जमा 2.81 करोड़ की जमा राशि को भी फ्रीज किया था।
आई4सी ने फिर जारी किए दिशा-निर्देश
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) ने एक बार फिर दिशा-निर्देश जारी कर लोगों से डिजिटल गिरफ्तारी से सावधान रहने की अपील की है। (आई4सी) ने कहा कि वीडियो कॉल करने वाले लोग पुलिस, सीबीआई, सीमा शुल्क अधिकारी या न्यायाधीश नहीं हैं। ये लोग साइबर अपराधी होते हैं। एडवाइजरी में लोगों ने इनकी चालबाजी में न फंसने और राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन पर कॉल कर या साइबर अपराध की शिकायत के लिए आधिकारिक पोर्टल पर तुरंत शिकायत दर्ज कराने को कहा गया है।
कई एफआईआर पर दर्ज हुआ मनी लॉड्रिंग का मामला
ईडी ने बताया कि उसने कई पुलिस एफआईआर का अध्ययन करने के बाद मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया और आठ लोगों को गिरफ्तार किया। इन सभी आठों का नाम 10 अक्तूबर को दायर आरोपपत्र में भी है। आरोपपत्र में चरण राज सी, किरण एसके, शाही कुमार एम, सचिन एम, तमिलरासन, प्रकाश आर, अजीत आर, अरविंदन और 24 फर्जी कंपनियों का नाम है। ये आठों अपराधी न्यायिक हिरासत में हैं। ईडी ने बताया कि यह साइबर अपराध मामला 159 करोड़ रुपये का है। कोर्ट ने 29 अक्तूबर को ईडी के आरोपपत्र का संज्ञान लिया। ईडी ने बताया कि उसके पास चेकबुक, पासबुक और संचार रिकॉर्ड जैसे ‘अपराध’ साक्ष्य हैं, जो बताते हैं कि ये लोग एक ऐसे गिरोह में शामिल थे।
सैकड़ों सिम कार्ड, फर्जी बैंक अकाउंट का चला पता.
जांच में पता चला कि आरोपियों ने पीड़ितों को फंसाने और अवैध आय को सफेद करने के लिए भी पुख्ता योजना तैयार की थी। जालसाजों ने सैकड़ों सिम कार्ड जुटाए थे। इनका इस्तेमाल फर्जी कंपनियों के बैक खातों का संचलान और व्हाट्एस अकाउंट बनाने के लिए किया गया। इन सिम कार्ड के जरिये आरोपियों ने अपनी असल पहचान भी छिपाई। साथ ही आरोपियों के लिए पीड़ितों को धोखा देना भी आसान रहता है और पकड़े जाने का जोखिम भी कम रहता है।
सीबीआई बनकर भी लोगों को फंसाया
ईडी ने बताया कि ठगों ने लोगों को फंसाने व ठगने के लिए डिजिटल गिरफ्तारी का सहारा लिया। नेटवर्क के कुछ सदस्य खुद को सीमा शुल्क, सीबीआई समेत अन्य केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारियों के रूप में पेश करते थे। वे पीड़ितों को विभिन्न अपराधों में उनके शामिल होने का भय दिखाते थे और पीड़ितों को अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उन्हें देने के लिए मजबूर करते थे।
अवैध धन को वैध बनाने को बनाईं 24 फर्जी कंपनियां
आरोपियों ने साइबर अपराधों से मिली रकम को हासिल करने और उसे वैध बनाने के लिए तमिलनाडु, कर्नाटक समेत कुछ अन्य राज्यों में 24 फर्जी कंपनियां भी बनाईं। ये फर्जी कंपनियां मुख्य रूप से सहकार्य स्थलों (जहां कोई वास्तविक व्यावसायिक उपस्थिति नहीं है) के पते पर पंजीकृत हैं।
मुंबई सतर्कता के बावजूद कारोबारी से ठगे पांच करोड़
मुंबई के एक व्यवसायी को निवेश पर उच्च रिटर्न का झांसा देकर ऑनलाइन धोखेबाजों ने 5 करोड़ रुपये ठग लिए। ठाणे पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के एक अधिकारी ने बताया कि पीड़ित का आयात-निर्यात का काम है। आरोपियों ने उससे ऑनलाइन संपर्क किया। अधिकारी ने बताया, उन्होंने पीड़ित से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कई विदेशी मुद्रा में निवेश करने के लिए कहा और बदले में उच्च रिटर्न का आश्वासन दिया। पीड़ित ने इस साल अप्रैल से अक्तूबर के बीच 5 करोड़ रुपये का निवेश किया। बाद में ठगे जाने का पता चला।