बाहुबलियों की कहानी- 7 …. ब्रजेश सिंह की जिंदगी में ट्रेजेडी, क्राइम, इमोशन, ड्रामा सब है; पूरी कहानी सुनने में कान लाल हो जाते हैं

पूर्वांचल को बादशाहत की बीमारी लगी है। कमजोर सड़कों में बादशाहत। धार्मिक कामों में बादशाहत। विकास न होने में बादशाहत। माफियागिरी में बादशाहत। और तो और माफियाओं को माननीय बनाने में बादशाहत। बादशाहत की इस कड़ी में ब्रजेश सिंह का भी नाम है। जेल में बंद ब्रजेश PM नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी से MLC हैं।

ब्रजेश दोबारा माननीय बनने के लिए दावेदारी कर रहे हैं। ब्रजेश के माफिया से माननीय बनने के सफर पर अगर फिल्म बनी तो उसमें ट्रेजेडी, क्राइम, इमोशन, ड्रामा सब होगा। आइए कहानी सुनाते हैं आपको, लेकिन उससे पहले आप हमारे इस पोल में भाग लें…

पिता के हत्यारों की हत्या से क्राइम की शुरुआत
वाराणसी के धौरहरा गांव में रहने वाले ब्रजेश सिंह पढ़ाई में एवरेज थे। सिंचाई विभाग के कर्मचारी उनके पिता रविंद्र नाथ सिंह चाहते थे कि बेटा पढ़ाई में बढ़िया करे और IAS बने। ब्रजेश ने अपने पिता के सपने में जान डालने के लिए BSc में एडमिशन ले लिया। तभी जमीनी विवाद के चलते उनके पिता की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। 1984 के इस हत्याकांड के बाद ब्रजेश पिता के सपनों को भूल गए, इसके बाद उन्होंने घर छोड़ा और हथियार उठा लिए।

ब्रजेश सिंह की यह फोटो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान की है, जो हमें उनके ही समर्थक के ट्विटर से मिली।
ब्रजेश सिंह की यह फोटो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान की है, जो हमें उनके ही समर्थक के ट्विटर से मिली।

पैर छुए फिर गोली मार दी
रविंद्र सिंह की हत्या का आरोप लगा पड़ोस के पांचू पर। पांचू उस वक्त इलाके में सबसे पॉवरफुल हुआ करता था। 1985 में ब्रजेश पांचू के घर गए, घर के बाहर पांचू के पिता हरिहर सिंह बैठे थे। ब्रजेश ने झुककर उनके पैर छुए, शॉल भेंट की और बंदूक निकालकर गोलियों से छलनी कर दिया। पिता की हत्या का बदला लेने की यह पहली कड़ी थी।

ब्रजेश के पिता की हत्या में गांव के ही प्रधान रघुनाथ की भी भूमिका थी, जिसे ब्रजेश ने भरी कचहरी में AK-47 से भून दिया। पूर्वांचल के इतिहास में पहली बार AK-47 से मर्डर हुआ। ऐसे में पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। इस गैंगवार रोकने के लिए टीम बनाई। फिर पुलिस एनकाउंटर में पांचू को मार दिया गया। इस एनकाउंटर से लगा कि खूनी खेल बंद हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ। सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित 6 लोगों की हत्या कर दी गई। इस दौरान ब्रजेश को गोली लगी, पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फिर पुलिस ने ब्रजेश को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया, यहां से वह फरार हो गया।

त्रिभुवन सिंह का साथ मिला और बन गई गैंग
अपराध की दुनिया में पैर रखने के बाद ब्रजेश वापस नहीं आया। उसकी मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई और दोनों ने पूर्वांचल में बादशाहत कायम करने की ठान ली। 1988 में त्रिभुवन के हेड कॉस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या में नाम आया साधु सिंह और मुख्तार अंसारी का। इस हत्याकांड के पहले तक इन दोनो गैंग के बीच कोई खास दुश्मनी नहीं थी, लेकिन इसके बाद दोनों एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन बन गए।

पूर्वांचल में सबसे बड़ा माफिया बनने की होड़ थी। मुख्तार अंसारी किसी भी कीमत पर पीछे नहीं रहना चाहते थे।
पूर्वांचल में सबसे बड़ा माफिया बनने की होड़ थी। मुख्तार अंसारी किसी भी कीमत पर पीछे नहीं रहना चाहते थे।

पुलिस की वर्दी पहनकर साधु सिंह की हत्या
राजेंद्र सिंह की हत्या के बाद साधु को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जब साधु जेल में था तभी वह पिता बना। ऐसे में साधु अपनी पत्नी और बच्चे को देखने अस्पताल आया। इसी दौरान पुलिस की वर्दी पहने व्यक्ति ने गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि ये हत्या ब्रजेश ने की। दोपहर में हुई इस हत्या के 6 घंटे बाद खबर आई कि साधु सिंह की मां-भाई समेत परिवार के 8 लोगों को मुदियार गांव में हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड का बदला मुख्तार अंसारी ने लिया था। इस कहानी को बाहुबलियों की कहानी-4 में पढ़ सकते हैं।

छोटा राजन तक पहुंच गए ब्रजेश
ब्रजेश यहां से अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह बनने की तरफ तेजी से बढ़ गए। 1992 में ब्रजेश ने गुजरात में रघुनाथ यादव नाम के एक व्यक्ति को गोली मार दी। जब सब-इंस्पेक्टर झाला ने पकड़ने की कोशिश की तो उन्हें भी गोली मार दी गई। पुलिस का कहना है कि झाला को गोली मारने वाले भी ब्रजेश ही थे।

ब्रजेश को लेकर जो डर का माहौल बना उसी के बलबूते वह पूर्वांचल के जिलों से निकलकर झारखंड तक पहुंच गया। वह छोटा राजन के सबसे खास अंडरवर्ल्ड डॉन सुभाष ठाकुर से जा मिला। झारखंड के कोल माफिया सूरजदेव सिंह से नजदीकी बढ़ी। बिहार के सूरजभान के खास हो गए। यहां से ब्रजेश ने पैसा बनाना शुरू किया। तभी अचानक मुंबई में आतंकी हमला होता है, दाऊद और सुभाष ठाकुर अलग हो जाते हैं। इसके बाद सुभाष अब ब्रजेश के साथ हो गए।

पूर्वांचल में बादशाहत के बीच मुख्तार बने रोड़ा
अब ब्रजेश के पास पैसा भी था और पावर भी, लेकिन वह राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं बन पाए थे। वहीं दूसरी तरफ साधु सिंह की हत्या के बाद मुख्तार राजनीति में आकर विधायक बन चुके थे। पुलिस अब मुख्तार के इशारे पर चलती और ब्रजेश को परेशान करती। इसके बाद ब्रजेश के लोगों पर हमला होने लगा, जिससे कई लोगों की मौत हो गई। फिर ब्रजेश गुट ने तय किया कि अब मुख्तार को रास्ते से हटाना पड़ेगा।

मुख्तार के विधायक बनने के बाद पुलिस ब्रजेश को परेशान करने लगी थी। इसलिए ब्रजेश ने भी राजनीतिक साथी खोज निकाला।
मुख्तार के विधायक बनने के बाद पुलिस ब्रजेश को परेशान करने लगी थी। इसलिए ब्रजेश ने भी राजनीतिक साथी खोज निकाला।

मुख्तार के काफिले पर हमला
बात जुलाई 2001 की है। मुख्तार अपने काफिले के साथ जा रहे थे। ब्रजेश गुट का एक ट्रक मुख्तार के काफिले के आगे और दूसरी कार काफिले के पीछे चल रहा था। उसरी चट्टी के पास रेलवे का फाटक बंद हो गया तो कार पीछे ही रह गई। तभी अचानक ट्रक रुका और दो हथियार बंद बदमाश मुख्तार के काफिले पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगे। ऐसे में मुख्तार गाड़ी से कूदकर फायरिंग करते हुए खेतों की तरफ भागे। तब तक इधर उनके गनर समेत तीन लोग मार दिए गए। बताया जाता है कि मुख्तार ने दोनों बदमाशों को अपने निशाने से ढ़ेर कर दिया और एक गोली ब्रजेश को भी लगी।

राजनीतिक मदद के लिए कृष्णानंद को किया साथ
अब ब्रजेश समझ गए थे कि बिना राजनीतिक लोगों की मदद लिए मुख्तार को नहीं हराया जा सकता। इसलिए उन्होंने साथ पकड़ा कृष्णानंद राय को। कृष्णानंद राय ब्रजेश के साथ तो गए लेकिन उसके बाद उनका जो अंजाम हुआ वह UP के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना बन गई। 2005 में कृष्णानंद राय के काफिले को घेरकर करीब 500 राउंड फायरिंग हुई। कृष्णानंद राय सहित सभी 7 लोग मार दिए गए। पोस्टमार्टम हुआ तो इन सभी की बॉडी से 67 गोलियां निकलीं। सभी फायरिंग AK-47 से हुई थी।

अंडरग्राउंड हो गए ब्रजेश
इस घटना के बाद से ब्रजेश गायब हो गए। लोगों के बीच ये चर्चा शुरू हो गई कि ब्रजेश की मौत हो गई, हालांकि पुलिस को इस पर भरोसा नहीं था। हैरानी की बात ये कि पुलिस के पास ब्रजेश की कोई फोटो भी नहीं थी। एकमात्र जो फोटो थी वह पुरानी थी। जिसके आधार पर ब्रजेश को पकड़ना बेहद मुश्किल था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को तीन साल बाद इस काम में कामयाबी मिल गई। 2008 में पुलिस ने उड़ीसा के भुवनेश्वर से ब्रजेश को गिरफ्तार कर लिया। ब्रजेश वहां अरुण कुमार नाम से रह रहे थे।

कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद लोगों ने माना ब्रजेश की मौत हो गई, लेकिन तीन साल बाद उन्हें भुवनेश्वर में गिरफ्तार किया गया।
कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद लोगों ने माना ब्रजेश की मौत हो गई, लेकिन तीन साल बाद उन्हें भुवनेश्वर में गिरफ्तार किया गया।

ब्रजेश आए तो खून की नदियां बहने लगीं
ब्रजेश जेल में थे, लेकिन उनके जिंदा होने की वजह मात्र से पूर्वांचल में फिर से खूनखराबा शुरू हो गया। 4 मई 2013 को ब्रजेश के खास जिला पंचायत सदस्य अजय खलनायक की गाड़ी को निशाना बनाकर गोलियां दागी गईं, गाड़ी में पत्नी भी साथ थी। तीन गोली अजय और एक गोली पत्नी को लगी, हालांकि दोनों बच गए। ठीक दो महीने बाद 3 जुलाई को ब्रजेश के चचेरे भाई सतीश सिंह को सरेआम गोलियों से भून दिया गया।

ब्रजेश पुलिस हिरासत के बीच तेरहवीं में शामिल होने धौरहरा गांव आए। परिवार की हालत देखकर रो पड़े। उन्होंने कहा, पुलिस ने लापरवाही दिखाई, अगर अजय खलनायक पर हुए हमले के मामले में दर्ज केस से मुख्तार का नाम नहीं हटाया गया होता तो ये घटना नहीं होती। ये पहली बार था जब ब्रजेश ने पुलिस पर भरोसा जताते हुए ये कहा था। इसके पहले हमेशा खुद बदला लिया।

मुख्तार को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी
ब्रजेश अब जेल में थे इसलिए उन्होंने मुख्तार की हत्या के लिए लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपए की सुपारी दी। लंबू कुछ कर पाते इसके पहले ही पुलिस ने उसे आरा कोर्ट धमाके के मामले में गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ हुई तो सुपारी का खुलासा हो गया। इसके बाद उस वक्त की सपा सरकार ने मुख्तार की सुरक्षा दोगुनी कर दी गई। वह विधानसभा जाते तो विशेष निगरानी होती। पूर्वांचल के हिस्सों में हिंसा रोकने के लिए पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच नजर रखने लगी।

जेल से ही बन गए MLC
ब्रजेश ने 2012 ने चंदौली की सैयदराजा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन मनोज सिंह डब्ल्यू से हार गए। फिर ब्रजेश ने 2016 में शाहजहांपुर जेल में रहते हुए निर्दलीय वाराणसी सीट से MLC का चुनाव लड़ा और जीत गए। ब्रजेश ने मनोज सिंह की बहन मीना सिंह को 1986 वोट से हराकर उस हार का बदला ले लिया। फिलहाल ब्रजेश जेल में ही रहे। उनका सारा काम हेमंत कुमार सिंह करते हैं।

यह फोटो 2016 में MLC बनने के बाद की है।
यह फोटो 2016 में MLC बनने के बाद की है।

ब्रजेश देश के एकमात्र MLC हैं जिनपर 30 से ज्यादा गंभीर धाराओं के मुकदमें दर्ज हैं। मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट, टाडा यानी टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट, गैगस्टर ऐक्ट, हत्या, हत्या की साजिश, दंगा भड़काने, वसूली और धोखे से जमीन हड़पने के मुकदमे दर्ज हैं। इन सबके बाद ब्रजेश अब माननीय हैं। दोबारा MLC के लिए तैयारी कर रहे हैं। भतीजे सुशील सिंह को सैयदराजा सीट से दूसरी बार विधायक बनाने में लगे हैं। अब जनता क्या फैसला करती है ये 10 मार्च को पता चलेगा।

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