पेटलावद ब्लास्ट में 78 मौतों की सजा सिर्फ 1600 रुपए ?

सरकार ने नहीं जांची SIT की कमियां, सभी 7 आरोपी बरी; टीआई का एक इंक्रीमेंट ही रोका …..

झाबुआ जिले के पेटलावद में 12 सितंबर 2015 को जिलेटिन छड़ों के गोदाम में हुए भीषण विस्फोट में 78 लोगों के चिथड़े उड़ गए थे, पोटलियों में अंग समेटने पड़े थे। इस मामले में हाल ही जिला न्यायालय का फैसला आया। इसमें मुख्य आरोपी राजेन्द्र कासवां (जिसे विस्फोट में मृत बताया गया) और सह आरोपी धर्मेन्द्र राठौड़ (विस्फोटक सप्लाई का आरोपी) को भी बरी कर दिया गया। विस्फोटक रखने के 5 आरोपी पहले ही बरी हो चुके हैं। यानी विस्फोट कांड में बनाए गए तीन अलग-अलग केसों के सभी 7 आरोपी बरी हो गए हैं।

सजा के नाम पर तत्कालीन पेटलावद थानाधिकारी शिवजी सिंह की सेवानिवृत्ति से ठीक पहले एक वेतनवृद्धि (1600 रुपए) रोकने के आदेश हुए। शिवजी सिंह कहते हैं, मुझे बलि का बकरा बनाया। मुझसे पहले कलेक्टर, एसडीएम, एसपी, एसडीओपी की जिम्मेदारी थी। वे विस्फोटकों की निगरानी की जिम्मेदारी नहीं निभा पाए थे। उन्हें केस से बाहर रखा गया।

विस्फोट कांड के आरोपियों को राहत के पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार की लापरवाही रही। क्योंकि, पुलिस जांच से लेकर सरकारी पैरवी तक केस इतना कमजोर कर दिया गया कि किसी पर कोई आरोप टिका ही नहीं। सरकार ने जस्टिस आर्येंद्र कुमार सक्सेना के न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट साढ़े 6 साल में खोली ही नहीं।

पुलिस ने प्रत्यक्षदर्शियों को गवाह नहीं बनाया, जिन्हें गवाह बनाया, उन्हें अभियोजन ने कोर्ट में नहीं बुलाया। सरकारी वकील एसके मुवेल के मुताबिक- SIT जांच कमजोर थी। SIT प्रमुख सीमा अलावा के मुताबिक- जांच सही थी, पैरवी कमजोर हुई।

चार सवाल- पैरवी में कमियां छूटीं या छोड़ी गईं?

1. मनोज गादिया का बयान था- विस्फोट के तुरंत बाद उसके स्कूटर पर या तो राजेन्द्र कासवां बैठा था या उसका भाई बैठा था, कौन था ये याद नहीं। कासवां के भाई ने भी कहा- स्कूटर पर बैठे थे, पर किसके ये याद नहीं।
………इन्वेस्टीगेशन– कोर्ट ने मनोज गादिया का नार्को टेस्ट कराने के आदेश पुलिस को दिए थे, पुलिस ने मनोज का नार्को टेस्ट क्यों नहीं करवाया?

2. प्रत्यक्षदर्शी- राजेन्द्र कासवां को मोबाइल पर बात करते देखा था। पुलिस ने 78 लोगों के अंगों में से कैसे एक पोटली में उसके अंग इकट्‌ठा किए? डीएनए रिपोर्ट बनाई? वो विस्फोट से उड़ गया, लेकिन उसके मोबाइल सही मिले?
 ……..इन्वेस्टीगेशन- प्रत्यक्षदर्शियों को गवाह क्यों नहीं बनाया? जिसे गवाह बनाया, उसे कोर्ट में क्यों नहीं बुलाया?

3.न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट न सार्वजनिक हुई न पढ़ी गई। रिपोर्ट कहां है? उसका हुआ क्या?
……. इन्वेस्टीगेशन- न्यायिक जांच रिपोर्ट घटना के 3 माह बाद ही सौंप दी गई थी। साढ़े 6 साल से लिफाफाबंद। क्यों? किसको बचाने के लिए नहीं खुली फाइल। सदन में क्यों नहीं आई।

4.फैसले में सभी आरोपी बरी। अब सरकारी वकील ने पुलिस जांच में 13 कमियां निकालकर अपील दर्ज करने की सलाह दी।
 ….इन्वेस्टीगेशन- कमियां फैसले के बाद क्यों दिखीं? फैसले से पहले 6.5 साल में सरकारी वकील और एसपी-कलेक्टर के बीच 79 बैठकें हुईं। किसी में कमी का जिक्र नहीं आया। क्यों? किसे बचाने के लिए?

ये सब बरी : राजेंद्र कासवां (मृत बताया), विस्फोटक देने का सहआरोपी धर्मेंद्र राठौड़, विस्फोटक रखने के आरोपी राजेंद्र के दोनों भाई और भाभियां…। पुलिस जांच में पता नहीं कर पाई कि विस्फोटक कौन लाया, कहां से लाया, कितना स्टॉक था, जो रैपर मिला उसकी बरामदगी कहां से हुई…सब बरी हो गए।

ये अछूते रहे : विस्फोट के बाद कलेक्टर, एसडीएम, एसपी, एसडीओपी और थाना प्रभारी के तबादले हुए। केस में इनमें से किसी का नाम नहीं लिखा गया। झाबुआ कलेक्टर सोमेश मिश्रा और एडिशनल एसपी आनंद वास्कले बताते हैं- सभी के बरी होने पर हमने विधि विभाग को अपील का प्रस्ताव भेजा है।

पीड़ित-प्रत्यक्षदर्शी आज भी कहते हैं- राजेन्द्र की मौत झूठ है, उसे बचाने के लिए ही झूठी डीएनए जांच रिपोर्ट लाए

राजेन्द्र कासवां की मौत को पीड़ित और प्रत्यक्षदर्शी सच नहीं मानते। पूर्व नपं अध्यक्ष सुरेंद्र भंडारी ने बताया कि मैं जांच के दौरान 2 महीने SIT के साथ रहा। राजेन्द्र की पूरी जायदाद परिवार को सौंप दी गई और परिवार इंदौर शिफ्ट हो गया। मुझे गवाह नहीं बनाया, क्योंकि मैं पोल खोल देता। भाटखेड़ी के मांगीलाल कानाजी ने बताया- मैंने पुलिस को बताया था कि राजेंद्र को मैंने मोबाइल पर बात करते हुए गली में जाते देखा था।

मैं घटना का गवाह था, मुझे कोर्ट नहीं बुलाया गया। बाबूलाल दीपाजी मुलेवा ने बताया- मैंने राजेन्द्र को भागते देखा। वो मर गया था तो उसके दोनों मोबाइल सुरक्षित कैसे मिले? 78 लोगों के चिथड़े उड़ गए थे। अंगों को पोटलियों में रखा था। एक महीने बाद जो सेंपल डीएनए के लिए भेजे, वे कासवां के ही कैसे?

मनोज गादिया के स्कूटर पर बैठकर कासवां के भागने की जानकारी थी। मनोज का बयान था- वो राजेन्द्र था या उसके भाइयों में कोई एक ये नहीं पहचाना। भाइयों का बयान था, स्कूटर पर बैठे थे मगर वो मनोज का था या किसी और का ये नहीं पता। ये बयान भी संदिग्ध ही हैं।

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