गैंगस्टर्स की कहानी-2 …. यूपी का डॉन जिसने विधायक-मंत्री की हत्या की, फिर सीएम के मर्डर की सुपारी ली; लेकिन प्रेमिका के चलते मारा गया
साल 1993, एक 16 साल की लड़की स्कूल से लौट रही थी। राकेश तिवारी नाम के शोहदे ने छेड़ दिया। रोते हुए लड़की घर पहुंची और अपने मास्टर पिता को पूरी बात बता दी। मास्टर साहब पुलिस के पास जाने लगे। इधर लड़की के भाई को बहन से छेड़खानी की खबर मिल गई। भाई पहुंचा और राकेश तिवारी के सीने में गोली उतार दी।
गोली मारने वाला कोई और नहीं बल्कि श्रीप्रकाश शुक्ला था। पूर्वांचल का सबसे बड़ा बदमाश। जिसने 25 साल की उम्र में 25 से ज्यादा हत्या कर दी। विधायक और मंत्री की हत्या करने के बाद सीएम के मर्डर की सुपारी ले ली। आज के गैंगस्टर्स की कहानी में बात श्रीप्रकाश शुक्ला की होगी। आइए कहानी शुरू से शुरू करते हैं…
पहलवानी का शौकीन
गोरखपुर के मामखोर गांव में 1973 में पैदा हुए श्रीप्रकाश शुक्ला के पिता सरकारी अध्यापक थे। श्रीप्रकाश का मन पढ़ाई में कम रंगबाजी में ज्यादा लगता था। ऊंची लंबी कद काठी थी तो पहलवानी करने लगा। 1993 में 20 साल की उम्र में बहन को छेड़ने वाले का मर्डर किया तो पुलिस और गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी पीछे पड़ गए। पुलिस अपराध के लिए खोज रही थी हरिशंकर तिवारी दिलेरी के लिए। जीत मिली हरिशंकर तिवारी को। श्रीप्रकाश शुक्ला को चार महीने के लिए बैंकाक भेज दिया। वजह सिर्फ इतनी थी कि श्रीप्रकाश ने जिस राकेश तिवारी को मारा था वह हरिशंकर के कट्टर विरोधी वीरेंद्र प्रताप शाही का आदमी था।

बैकांक से लौटा तो मर्डर ही पेशा हो गया
श्रीप्रकाश शुक्ला जब बैकांक से लौटा तो बदल गया। वह गोरखपुर का डॉन बनना चाहता था। उसने सबसे पहला हमला गोरखपुर में विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही पर किया। किस्मत वीरेंद्र के साथ रही और वह बच गए। बताया जाता है कि हरिशंकर तिवारी के कहने पर श्रीप्रकाश ने कई अपराध को अंजाम दिया। कुछ ही दिन बाद श्रीप्रकाश का हरिशंकर तिवारी में रेलवे ठेके को लेकर विवाद हो गया। इसके बाद श्रीप्रकाश की दोस्ती बिहार के मोकामा से कभी निर्दलीय विधायक रहे बाहुबली सूरजभान सिंह से हो गई। श्रीप्रकाश सूरजभान को अपना गुरू मानने लगा।
श्रीप्रकाश की कहानी को आगे बढ़ाने से पहले हरिशंकर तिवारी, वीरेंद्र शाही और सूरजभान के बारे में थोड़ा सा जान लीजिए।
रेलवे के ठेकों को लेकर तकरार
उत्तर-पूर्व रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर है। लखनऊ-वाराणसी के अलावा बिहार के समस्तीपुर और सोनपुर के ठेके यहीं से जारी होते थे। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही तो पर्याप्त टेंडर उठा लेते थे, लेकिन सूरजभान पिछड़ जाता था। यहां श्रीप्रकाश की दबंगई काम आई और सूरजभान सिंह को भी ठेका मिलने लगा। श्रीप्रकाश बदले में कमीशन लेता था। कमीशन से मिला पैसा वह कहीं इन्वेस्ट नहीं करता, बल्कि सूरजभान सिंह के ही पास रखता था।

विधायक वीरेंद्र शाही को गोली मार दी
श्रीप्रकाश वीरेंद्र प्रताप शाही से अपनी दुश्मनी भूला नहीं था। एक दिन उसे मौका मिल गया। लखनऊ के इंदिरानगर में विधायक वीरेंद्र शाही अपनी कथित प्रेमिका को किराए पर कमरा दिखाने के लिए ले जा रहे थे। प्रेमिका के बारे में किसी को पता न चले इसलिए गनर और ड्राइवर को घर पर ही रहने को कह दिया था। इसकी भनक श्रीप्रकाश को लग गई। श्रीप्रकाश पहुंचा और वीरेंद्र शाही पर फायरिंग झोंक दी। मौके पर ही वीरेंद्र शाही की मौत हो गई। इस खबर से श्रीप्रकाश का दबदबा इतना बढ़ गया कि हरिशंकर तिवारी एक-एक करके रेलवे के सारे ठेके छोड़ने लगे।
बिहार के मंत्री की हत्या
3 जून 1998, बिहार में आरजेडी की सरकार थी। राबड़ी देवी की सरकार में बृज बिहारी प्रसाद साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री थे। इलाज के लिए पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे। शाम को पार्क में टहल रहे थे तभी 7 नकाबपोश बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। बृज बिहारी की मौके पर ही मौत हो गई। बिहार विधानसभा में हंगामा मचा तो जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने 2009 में श्रीप्रकाश शुक्ला के गुरु सूरजभान सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई। बाद में फैसला पलट गया।

जो भी रास्ते में आया उसकी हत्या कर दी
श्रीप्रकाश अब स्थापित डॉन हो चुका था। पूर्वांचल से बिहार और दिल्ली से गाजियाबाद तक उसने वसूली शुरू कर दी। लखनऊ के दारुल सफा में सब इंस्पेक्टर आरके सिंह का श्रीप्रकाश से किसी बात को लेकर विवाद हो गया। श्रीप्रकाश ने आरके सिंह को मौके पर ही कई गोलियां मार दी।
लखनऊ के हजरतगंज में श्रीप्रकाश ने अपने बहनोई से लॉटरी का काम शुरू करवाया। अमीनाबाद के विवेक श्रीवास्तव ने लाटूशरोड पर लॉटरी के कई काउंटर डाल दिए। श्रीप्रकाश ने विवेक को ये सब बंद करने को कहा। विवेक नहीं माने। एक दिन श्रीप्रकाश आया और लाटूशरोज में बीच चौराहे पर विवेक को 25 गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया।
पुलिस पीछे पड़ी थी लेकिन उसके पास फोटो ही नहीं
श्रीप्रकाश को पकड़ने के लिए यूपी-बिहार और दिल्ली की पुलिस लगी थी लेकिन किसी के पास उसकी फोटो नहीं थी। फोटो के लिए पुलिस श्रीप्रकाश के बहनोई के घर छापेमारी की। वहां पुलिस को श्रीप्रकाश की एक फोटो मिल गई। वह अपनी भांजी के बड्डे में आया था, लेकिन यह फोटो पूरी नहीं थी। पुलिस ने हुलिया पूछा और बॉलीवुड के हीरो सुनील शेट्टी की बॉडी पर श्रीप्रकाश की फोटो लगाकर पूरे विभाग में दे दी।
पुलिस प्रशासन ने उस फोटो को अखबार में छपवा दिया। यह खबर श्रीप्रकाश को प्रतापगढ़ जिले के एक बसपा नेता ने दी। फोटो के बाद श्रीप्रकाश बेचैन हो गया। उसे किसी ने बताया कि नेपाल का कोई सोने-चांदी का तस्कर है उसने ये फोटो पुलिस को दी। श्रीप्रकाश ने उस पर गोली चला दी हालांकि वह बचकर नेपाल भाग गया।

सीएम के मर्डर के लिए सुपारी ले ली
25 साल की उम्र में करीब 25 मर्डर कर चुके श्रीप्रकाश को लेकर फर्रुखाबाद के तत्कालीन सांसद साक्षी महाराज ने बड़ा खुलासा कर दिया। साक्षी महाराज ने कहा, “श्रीप्रकाश ने सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है।” इस दावे के बाद पूरे प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। आला अधिकारियों ने श्रीप्रकाश को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए सभी जिलों के एसएसपी को आदेश दे दिया गया।
प्रेमिका से बात करने से मिली लोकेशन
श्रीप्रकाश शुक्ला की एक प्रेमिका थी। कानपुर की इस लड़की को श्रीप्रकाश ने गाजियाबाद में रखा था। जब वहां नहीं रहता तो उससे फोन पर लगातार बात करता रहता था। इतनी बात पर साथी कुछ कहते तो श्रीप्रकाश रौब के साथ कह देता कि मेरा हर दिन फोन का खर्च 5 हजार रुपए है। उसका फोन पर लगातार बात करना ही पुलिस के लिए उस तक पहुंचना आसान हो गया।
श्रीप्रकाश की आखिरी रंगदारी
श्रीप्रकाश का एनकाउंटर करने के लिए राजेश पांडेय के नेतृत्व में एसटीएफ की एक टीम बनी। अधिकारी श्रीप्रकाश के फोन और उसके लोकेशन की निगरानी कर रहे थे। श्रीप्रकाश ने लखनऊ में 105 फ्लैट बनाने वाले बिल्डर से प्रति फ्लैट 50 हजार रुपए की रंगदारी मांगी। आम तौर पर श्रीप्रकाश धमकी के बाद उस सिम को अगले कुछ दिन के लिए बंद कर देता था लेकिन श्रीप्रकाश यही सिम लगातार प्रयोग में लेता रहा जिससे पुलिस को आसानी हो गई।
श्रीप्रकाश का एनकाउंटर
एसटीएफ को मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि श्रीप्रकाश झारखंड के रांची जाने के लिए 22 सितंबर 1998 कि सुबह 5.45 बजे दिल्ली एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट लेगा। श्रीप्रकाश को पकड़ने के लिए एसटीएफ ने दिल्ली एयरपोर्ट की घेराबंदी कर ली, लेकिन वह नहीं आया।
श्रीप्रकाश इस दौरान भी फोन का प्रयोग करता रहा। पुलिस को खबर मिली की श्रीप्रकाश अपनी प्रेमिका से मिलने गाजियाबाद जा रहा है। दिल्ली एयरपोर्ट पर घेराबंदी करने वाली पुलिस दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाईवे पर हथियारों के साथ लग गई। श्रीप्रकाश दोपहर 1.50 बजे अपनी नीली सिएलो कार को खुद चलाते हुए हाईवे पर निकला। बगल में अनुज प्रताप सिंह और पीछे की सीट पर सुधीर त्रिपाठी बैठा था। गाड़ी मोहननगर फ्लाईओवर के पास पहुंची थी तभी पुलिस की गाड़ी पीछे लग गई।

श्रीप्रकाश को खतरा महसूस हुआ तो उसने गाड़ी की रफ्तार तेज की और भगाते हुए यूपी आवास विकास कालोनी की तरफ ले गया। पुलिस भी उतनी ही तेजी के साथ उसके पीछे भागी और घेर लिया। श्रीप्रकाश ने रिवॉल्वर निकालकर फायरिंग शुरू की। लेकिन, उसके पहले ही हथियारों से लैश एसटीएफ के जवानों ने ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए तीनों को मार गिराया। बाद में गोली गिनी गई तो पता चला श्रीप्रकाश की तरफ से 14 और पुलिस की तरफ से 45 गोलियां चली।
इसके साथ ही श्रीप्रकाश शुक्ला नाम का चैप्टर समाप्त हो गया। पुलिस ने श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए जो अभियान चलाया उस पर एक करोड़ रुपए खर्च हुए। यह अब तक का पहला ऐसा मामला है जिसमें सर्विलांस पर 1 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।