कौशांबी .. बेटियां ब्याह कर यहां बेटे लाती हैं …. इस गांव में शादी के बाद 400 परिवारों में घर जमाई; क्योंकि यहां बेटियों को है बराबरी का हक

महिला सशक्तिकरण के कई उदाहरण आपने पढ़े और देखे होंगे, लेकिन कौशांबी के करारीनगर का पुरवा गांव कई मायनों में सामाजिक दायरों को तोड़ने वाला है। ये दामादों का गांव है। चौंक गए न… लेकिन यही हकीकत है। परंपरा कहिए.. या महिलाओं की शक्ति। शादी के बाद पतियों के यहां आकर बसने की रवायत ऐसी चली कि अब 400 परिवारों की यही कहानी है। शादी होने के बाद बेटों को ब्याह कर बेटियां यहां पूरा परिवार चला रही हैं।
पढ़िए कौशांबी के छोटे से गांव पर रिपोर्ट..

गांव में महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही अधिकार मिले हुए हैं।
गांव में महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही अधिकार मिले हुए हैं।

इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोग ऐसे हैं जो बाहरी है, जिन्होंने शादी के बाद से ही गांव में डेरा जमा लिया। ससुराल के बंधनों से आजाद यहां विवाहिता पति के साथ बराबरी से रहकर हर तरह से उसकी मदद करती हैं। इस गांव में रहने वाले पुरुषों के साथ ही गांव की महिलाएं भी परिवार चलाने में पति की मदद करती है।

जिसके लिए वह घर में बीड़ी बनाने के काम को करती है। इससे होने वाली आय को वह परिवार के भरण पोषण में खर्च करती है। यह सिलसिला गांव में लिए नया नहीं है। दशकों से दामादों ने यहां परिवार बसा रखा है। इस गांव में 70 साल से लेकर 25 साल की आयु वर्ग के दामाद परिवार के साथ खुशी-खुशी रहते हैं।

महिला को है बराबरी का हक
गांव की विशेषता ये है कि बेटियों को बेटों के बराबर शिक्षा व अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। इस गांव में बेटियां हर वो काम करती हैं, जो बेटे कर सकते हैं। इन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। 20 साल पहले पति के साथ गांव में रहने के लिए आई यासमीन बेगम की मानें तो ससुराल में कितनी भी आजादी हो, लेकिन ससुराल में कुछ न कुछ बंधन तो होता ही है। यहां पति के साथ रहते हुए वह अपनी मर्जी से रोजगार भी कर पा रही हैं।

गांव में यासमीन बेगम अपने शौहर के साथ।
गांव में यासमीन बेगम अपने शौहर के साथ।

नगर पंचायत क्षेत्र करारी में बसे दामादों के इस पुरवा में हर प्रकार की सुविधाएं हैं। यहां रहने के लिए नगर पंचायत की सुविधा के साथ ही विद्यालय व बाजार भी हैं। फतेहपुर के रहने वाले फिरदौस अहमद भी 22 साल पहले यहां की बेटी से शादी के बाद यहीं के होकर रह गए। फिरदौस की ही तरह सब्बर हुसैन ने भी अपनी पत्नी के मायके में आकर अपना आशियाना बना लिया। इनके मुताबिक शादी के बाद जब वह अपनी पत्नी के साथ अपने गांव गए। उनके गांव में सुविधाओं के आभाव ने उन्हें यहां आने के लिए प्रेरित किया। बच्चों की पढ़ाई और रोजगार की सुविधा के कारण वह भी दामादों के गांव में ही आकर हमेशा के लिए बस गए।

यहां दामादों की है कई पीढ़ियां
यहां कुछ परिवार तो ऐसे हैं, जहां ससुर भी यहां घर जमाई बनकर आए थे। गांव के संतोष कुमार की मानें तो उसके ससुर रामखेलावन ने गांव की बेटी प्यारी हेला के साथ शादी कर ली। उसके बाद यहां रहने लगे। वह भी उनकी बेटी चंपा हेला के साथ शादी के बाद गांव में बस गए थे।

बराबरी का अधिकार हर गांव में होना चाहिए
सभासद यशवंत यादव के मुताबिक महिला और पुरुष साथ काम करते हैं, इसलिए घरेलू विवाद भी कम होते हैं। बाहर से आकर बसने वालों का सम्मान वैसा ही होता है, जैसे घर के दामाद का होता है। इसलिए लोग आकर यहां रहना भी चाहते हैं। हर सुविधा का भी ख्याल रखा गया है।

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