42 साल में करीब आधे हो गए मुस्लिम सांसद … कैसे हारने के बावजूद मुस्लिमों को आगे बढ़ाया…

BJP टिकट देती है तो जीत नहीं पाते; RSS ने बताया, कैसे हारने के बावजूद मुस्लिमों को आगे बढ़ाया…

BJP मुस्लिमों को टिकट क्यों नहीं देती? इस सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया था कि, ‘कौन वोट देता है, यह भी देखना पड़ता है। यह राजनीतिक शिष्‍टाचार है। एक पार्टी होने के नाते चुनाव जीतना भी जरूरी है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि, 1980 से 2014 के बीच लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या आधे से भी ज्यादा कम हुई है। 1980 में 49 मुस्लिम संसद पहुंचे थे, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 23 पर आ गया। हालांकि 2019 में मुस्लिम सांसदों की संख्या 23 से बढ़कर 27 पहुंच गई, लेकिन इसमें एक भी सांसद बीजेपी से नहीं है।

हमने यह सवाल सबसे पहले बीजेपी के राज्यसभा से सांसद बनाए गए सैयद जफर इस्लाम से ही पूछा। उन्होंने कहा कि, ‘चुनाव में टिकट देने का एक ही क्राइटेरिया है और वो विनेबिलिटी यानी जीतने की योग्यता। यदि कम्युनिटी का सपोर्ट न हो तो जाहिर बात है कि, कैंडीडेट नहीं जीत पाएगा।’

‘मुस्लिम कम्युनिटी को जिस तरह से BJP को सपोर्ट करना चाहिए था, उसने अभी तक वैसा किया नहीं। मुस्लिम कम्युनिटी को भी यह सोचना चाहिए कि, वे किसी को हराने के लिए वोट न करें। यदि आज कोई जीतने वाला कैंडीडेट होगा तो पार्टी उसे टिकट जरूर देगी।’

मुस्लिमों ने अपना नेता बनाया तो देश फिर विभाजन की तरफ बढ़ेगा…
देश में मुस्लिमों की आबादी 20 करोड़ से ऊपर पहुंच गई लेकिन विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में उनका रिप्रेजेंटेशन कम क्यों हुआ? इस सवाल के जवाब में CSDS में प्रोफेसर अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘मुसलमान बहुत सारी ऐसी पार्टियों और नेताओं का समर्थन करते हैं, जिन्होंने उनकी आवाज को बुलंद किया है। उन्होंने अक्सर दलितों और पिछड़ों के साथ मिलकर वोट किया है।

इस नजरिए से देखें तो मुसलमानों को अलग से किसी मुस्लिम नेता या मुस्लिम पार्टी की जरूरत नहीं है। यदि कोई मुस्लिम पार्टी बनती है और वही मुस्लिमों की धार्मिक, राजनीतिक मांग उठाने लगती है तो विभाजन का इतिहास खुद को दोहरा सकता है, जिसे अब कोई भी देखना नहीं चाहेगा।’

यही वजह है कि, मुस्लिम लीग सिर्फ केरल के छोटे से इलाके तक सीमित रह गई है। ओवैसी पुराने हैदराबाद से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। बाहर जा रहे हैं, तो उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा। मुस्लिम समुदाय का ये जो रवैया है, वो भारत की मौजूदा स्थिति को देखते हुए तारीफे काबिल है।

वे कहते हैं, ‘ये बात बिल्कुल सही है कि, विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में इस तबके की राजनीतिक नुमाइंदगी घट रही है। लेकिन यह एक विशेष परिस्थिति के चलते है, जैसे ही ये परिस्थिति बदलेगी, इनकी नुमाइंदगी भी बढ़ने लगेगी।

इसमें कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक का रोल है। इंदिरा गांधी ने 1980 के बाद से ही हिंदू वोट बैंक बनाने की कोशिश की। असम, गढ़वाल में उन्होंने मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल खड़े किए। बीजेपी ने तो हिंदूओ को ही एकजुट किया है। गुजरात और यूपी इसके उदाहरण हैं।’

अब पढ़िए केरल के गवर्नर आरिफ़ मोहम्मद खान के इस मुद्दे पर व्यू
‘मुस्लिम लीडरशिप का क्या मतलब है? क्या हिंदुस्तान में सेपरेट इलेक्टोरल है? फिर क्यों मुस्लिम लीडरिशप की बात कही जाती है? ये कॉलोनियल भाषा है, जो अभी तक हमारा पीछा नहीं छोड़ रही। इसी के चलते दिलों से नफरतें खत्म नहीं हो पा रहीं।’

‘एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया… इसी भाषा के चलते दुश्मनी पैदा होती है। मैं भी मुसलमान घर में पैदा हुआ हूं, लेकिन मुझे मुस्लिम लीडरशिप का कोई शौक नहीं। मैं तो इसके खिलाफ 1980 से बोलता हुआ आ रहा हूं।‘ 20 परसेंट मुस्लिम आबादी का सवाल ही क्यों आ रहा है। हम मुसलमानों को हिंदुस्तानी बनने देंगे या नहीं।

इनकी रिलिजियस लीडरशिप को तो देखिए। वो अंग्रेजी पढ़ाई के खिलाफ है। वो पढ़ाई के आगे हिजाब को तवज्जो देते हैं। इस कम्युनिटी को देश की आजादी के बाद से अभी तक इस्तेमाल ही किया गया है। मैं तो मुस्लिम लीडरशिप की बात करने वालों के माइंडसेट के ही खिलाफ हूं। मुझे हिंदुस्तानी बनने दीजिए। हर वक्त दिल में ये मत डालिए कि मैं मुसलमान हूं।

मौलवी कहता है, पढ़ो मत। एजुकेशन से ज्यादा हिजाब को जरूरी बताया जाता है। हमने अंग्रेजों के कानून बदल दिए लेकिन अपनी आदतें नहीं बदल पा रहे। अब सोच बदल रही है। बहुत तेजी से बदल रही है, लेकिन कोई इस एलर्जी के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा। गांव में लड़कियां आठ-आठ किमी साइकिल चलाकर कॉलेज जाने लगीं, ये सोच बदलने का ही नतीजा है।

अब जानिए इस पूरे सिनेरियो पर RSS क्या सोचता है…

RSS की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मेंबर और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार के मुताबिक, ‘कुछ मुस्लिम नेताओं और पार्टियों ने मुसलमानों को बहलाकर और उनमें दहशत पैदा करके उन्हें राष्ट्रीयता से दूर रखा। जन गण मन, भारत माता की जय बोलने से भी दूर रखा।

ये नेता मुसलमानों से बीजेपी को हराने के लिए वोटिंग करवाते रहे। मुसलमानों ने द्वेष पाल लिया। इसलिए बीजेपी ने सोचा कि, इन्हें टिकट देने के बजाए दूसरे तरीकों से आगे लाया जाए। इसलिए जहां पार्टी सत्ता में आती है वहां एमएलसी और राज्यसभा मेंबर के तौर पर मुस्लिम समुदाय को आगे बढ़ाती है, क्योंकि टिकट देने पर तो उनकी जमानत जब्त करवा दी जाती है। अब ऐसा करके क्या बीजेपी ने कुछ गलत किया?

आज जहां बीजेपी की सरकारें हैं, वहां कई मुस्लिम मंत्री या मंत्री के समकक्ष काम कर रहे हैं। संस्थाओं में मेंबर बनाए गए हैं। मुसलमानों ने जब द्वेष, नफरत, हिंसा पाल ली तो बाकी पार्टियों ने सोचा कि अब यह कहां जाएंगे, लौटकर हमारे पास ही आएंगे। ऐसे में मुसलमानों ने अपनी इज्जत गंवाकर उनकी गुलामी स्वीकार कर ली। अब वे जान गए हैं कि, इसमें उनका हित नहीं बल्कि अहित ही हुआ है।

मुस्लिम या गैर-मुस्लिम नेताओं ने मजहब के नाम पर वोट तो लिया लेकिन मुस्लिमों का भाग्य नहीं बदला। इसलिए जो मुस्लिम नेता उभरे भी वो कट्‌टरपंथी और हिंसक ही ज्यादा उभरे।

आरएसएस के खिलाफ भड़काया गया। जबकि अटलजी के 6 साल और मोदी जी के 7 साल शासन में कहीं कत्लेआम नहीं हुआ। इन 13 सालों को छोड़ दीजिए तो बाकी के 62 सालों में कई दफा दंगे हुए हैं और मुस्लिमों को टारगेट किया गया है। मुसलमान यह सच्चाई जान चुके हैं कि इसलिए बीजेपी से जुड़ रहे हैं और बीजेपी के फेवर में उनका वोट बैंक लगातार बढ़ रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *