आंकड़ों से जानिए राष्ट्रीय राजनीति में कैसे बढ़ रहा आम आदमी पार्टी का कद
AAP ने अपने दूसरे प्रयास में 117 में से 92 सीट हासिल कर अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों को पीछे छोड़ते हुए पंजाब विधानसभा चुनाव जीता. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में 77 सीट जीतने वाली कांग्रेस 2022 में 18 सीटों तक सिमट गई.
पंजाब विधानसभा चुनाव में (AAP) की जबरदस्त जीत से देश के राजनीतिक परिदृश्य में असंख्य संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं. पिछले कुछ सालों के चुनावों में पार्टी द्वारा हासिल की गई जीत की ओर नज़र डालें तो भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं के एक छोटे से संगठन से शुरू होकर AAP अब राष्ट्रीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मुख्य चुनौती बनकर कांग्रेस की जगह लेता हुआ दिखाई दे रहा है.
AAP ने अपने दूसरे प्रयास में 117 में से 92 सीट हासिल कर अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों को पीछे छोड़ते हुए पंजाब विधानसभा चुनाव जीता. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में 77 सीट जीतने वाली कांग्रेस 2022 में 18 सीटों तक सिमट गई.
चार्ट 1: पंजाब विधानसभा चुनाव परिणाम
आंकड़ों से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी राज्य की 20 में से 18 सीटों को बरकरार रखने में सफल रही, दो सीटों पर उसे कांग्रेस और SAD से मात मिली. इसके अलावा इसने बाकी 72 सीटें से कांग्रेस, SAD और LIP से जीती.
पंजाब विधानसभा में सबसे बड़ी हार कांग्रेस की है, जिसे पिछले चुनावों की तुलना में 59 सीटों का नुकसान हुआ है, लेकिन शिरोमणि अकाली दल (SAD) 2015 से लगातार अपनी सीटों पर AAP से मात खा रही है.
2017 में, केजरीवाल की पार्टी ने मुख्य रूप से SAD की सीटों पर क़ब्ज़ा किया था और बाकी 7 सीटें कांग्रेस से जीती थीं. 2022 में, AAP ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) से 10 सीटें और छीन लीं और उन्हें विधानसभा में सिर्फ 3 सीटों पर समेट कर छोड़ दिया. 2017 में शिरोमणि अकाली दल (SAD) के पास 15 सीटें थीं.
AAP के लिए यह राह आसान नहीं थी. उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में – इंडिया अगेंस्ट करप्शन – आंदोलन की सफलता के ठीक बाद 2013 में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. उस साल, AAP ने 70 सीटों वाली विधानसभा में केवल 28 सीटों पर जीत हासिल करते हुए अल्पसंख्यक सरकार बनाने के लिए दिल्ली चुनाव लड़ा. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लोकपाल बिल पास न कर पाने के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था.
आम आदमी पार्टी ने 2015 में फिर विधानसभा चुनाव लड़ा और उन्हें दिल्ली में शानदार जीत मिली. AAP ने 67 सीटें जीतीं, जबकि BJP को सिर्फ 3 सीटें हासिल हुई. 2020 में, 62 सीटों के साथ उन्होंने फिर दिल्ली विधानसभा पर कब्जा कर लिया. जबकि BJP अपनी संख्या केवल 8 सीटों तक बढ़ाने में सफल रही.
BJP को खतरा
जैसा कि आंकड़े बताते हैं, पहले दिल्ली और अब पंजाब में AAP का यह प्रदर्शन राज्य की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत है. पंजाब और दिल्ली चुनावों के परिणामों को देखें तो पार्टी ने न केवल कई जगहों पर कांग्रेस की जगह ली है, बल्कि वह BJP के खिलाफ भी खड़ी हुई है.
चार्ट 2: दिल्ली विधानसभा चुनाव दलों का वोट शेयर
दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP के बढ़ते वोट शेयर से यह तय होता है कि आम आदमी पार्टी BJP के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है. AAP अपना वोट शेयर 2013 में 29.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2020 के विधानसभा चुनाव में 55 प्रतिशत तक लाने में सफल रही है. इस बीच, भाजपा 30 के दायरे में संघर्ष करती रही. उन्हें 2013 में 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2020 के चुनाव में यह बढ़कर 38.7 प्रतिशत तक हीं पहुंचा.
आंकड़ों से स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में भी मजबूत नजर आ रही है, खासकर पंजाब और दिल्ली में उसकी जगह कोई नहीं ले सकता है. 2014 में 432 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी लगभग 2 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ 4 सीटें (सभी पंजाब से) जीतने में सफल रही. हालांकि 2019 में उसने (पंजाब क्षेत्र में) केवल 35 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक सीट जीतकर आधा प्रतिशत वोट हासिल किया.
अगला लक्ष्य – राष्ट्रीय पार्टी की पहचान
पंजाब में जीत हासिल करने के साथ AAP इस समय दो राज्यों में सत्ता रखने वाली एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी बन गई है. पंजाब में शानदार जीत के अलावा उसने गोवा में भी 2 सीटों के साथ अपना खाता खोला है. गोवा में 6 प्रतिशत का वोट शेयर राज्य में पार्टी की मजबूत स्थिति को दर्शाता है.
चार्ट 3: विभिन्न राज्यों में आप का वोट शेयर (%)
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए AAP को चार या अधिक राज्यों में कम से कम 6 प्रतिशत वोट शेयर की ज़रूरत होगी. AAP अब तक तीन राज्यों में यह उपलब्धि हासिल करने में कामयाब रही है. दिल्ली (55 प्रतिशत) के अलावा, पंजाब (42 प्रतिशत) और गोवा (6.7 प्रतिशत) में अब यह छह प्रतिशत से अधिक वोट शेयर प्राप्त कर चुकी है. इस साल के अंत तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के पास इस सूची में चौथे राज्य को जोड़ने का मौक़ा है.
पार्टी को लोकसभा में भी कम से कम चार सीटें जीतनी होंगी. अभी उसके पास पंजाब के संगरूर से केवल एक सीट है जिसे भगवंत मान ने जीता था. हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं रहा, लेकिन पंजाब की यह जीत स्थितियां बदल सकती है. पंजाब की जीत के साथ AAP के लिए राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में कदम बढ़ाना आसान हो गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)