नहीं संभले तो हो जाएगी देर : आलू चिप्स से बर्बाद हो रहा है ये इलाका
प्रदूषण विभाग ने जिला प्रशासन को सौंपी रिपोर्ट, पंचायत व एसडीओ के अनुमति देने पर भी उठाए गंभीर सवाल….
इंदौर। आलू चिप्स तैयार करने में इंदौर के कोदरिया गांव का नाम पूरे देश में ख्यात है। कई नामी कंपनियां यहां से कच्चा माल लेती हैं। हालांकि चिप्स तैयार होने के पीछे का भयानक पक्ष भी है, जो भविष्य में क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ सकता है। इसको लेकर प्रदूषण विभाग ने प्रशासन को भी आगाह कर दिया है। दल ने दौरा करने के बाद तीन पेज की रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें उपाय भी बताए गए ताकि उद्योग भी प्रभावित नहीं हों और प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।
नहीं संभले तो हो जाएगी देर : आलू चिप्स से बर्बाद हो रहा है ये इलाका
कोदरिया व आसपास गांवों के खेतों व निजी जमीनों पर जनवरी से अप्रैल के बीच आलू चिप्स बनाने वाले छोटे-छोटे कुटीर उद्योग व कारखाने शुरू हो जाते हैं। चिप्स के निर्माण के दौरान आलू छिलका सहित स्टार्चयुक्त प्रदूषित पानी निकलता है। वहीं चिप्स बनाने से पहले आलू को सोडियम मेटा बाय सल्फेट से धोया जाता है। उससे होने वाला प्रदूषित पानी खेतों व उसके पास के नालों में छोड़ दिए जाता है, जिससे जल प्रदूषण हो रहा है।
यहां का नाला बहकर किशनगंज के पास छोटी नदी तक पहुंचता है। कुछ चिप्स कारखाना वाले तो गड्ढा करके पानी वहां भर इकट्ठा कर रहे हैं, जिसके कारण भूजल भी प्रदूषित होने का खतरा मंडराने लगा है। इसको लेकर पिछले दिनों प्रदूषण विभाग की टीम ने कोदरिया व आसपास के क्षेत्र का दौरा कर एक रिपोर्ट तैयार की। क्षेत्रीय अधिकारी आरके गुप्ता ने उसे जिला प्रशासन को सौंप दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार चिप्स इकाइयों से होने वाले जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। आलू चिप्स इकाइयों में एनारोबिक टैंक या सैफ्टिक टैंक बनाए जाएं। दूषित जल नाले में न बहाकर उसमें डाला जाए। जल को फिल्टर करके खेतों में सिंचाई के काम में भी लिया जा सकता है। टैंक बनाने की शर्त पर ही कारखाना संचालकों को अनुमति दी जाए। जांच के दौरान दोषी पाए गए उद्योगों के बिजली के कनेक्शन काट दिए जाएं।
20 उद्योग, सिर्फ एक सही
जांच के दौरान पाया गया कि २० इकाइयों जो उद्योग की श्रेणी में आती है में ही बॉयलर लगे हुए हैं। उसके अलावा 100 से अधिक कारखाने मिले। उद्योग की श्रेणी में आने वाले कारखानों में सिर्फ एक ने जल व वायु की अनुमति ले रखी थी, बाकी खुलेआम नाले में गंदा पानी डाल रहे हैं। जांच के दौरान उन्होंने अनुमति लेने की सिर्फ बात कही।
जांच के दौरान पाया गया कि २० इकाइयों जो उद्योग की श्रेणी में आती है में ही बॉयलर लगे हुए हैं। उसके अलावा 100 से अधिक कारखाने मिले। उद्योग की श्रेणी में आने वाले कारखानों में सिर्फ एक ने जल व वायु की अनुमति ले रखी थी, बाकी खुलेआम नाले में गंदा पानी डाल रहे हैं। जांच के दौरान उन्होंने अनुमति लेने की सिर्फ बात कही।
इन्हें दिया नोटिस
गणेश उद्योग, माया गृह उद्योग, काव्या फूड प्रोडक्ट, महिला गृह उद्योग, केशव गृह उद्योग, न्यू पाटीदार फूड इंडस्ट्री, पलक फूड इंडस्ट्री, श्री बालाजी फूड प्रोडक्ट, पलक फूड, उन्नति फूड, गोपी पाटीदार, कविता पपड़ी, पीहू फूड, माही फूड, इंदरसिंह तंवर गृह उद्योग, माया गृह उद्योग, सरिता महिला गृह, हनुमान सैनी, स्मृति वेफर्स, गंगा फूड प्रोडक्ट।
गणेश उद्योग, माया गृह उद्योग, काव्या फूड प्रोडक्ट, महिला गृह उद्योग, केशव गृह उद्योग, न्यू पाटीदार फूड इंडस्ट्री, पलक फूड इंडस्ट्री, श्री बालाजी फूड प्रोडक्ट, पलक फूड, उन्नति फूड, गोपी पाटीदार, कविता पपड़ी, पीहू फूड, माही फूड, इंदरसिंह तंवर गृह उद्योग, माया गृह उद्योग, सरिता महिला गृह, हनुमान सैनी, स्मृति वेफर्स, गंगा फूड प्रोडक्ट।
पूर्व में किया था बंद
पूर्व में प्रदूषण बोर्ड ने चार इकाइयों पर कार्रवाई की थी ताकि बाकी उद्योग सुधर जाएं। इसके चलते जल अधिनियम १९७४ के तहत कार्रवाई करते हुए मेसर्स मां उमिया, मेसर्स बालक आलू उद्योग, मेसर्स शिवानी फूड और मेसर्स आशीष तिवारी के कारखाने की बिजली काट दी गई थी। उसके बावजूद बाकी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
पूर्व में प्रदूषण बोर्ड ने चार इकाइयों पर कार्रवाई की थी ताकि बाकी उद्योग सुधर जाएं। इसके चलते जल अधिनियम १९७४ के तहत कार्रवाई करते हुए मेसर्स मां उमिया, मेसर्स बालक आलू उद्योग, मेसर्स शिवानी फूड और मेसर्स आशीष तिवारी के कारखाने की बिजली काट दी गई थी। उसके बावजूद बाकी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
प्रदूषण कैसे-कितना हो रहा, ऐसे समझें…
आलू चिह्रश्वस बनाने की इकाई में एक टन आलू प्रोसेसिंग में ३७५० लीटर पानी लगता है, जिससे ३६०० लीटर दूषित जल उत्पन्न होता है। लगभग १०-१२ किलो स्टॉर्च होता है और १५-२० किलो छिलके निकलते हैं। प्रोसेसिंग में लकड़ी का उपयोग होता है, जिससे वायू प्रदूषण हो रहा है। नियंत्रण के लिए ३० मीटर की चिमनी व बैग फिल्टर की आवश्यकता होती है, जो नहीं है।
आलू चिह्रश्वस बनाने की इकाई में एक टन आलू प्रोसेसिंग में ३७५० लीटर पानी लगता है, जिससे ३६०० लीटर दूषित जल उत्पन्न होता है। लगभग १०-१२ किलो स्टॉर्च होता है और १५-२० किलो छिलके निकलते हैं। प्रोसेसिंग में लकड़ी का उपयोग होता है, जिससे वायू प्रदूषण हो रहा है। नियंत्रण के लिए ३० मीटर की चिमनी व बैग फिल्टर की आवश्यकता होती है, जो नहीं है।