सबसे छोटे कणों से कैसे होता है दुनिया का सबसे बड़ा धमाका? जानिए परमाणु बम का साइंस, जिनपर उछल रहा रूस

रूस ने यूक्रेन के साथ जंग के बीच ये कहकर दुनिया की धड़कन बढ़ा दी हैं कि वह परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल कर सकता है। यों तो दुनिया के 9 देशों के पास करीब 12,700 परमाणु हथियार हैं, लेकिन अब तक इस्तेमाल सिर्फ दो बार हुआ है।

1945 में 6 और 9 अगस्त को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बारी-बारी बम गिराए थे। लिटिल बॉय और फैट मैन नाम के ये दो बम इतने ताकवर थे कि जापान तबाह हो गया। उसे हथियार डालने पड़े और दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया।

दुनिया में एक बार फिर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात चल निकली है।

ऐसे में जानना जरूरी है कि परमाणु बम आखिर होते क्या हैं? इनके पीछे का साइंस क्या है? और क्यों इनके इस्तेमाल से दुनिया के खत्म होने का है खतरा?

परमाणु हथियार या न्यूक्लियर वेपन सामूहिक विनाश के ऐसे हथियार होते हैं, जो तबाही मचाने के लिए न्यूक्लियर एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं।

परमाणु हथियार के पीछे का साइंस क्या है? इसके लिए सबसे पहले परमाणु को समझना जरूरी है।

देखिए हम सभी जानते हैं कि दुनिया में हर चीज अणुओं से बनी है। और अणु बने होते हैं परमाणुओं से। परमाणु में तीन अहम कण होते हैं- इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन।

इनमें प्रोटॉन और न्यूट्रॉन परमाणु के केंद्र में एक दूसरे बंधे रहते हैं। इस केंद्र को न्यूक्लियस या नाभिक कहते हैं। वहीं इलेक्ट्रॉन इस न्यूक्लियस के चारों ओर ऐसे चक्कर लगाते हैं जैसे पृथ्वी समेत बाकी ग्रह सूरज के चारों के घूमते हैं।

माइक्रोस्कोप से भी बामुश्किल दिखने वाले परमाणुओं में बेपनाह एनर्जी छुपी होती है। इस दो तरह से निकाला या इस्तेमाल किया जा सकता है।

पहला तरीका है कि परमाणु के न्यूक्लियस को तोड़कर। दूसरा तरीका है दो परमाणुओं के न्यूक्लियस को आपस में जबरन जोड़कर। दोनों ही तरीकों में बहुत ज्यादा एनर्जी निकलती है।

किसी परमाणु के न्यूक्लियस को तोड़ने के लिए तलवार की तरह न्यूट्रॉन का इस्तेमाल किया जाता है। खास तकनीक से न्यूक्लियस पर न्यूट्रॉन की बमबारी करते ही न्यूक्लियस टूट जाता है और उससे बहुत ज्यादा एनर्जी निकलती है।

अब टूटे से हुए न्यूक्लियस से निकले वाले न्यूट्रॉन दूसरे न्यूक्लियस से टकराते हैं और ज्यादा एनर्जी निकलती है। इस तरह यह प्रोसेस एक चेन रिएक्शन बन जाता है और इससे जबरदस्त एनर्जी निकलती है।

इस तकनीक को न्यूक्लियर फिजन या परमाणु विखंडन कहते हैं। इसमें हम एक बड़े परमाणु के न्यूक्लियस को दो छोटे तोड़ते हैं। इस तरीके से किए जाने वाले धमाके को परमाणु बम कहते है।

ठीक इससे उलट जब हम दो हल्के परमाणुओं के न्यूक्लियस को जबरन जोड़कर बड़ा न्यूक्लियस बनाते हैं तो इसे न्यूक्लियर फ्यूजन यानी परमाणु संलयन कहते हैं। इस प्रोसेस में भी भारी मात्रा में एनर्जी निकलती है।

इस तकनीक से किए जाने वाले धमाके को हाइड्रोजन बम कहते हैं। हालांकि आम बोलचाल दोनों तरह के हथियारों को परमाणु हथियार कहते हैं।

हाइड्रोजन बम में परमाणु बम के मुकाबले कई गुना ज्यादा एनर्जी निकलती है। हाइड्रोजन बम का विस्फोट करने के लिए बहुत हाई टेम्प्रेचर की जरूरत होती है। इसके लिए पहले परमाणु बम का विस्फोट करते हैं और इससे पैदा होने वाले हाई टेम्प्रेचर का इस्तेमाल न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए किया जाता है। इसलिए ऐसे परमाणु हथियारों को थर्मोन्यूक्लियर बम भी कहते हैं।

तोड़ने और जोड़ने के ये दोनों प्रोसेस आसान हों इसलिए ही यूरेनियम और प्लूटोनियम जैसे हैवी मैटर्स का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इस तरह हैवी मैटर अनस्टेबल होते हैं।

कब बना पहला परमाणु बम, कब हुआ इस्तेमाल?

अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपनहीमर को ‘परमाणु बम का पिता’ कहा जाता है।

  • 16 जुलाई 1945 को अमेरिका के न्यू मैक्सिको में हुआ दुनिया का पहला परमाणु परीक्षण ओपनहीमर की देखरेख में हुआ था।
  • पहले परमाणु परीक्षण से 19 किलोटन TNT के बराबर धमाका हुआ था और इससे 300 मीटर से ज्यादा चौड़ा गड्ढा बन गया था।
  • पहले परमाणु परीक्षण के धमाके के बाद ओपनहीमर ने कहा था कि उनके मन में श्रीमदभगवद्गीता के ये विचार आए थे-”अब मैं मृत्यु बन गया हूं, दुनिया का विनाशक।”
  • पहले परमाणु परीक्षण के महज एक महीने बाद ही जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर दुनिया में पहली बार परमाणु बमों का इस्तेमाल किया गया था।

हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम

दुनिया में पहली बार परमाणु बम का इस्तेमाल 06 अगस्त 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर अमेरिका ने किया था। अपने लंबे और पतले आकार की वजह से हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम को ‘लिटिल बॉय’ नाम दिया गया था। इसमें यूरेनियम 235 का इस्तेमाल हुआ था। उस परमाणु बम में 64 किलोग्राम यूरेनियम 235 का इस्तेमाल किया गया था, जिसके विस्फोट से 15 हजार टन TNT का धमाका हुआ था। हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 70 हजार लोगों की तुरंत ही मौत हो गई थी, जबकि इसके रेडिएशन से घायल होने से कुछ ही महीनों में कम से कम 76 हजार और लोग मारे गए थे।

नागासाकी पर गिराया गया परमाणु बम

हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम की तुलना में नागासाकी पर गिराया गया परमाणु बम ज्यादा गोल और मोटा था। इसे ‘फैट मैन’ नाम दिया गया था। इस परमाणु बम के मैटेरियर में प्लूटोनियम 239 का इस्तेमाल किया गया था। प्लूटोनियम 239 के न्यूक्लियर फिशन से हुए इस परमाणु विस्फोट से 21 हजार टन TNT का धमाका हुआ था। इस बम हमले से करीब 40 हजार लोगों की तुरंत मौत हो गई थी जबकि इसके रेडिएशन से घायल हुए करीब 30 हजार लोगों की कुछ महीने बाद मौत हुई थी।

लाखों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं परमाणु बम

परमाणु हथियार पृथ्वी पर सबसे खतरनाक हथियार हैं। ये हथियार पूरे शहर को तबाह कर सकते हैं, लाखों लोगों को मार सकते हैं। इसका असर पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों पर लंबे समय तक रहता है। इससे धरती पर जीवन के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो जाता है।

  • परमाणु बम धमाके के बाद उसके आसपास के इलाके का तापमान कई करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है।
  • परमाणु बम के धमाके से एक बड़े इलाके में पैदा हुई गर्मी इंसान के सभी टिश्यू को भाप बना देती है।
  • किसी बिल्डिंग में शरण लिए लोग विस्फोट से पैदा हुई शॉक वेव और गर्मी से मारे जाते हैं, क्योंकि इमारत ढह जाती है और उसमें मौजूद सभी ज्वलनशील पदार्थों में आग लग जाती है।
  • अंडरग्राउंड जगह में शरण लेने वाले लोग भले ही आग से बच जाएं लेकिन वे वातावरण से ऑक्सीजन खत्म होने से दम घुटने से मर जाएंगे।
  • कुल मिलाकर परमाणु बम के धमाके के बाद इंसान कहीं भी छिप जाए, उसका बच पाना लगभग नामुमकिन होता है।
  • परमाणु बम धमाके से जो लोग बच भी जाते हैं, वे भी घातक रूस से जल जाते हैं, अंधे हो जाते हैं, उन्हें घातक अंदरूनी चोट लग जाती है।
  • इस धमाके से निकलने वाले रेडिएशन से कैंसर का खतरा बहुत बढ़ जाता है। धमाके से प्रभावित इलाकों में 20 साल बाद तक लोग अपाहिज पैदा होते हैं। यहां तक कि उस इलाके के पेड़-पौधों तक ढंग से पनप नहीं पाते और फसलों की उपज तक प्रभावित हो जाती है।
  • परमाणु बम जलवायु और वातावरण पर किसी भी अन्य हथियार से ज्यादा बुरा असर डालते हैं। रेड क्रॉस का अनुमान है कि परमाणु युद्ध होने पर दुनिया की एक अरब आबादी भुखमरी से प्रभावित हो सकती है।

परमाणु बम से कई गुना ज्यादा घातक होते हैं हाइड्रोजन बम

हाइड्रोजन बम परमाणु बमों से भी हजार गुना ज्यादा घातक होते हैं और पूरी दुनिया को तबाह करने की क्षमता रखते हैं। दुनिया के पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण अमेरिका ने 01 नवंबर 1952 को मार्शल द्वीप पर स्थित एक छोटे एनिवेतोक नामक द्वीप पर किया था। इसके धमाके से कई 10 हजार मेगाटन TNT एनर्जी रिलीज हुई।

इसके धमाके से सूरज की रोशनी से भी चमकदार प्रकाश निकला और इससे निकली हीटवेव को 50 किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया था।

दुनिया में अब कई गुना ज्यादा घातक परमाणु हथियार हैं मौजूद

आधुनिक परमाणु हथियारों के सामने हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम कहीं नहीं टिकते हैं। अब रूस और अमेरिका के पास दुनिया को कई बार खत्म करने की क्षमता वाले परमाणु हथियार मौजूद हैं।

उदाहरण के लिए अमेरिका के पास सबसे ताकतवर परमाणु हथियार B83 हाइड्रोजन बम है, जोकि 1.2 मेगाटन का धमाका कर सकता है और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम से 60 गुना ज्यादा ताकतवर है।

वहीं सोवियत यूनियन द्वारा बनाया टीसार बॉम्बा (Tsar Bomba) अब तक का सबसे घातक परमाण हथियार है। परीक्षण में इससे 50 मेगाटन का धमाका हुआ था और ये नागासाकी पर गिराए बम से 2500 गुना ज्यादा ताकतवर था। रूस के पास अब इस घातक परमाणु बम का मॉडर्न वर्जन RDS-220 Tsar bomb के नाम से मौजूद है, जिसकी क्षमता पुराने बम से दोगुनी है।

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