महामंथन में मायावती के 3 बड़े फैसले … भतीजे आकाश को दोबारा नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया, सभी इकाइयां भंग की; हार के बाद गुड्डू जमाली की BSP में वापसी

यूपी विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने रविवार को लखनऊ में पार्टी पदाधिकारियों के साथ पहली बड़ी बैठक की। इसमें उन्होंने 3 बड़े फैसले लिए। पहला, भतीजे आकाश आनंद को दोबारा बसपा का नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया। दूसरा, प्रदेश में सभी इकाइयां भंग की। तीसरा, ओवैसी की पार्टी AIMIM से चुनाव लड़े गुड्डू जमाली को बसपा में वापस ले लिया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में मायावती ने 3 नए प्रभारी बनाए हैं। इनके नाम मुनकाद अली, राजकुमार गौतम और डॉ. विजय प्रताप है।

इसके बाद मायावती ने प्रेस कान्फ्रेंस की और भाजपा-सपा को निशाने पर लिया। साथ ही पार्टी को नए सिरे से यूपी में अस्तित्व में लाने के लिए अपना फ्यूचर प्लान भी बताया। पढ़िए मायावती के प्लान के खास पॉइंट-

  • भाजपा ने RSS के जरिए लोगों में भ्रम फैलाया कि मायावती को राष्ट्रपति बनवा देंगे। मेरे लिए राष्ट्रपति बनना बहुत दूर की बात है। मैं ये सपने भी नहीं सोच सकती। बहुत पहले कांशीराम ने भी यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। मैंने उनकी मजबूत शिष्या हूं।
  • चुनाव में मुस्लिमों ने सपा को एकतरफा वोट किया। लेकिन भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक सकी। न ही आगे रोक पाएगी। अब मुस्लिम पछता रहे हैं।
  • लगातार बैठकर होगी और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष कार्यकर्ताओं से भी बात करेंगी। 2024 के पहले संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ क्षेत्रीय नेताओं की भी फौज तैयार करेंगी।
  • शहरी निकाय के चुनाव और लोकसभा उप चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी शिरकत करेगी। साथ ही 2024 के आम चुनाव की तैयारियां भी अभी से शुरू कर दी जाएगी।
  • दलित, अति पिछड़े, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को जोड़ने के साथ-साथ सवर्ण समाज के गरीब लोगों को भी जोड़ने पर होगा फोकस
  • मेरा जाटव वोट बैंक अभी भी मेरे साथ है। अब दलित-मुस्लिम को साथ लाने की कवायद शुरू की जाएगी। 2007 के फार्मूले पर दूसरे समाज के लोगों को भी जोड़ने के लिए कैडर चलाया जाएगा
मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय प्रभारी बनाया है। अब पार्टी के अहम फैसलों में आकाश का दखल होगा। (फाइल फोटो)
मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय प्रभारी बनाया है। अब पार्टी के अहम फैसलों में आकाश का दखल होगा। (फाइल फोटो)

मायावती ने सभी विधानसभा प्रत्याशियों को लखनऊ बुलाया था। चुनाव में मिली हार की वजह पर मंथन करने के लिए मायावती ने पार्टी पदाधिकारियों, विधानसभा प्रत्याशियों के साथ महामंथन किया।

हम आपको बताते हैं मायावती के 3 बड़े फैसलों के बारे में…

1. आकाश आनंद को बनाया नेशनल को-ऑर्डिनेटर
मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को दोबारा बसपा का को-ऑर्डिनेटर बनाया है। आकाश आनंद 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त बसपा में सक्रिय हुए थे। 2019 में मायावती ने आकाश को बसपा का स्टार प्रचारक बनाया था। डिजिटल मंचों पर बसपा की जो तस्वीर 2022 चुनाव में नजर आई उसके पीछे आकाश आनंद ही थे। आकाश ने लंदन से MBA किया है।

आकाश आनंद पार्टी कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हुए।
आकाश आनंद पार्टी कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हुए।

2. गुड्डू जमाली की बसपा में वापसी
शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली BSP छोड़ गए थे। अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद बात नहीं बनी तो AIMIM में चले गए। विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए। मायावती ने अब उन्हें बसपा में वापस ले लिया है। माना जा रहा है कि जमाली आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बसपा के प्रत्याशी होंगे। यह सीट नेता विरोधी दल अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई है।

गुड्डू जमाली की बसपा में वापसी हो गई है। माना जा रहा है कि आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में वह बसपा प्रत्याशी होंगे। (फाइल फोटो)
गुड्डू जमाली की बसपा में वापसी हो गई है। माना जा रहा है कि आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में वह बसपा प्रत्याशी होंगे। (फाइल फोटो)

3. BSP की सभी इकाई भंग
मायावती ने बड़ा फैसला लेते हुए राज्य की सभी इकाइयों को भंग कर दिया है। अब इनका नए सिरे से गठन होगा। प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्षों को छोड़कर बाकी सभी इकाइयों को भंग कर दिया है। माना जा रहा है कि अभी मायावती कई और बड़े और कड़े फैसले ले सकती हैं। इसलिए मायावती अब लगातार अलग-अलग पदाधिकारियों के साथ बैठकें करेंगी।

बसपा की मीटिंग में पहुंचे महासचिव सतीश चन्द्र और विधायक उमाशंकर सिंह।
बसपा की मीटिंग में पहुंचे महासचिव सतीश चन्द्र और विधायक उमाशंकर सिंह।

हम आपको बता रहे हैं बसपा की हार की 10 खास वजह-

मायावती की हार के 10 मुख्य कारण

1. विपक्ष के तौर पर मायावती 2017 से 2022 तक प्रदेश में गायब ही रहीं। बसपा के कार्यकर्ता सरकार की नीतियों, फैसलों के विरोध में कहीं भी सड़क पर नहीं दिखे।

2. मायावती अपने भाषणों में कभी भी विकास की बात नहीं करतीं। जबकि योगी और अखिलेश दोनों ने चुनावी समर में विकास को बड़ा मुद्दा बनाया, लेकिन बहनजी के एजेंडे से विकास गायब ही रहा।

3. मायावती जाति के तिलिस्म से बाहर निकल ही नहीं पाईं। वह कभी दलित-मुस्लिम गठजोड़ की बात करती रहीं तो कभी दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण की।

4. युवाओं से जुड़ने और उन्हें बसपा से जोड़ने के लिए मायावती के पास ना ही कोई प्लान था और ना ही कोई विजन। उनके भतीजे आकाश आनंद भी इसमें नाकाम रहे।

5. चुनाव के ऐन मौके पर मायावती बाहर आईं। इससे पहले वो ट्विटर पर ही राजनीति कर रही थीं। 2017 में 19 सीटें और 2012 में 80 सीटें जीतने वाली मायावती इस बार एक ही सीट जीतीं। ये बसपा की घटती जमीनी पकड़ को दिखाता है।

6. बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इन्द्रजीत सरोज, लालजी वर्मा जैसे तमाम दिग्गज धीरे-धीरे बसपा से अलग होते चले गए। मायावती ने इन्हें बसपा में रोकने की कोई भी कोशिश नहीं की। पार्टी में मायावती के बाद की लीडरशिप शून्य हो गई।

7. मुस्लिमों का विश्वास जीतने में मायावती नाकाम रहीं। मुसलमानों को लगा कि मायावती अंदरखाने भाजपा के साथ हैं। मायावती के कुछ बयानों ने इस बात की तस्दीक भी की जिसमें वह लगातार भाजपा नहीं सपा को हराने की बात कर रही थीं और अपनी मु्ख्य लड़ाई सपा से बता रही थीं।

8. 2007 में 30 फीसदी से ज्यादा और 2022 में 13 फीसदी के आस-पास वोट मिलना ये दिखाता है कि बसपा का कोर वोटर भी इन 15 सालों में उससे छिटका है। मायावती उस विश्वास को बनाए रख पाने में नाकाम रहीं।

9. सबसे अहम वजह, बसपा का संगठन पूरे प्रदेश में दयनीय स्थिति में है। जिला पदाधिकारियों की बात तो छोड़िए तमाम भाईचारा समितियां जो 2007 के पहले बनीं थी आज वो कहीं चर्चा में नहीं हैं। गांवों में बसपा का झंडा उठाने वाले लोग ना के बराबर दिखते हैं।

10. प्रत्याशी चयन में बसपा पर हमेशा पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगता है। इस बार भी कई सीटों पर अच्छे प्रत्याशियों के बजाए अमीर और आर्थिक संपन्न प्रत्याशी ही नजर आए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी में टिकट वितरण किस तरह हुआ होगा।

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