दिल्ली में स्कूलों की मनमानी … बच्चे उठा रहे भारी बैग…अभिभावकों पर बढ़ा खर्च का बोझ
महामारी के दो साल बाद स्कूल पूरी तरह खुलते ही 10 से 30% तक फीस बढ़ाई। प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें खरीदने के लिए बनाया जा रहा है दबाव। इस पर सरकार ने अब तक कोई लगाम नहीं लगाई।
राजधानी में नए सत्र की शुरुआत के साथ ही स्कूल खुल गए हैं। दो साल बाद पूरी तरह से ऑफलाइन मोड में स्कूलों के खुलने से अभिभावकों को जोर का झटका लगा है। स्कूलों ने फीस में औसतन 10 से 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर दी है। वहीं, ड्रेस और किताबों की कीमतों में भी वृद्धि देखने को मिल रही है। अभिभावकों के बजट पर सबसे ज्यादा असर परिवहन डाल रहा है। परिवहन शुल्क में करीब एक से दो हजार रुपये बढ़ा दिए गए हैं।
निजी स्कूलों ने फीस में चुपके से औसतन 10 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी की है। वहीं, अभिभावकों से बीते सत्र की बकाया राशि भी मांगी जा रही है। यदि कोई बकाया राशि नहीं देता है तो कहा जा रहा है कि वह अपने बच्चों को कक्षाओं में न भेजें। कई जगह बच्चों का रिजल्ट भी लटकाया गया। स्कूलों की मनमानी के कारण अभिभावक मोटी फीस चुकाने के लिए मजबूर हैं।
दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने बताया कि दिल्ली के 460 स्कूलों को ट्यूशन फीस, विकास व वार्षिक शुल्क 15 फीसदी छूट के साथ लेने की मंजूरी मिली थी, लेकिन स्कूल 15 फीसदी की छूट नहीं दे रहे हैं। जिन 1500 स्कूलों को मंजूरी भी नहीं मिली वो भी फीस बढ़ाकर मांग रहे हैं। इसके लिए अभिभावकों की ओर से कई शिकायतें दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग और शिक्षा निदेशालय को भेजी गई हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। नए सत्र के लिए भी स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है। फीस और अन्य खर्चे मिलाकर एक बच्चे पर अभिभावकों को 15 से 25 हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, जबकि नर्सरी कक्षा में यह खर्च और ज्यादा है।
एमआरपी पर दे रहे किताबें, बाहर दुकानों पर 30 फीसदी की छूट
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के एक नामचीन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की अभिभावक अस्मिता ने कहा कि किताबें मंहगी दी जा रही हैं। स्कूल जो किताब मिल रही है वह एमआरपी पर हैं, जबकि बाहरी विक्रेता से लेने पर 30 फीसदी तक की छूट मिलती है। अपराजिता गौतम कहती हैं कि किताबें औसतन चार से छह हजार तक पड़ रही हैं। 2019 में कोर्ट का आदेश आया था कि सीबीएसई से संबद्ध स्कूल एनसीईआरटी किताबें ही पढ़ाएंगे, जबकि स्कूल प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें लेने के लिए मजबूर करते हैं। एनसीईआरटी की किताबें एक हजार से 2500 तक आ जाती हैं।
प्रतिमाह फीस
पहले अब
2800 3500
3000 4200
ड्रेस और जूते
पहले अब
1500 4000
परिवहन शुल्क
पहले अब
2500 4000
पुस्तकों का खर्च
कक्षा पहले अब
सात 3100 3500-3600
एक 4500 5990
चार 3000 4200
ध्यान रहे : यह औसतन खर्च है और तुलना 2020-21 व 2022-23 से की गई है। स्कूल के हिसाब से यह खर्चे अलग-अलग हो सकते हैं। फीस में अलग-अलग मदों में बढ़ोतरी की गई है।
परिवहन शुल्क पड़ रहा भारी
अभिभावक प्रेरणा ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले वह बच्चे को प्राइवेट कैब से भेजते थे, जिससे 1800 रुपये खर्च होते थे, लेकिन अब कैब वाले 3000 रुपये ले रहे हैं। कोई दिशा-निर्देश नहीं आने के कारण स्कूल परिवहन की व्यवस्था नहीं कर रहे हैैं। मजबूरी में प्राइवेट कैब का सहारा लेना पड़ रहा है। एसी व नॉन एसी कैब के लिए अलग-अलग शुल्क लिया जा रहा है। पहले कई अभिभावक परिवहन शुल्क के लिए 2500 रुपये का भुगतान करते थे, अब वह 4000 रुपये हो गया है।
स्कूल से ही ड्रेस-किताबों के लिए कर रहे मजबूर
अभिभावकों को स्कूल से ही नई ड्रेस और किताबें खरीदने को मजबूर किया जा रहा है। स्कूलों के मनमाने रवैये के कारण अभिभावक बाजार रेट से ज्यादा कीमत देने के लिए मजबूर हैं। ड्रेस पर लगभग 1400 से 1500 रुपये खर्च का आता था, जो अब बढ़कर 2300 रुपये तक हो गया है।