फैक्ट्रियों के जल ने छीनी हिंडन नदी की ऑक्सीजन … सहारनपुर में 40 साल पहले इसका पानी काली खांसी के लिए वरदान था, अब नदी कैंसर और चर्म रोग दे रही
सहारनपुर की शिवालिक पर्वत माला से निकलने वाली हिंडन नदी बीमारी का सबसे बड़ा कारक बनी हुई है। सहारनपुर का उद्गम स्थल से निकल कर 7 जिलों मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा से होती हुई दिल्ली से कुछ दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। कभी काली खांसी के लिए उपयोगी इसका पानी अब कैंसर, चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां बांट रहा है।
पुरातन में हिंडन का नाम हरनदी या हरनंदी था। लेकिन, अब नाम के साथ-साथ इसका काम भी बदल गया है। जनपद के कई गांव ऐसे हैं, जहां पर कैंसर कई जान जा चुकी है। इसका मुख्य कारण मात्र औद्योगिक इकाई है। लेकिन शासन-प्रशासन मौन है।
कारखानों से जहरीली हो गई हिंडन

पौराणिक कथाओं से लेकर इतिहास में जिस नदी का उल्लेख हैं। उस नदी में आज कारखानों का दूषित जल ही प्रवाह होता है। कभी घर, रसोई, खेत, मवेशी सब कुछ हिंडन के पानी पर निर्भर था।
4 दशक से हिंडन के किनारे लगी फैक्ट्रियों ने पानी तो दूषित किया ही साथ जलीय जीवों को मिलने वाली ऑक्सीजन को भी छीन लिया है। ऑक्सीजन का स्तर और नदी में जहरीली स्थिति पैदा करता दूषित पानी लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। घरेलू सीवरेज का पानी भी इसका प्रमुख कारण है।
जनहित फाउंडेशन ने भेजी थी रिपोर्ट

विभागीय आंकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने 2007 में जनहित फाउंडेशन की ओर से हिंडन नदी के बहते पानी और फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट पर शोध कराया था। इसमें काफी भयावह रिपोर्ट 16 साल पहले पेश की गई थी।
जिसमें हिंडन नदी को जीवित कराने और इसकी सफाई कराने की सलाह भी दी गई थी। लेकिन, समय के साथ-साथ सब कुछ दब गया। फाउंडेशन ने फैक्ट्रियों के दूषित जल के साथ सीवेज से निकलने वाले दूषित पानी को इसका आधार बनाया था। प्रशासन को पत्र लिखकर दूषित पानी को हिंडन में जाने को रोकने को पत्र भी लिखा गया था। लेकिन समय के साथ सब फाइल दब गई।
हिंडन से ऑक्सीजन की मात्रा हुई हिडेन

विडंबना है कि हिंडन नदी से ऑक्सीजन की मात्रा हिडेन हो चुकी है। विभागीय आंकड़ों पर नजर डाले तो हिंडन में बहने वाले कीचड़ युक्त पानी की BOD 48 मिलीग्राम/लीटर है। जबकि COD 188 मिलीग्राम/लीटर पहुंच गई है। हालांकि यह कागजी आंकड़े हैं।
क्योंकि अब हिंडन नदी में समय के साथ-साथ जलीय जीव भी सांस नहीं ले पा रहे हैं। पानी सिर्फ जानलेवा काईरोनॉस लार्वा मिलता है। जीवनदायी जल की जगह आर्सेनिक, सायनाइड, क्रोमियम, लोहा, सीसा, पारा जैसे जहर खतरनाक मात्रा को पार कर देते हैं। यह बात एनजीटी में हलफनामे बताई गई है कि जले में कुतबा माजरा, अंबेहटा, ढायकी, महेशपुर, शिमलाना आदि गांवों में गत आठ सालों में कैंसर से करीब 210 से ज्यादा मौतें हुई है।
इन इकाइयों का है योगदान
विभागीय रिपोर्ट के अनुसार, सरसावा किसान सहकारी चीनी मिल और पिलखनी कैमिकल्स एंड डिस्टलरहीज का गैर शोधित पानी सेंघली नदी से होते हुए हिंडन में आता है। नानौता की चीनी मिल, गंगेरी लिमिटेड, देवबंद का पीला रंग का पानी और एसएमसी फूड लिमिटेड का बदबूदार पानी सीधे कृष्णा नदी में जाता है, जो कि कुछ ही दूर पर हिंडन में मिल जाती है।
यूसुफपुर टपरी का शराब कारखाना तो बगैर किसी मध्यस्थ माध्यम के हिंडन में अपना जहर घोलता है। शाकंभरी शुगर मिल का जहरीला पानी बूढी यमुना के जरिए इसमें आता है।
इसी तरह काली नदी के जरिए भी चार कारखाने अपनी गंदगी का योगदान इसमें करते हैं। यहीं नहीं नगर निगम का स्लाटर हाउस भी 150 लाख किलोमीटर दूषित जल दूषित ढमोला नदी के जरिए हिंडन में पहुंचा रहा है।
क्षेत्रीय अधिकारी डाॅ.डीसी पांडेय ने बताया कि नदियों को बचाने के लिए समय-समय पर फैक्ट्रियों पर कार्रवाई की जाती है। ईटीपी का प्रयोग सही से न करने वाली फैक्ट्रियों पर नोटिस देने के बाद कार्रवाई भी की जाती है। फिलहाल में तीन कारखानों को बंद करने के आदेश दिए गए है।