अलवर में मंदिर ढहाने का विवाद, इनसाइड स्टोरी:जिस बोर्ड ने सहमति दी, उसमें 35 में 32 पार्षद BJP के
अलवर के राजगढ़ में जिन तीन मंदिरों पर गिराने पर विवाद और राजनीति तेज हो गई है। इस बीच भास्कर ने पूरे मामले का सच जानने की कोशिश की तो सामने आया कि जिस बोर्ड ने बुलडोजर चलाने की सहमति दी, उसमें 35 में से 32 पार्षद भाजपा के ही हैं।
असल में मास्टर प्लान और गौरव पथ के नाम पर 17 अप्रैल को मकान और 3 मंदिरों पर बुलडोजर चलाया गया था। शुक्रवार को मामला सामने आने के बाद बीजेपी और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है।
लोगों में गुस्सा था कि 300 साल पुराने मंदिरों को क्यों तोड़ा गया? मामले की पड़ताल की तो चौंकाने वाले फैक्ट सामने आए। अतिक्रमण हटाने की प्लानिंग 7 महीने से चल रही थी। मास्टर प्लान और गौरव पथ के रास्ते में कई मकान और तीन मंदिर आ रहे थे।
अधिकारियों को भी पता था कि इतनी बड़ी कार्रवाई को लेकर विवाद बढ़ सकता है। ऐसे में बचाव के लिए सितंबर में हुई बोर्ड बैठक में प्रस्ताव रखा गया, ताकि अधिकारियों पर कोई बात नहीं आए। कार्रवाई वाले दिन 150 पुलिसकर्मियों का जाब्ता मांगा गया। बोर्ड में शामिल 32 भाजपा पार्षदों समेत दो अन्य पार्षदों ने भी इसके प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। पालिका चुनाव में भाजपा के 14, निर्दलीय 20 और कांग्रेस का केवल एक पार्षद जीता था। बाद में दो को छोड़कर अधिकतर पार्षद भाजपा के समर्थन में आ गए थे। चेयरमैन चाहते तो इस पर आपत्ति जता ‘डिसेंट’ नोट लगा सकते थे। ऐसा किसी भी जनप्रतिनिधि ने नहीं किया।
विधायक ने कहा- भाजपा जिम्मेदार
राजगढ़ विधायक जौहरी लाल मीणा का कहना है कि मंदिर और अतिक्रमण भाजपा पार्षद और चेयरमैन के आदेश पर तोड़े गए। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रशासन और पालिका ही जिम्मेदार है।
प्रशासन ने अपनी मर्जी से किया
नगर पालिका चेयरमैन सतीश दहारिया ने कहा- नगर पालिका बोर्ड में गौरव पथ बनाने को लेकर प्रस्ताव लिया गया था। उसमें प्रस्ताव में ऐसा नहीं था कि गौरव पथ बनाने के लिए रोड को कितना चौड़ा किया जाएगा। यह भी नहीं बताया गया था कि अतिक्रमण कितनी दूरी तक हटेगा। बोर्ड के प्रस्ताव में मंदिर तोड़ने की बात ही नहीं है। यह सब प्रशासन ने अपनी मर्जी से किया है। अतिक्रमण हटाने के दो-तीन दिन पहले ही पार्षदों ने लिखकर भी दिया था।
लोगों ने कलेक्टर की रिपोर्ट को झूठा बताया, बोले- नाले में पड़ी थीं मूर्तियां
इस विवाद के बाद अलवर कलेक्टर की ओर से रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में एक जगह बताया गया कि अतिक्रमण हटाने से पहले मंदिर में रखी मूर्तियों को निर्माणकर्ताओं की ओर से हटा लिया गया था। लोगों का आरोप है कि उन्होंने अपने सामने मूर्तियों काे टूटते हुए देखा है। उनका यह तक दावा है कि मूर्तियां नाले में पड़ी मिली थीं, जिन्हें बाद में दूसरी जगह रखा गया।
बुजुर्ग रजनी बोली- बच्चे पड़ोसी के यहां सो रहे हैं, खाना कहां से लाएं
कार्रवाई के बाद लोगों में गुस्सा था। बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नेताओं के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। रजनी नाम की एक महिला फूट-फूटकर रो रही थी। उसने बताया कि हमारा घर ढहा दिया। अंदर भी नहीं जा सकते हैं। पड़ोसियों के घरों में बच्चों को रखा हुआ है। अब बच्चों को क्या खिलाएं? एक दुकान थी, उससे घर चलता था, वह तोड़ डाली।
किसी ने 150 साल तो किसी ने 200 साल पुराना बताया
एडवोकेट सुरेंद्र माथुर ने बताया कि एक मंदिर 300 साल पुराना व दो मंदिर 150 से 200 साल पुराने थे। हमारी सात पीढ़ियां इस मंदिर की पूजा कर रही हैं। मंदिर के पुजारी परिवार से अंकित विजय ने कहा कि हम पूजा करते आ रहे हैं। मंदिर पर बुलडोजर चला दिया गया। उन्होंने नाले से निकाली शिव परिवार की मूर्तियां दिखाईं। इधर, इस मामले के बाद राजगढ़ से सभी अधिकारी और जनप्रतिनिधि गायब हैं।
ईओ को पता था विवाद होगा, इसलिए 150 पुलिस का जाब्ता मांगा
मंदिर और 90 अतिक्रमण को हटाने के लिए 8 सितंबर 2021 को बोर्ड में प्रस्ताव लिया गया। इसे सभी की सहमति से पारित भी कर दिया गया। अतिक्रमण हटाने के लिए 2012 के मास्टर प्लान का हवाला दिया गया। ईओ बनवारी लाल मीणा को पता था कि विवाद हो सकता है। ऐसे में 12 अप्रैल 2022 को एसडीएम को लेटर लिख 150 पुलिसकर्मियों का जाब्ता मांगा। अब जब विवाद बढ़ा, तो वे खुद वहां से गायब हैं।
क्या कहते हैं नियम, अब डीएलबी ही कर सकती है चैलेंज
– अतिक्रमण दो तरह के होते हैं पहला ऑनर प्रॉपर्टी और दूसरा अनधिकृत (जो सरकार की जमीन होती है)। प्रॉपर्टी से अतिक्रमण हटाने के लिए पहले 7 दिन, इसके बाद 3 दिन और फिर 24 घंटे का नोटिस ऑनर को दिया जाता है। इसके बाद निकाय की ओर से कार्रवाई की जाती है।
– दूसरा अनधिकृत अतिक्रमण। इसके लिए प्रस्ताव लेने की जरूरत नहीं के बराबर होती है। मास्टर प्लान के अगेंस्ट है, तो पहले उन्हें चिन्हित किया जाता है।
– संबंधित अतिक्रमण इंस्पेक्टर इसकी मौका रिपोर्ट बनाता है और आयुक्त डीओ लेटर जारी करता है। (इसमें सूचित किया जाता है कि संबंधित अधिकारी की ओर से बनाई रिपोर्ट में अतिक्रमण चिन्हित किया गया है )
– अतिक्रमण हटाने के लिए अधिकतम 15 और कम से कम 7 दिन का समय दिया जाता है, नोटिस चिपका दिए जाते हैं।
इस मामले में हुआ क्या
– इस पूरी कार्रवाई को बोर्ड की दूसरी बैठक में शामिल किया गया। इससे पहले इसे प्रोसीडिंग में शामिल किया गया था। इसके चेयरमैन नगर पालिका अध्यक्ष और सचिव ईओ होते हैं। बोर्ड में प्रस्ताव लिया गया तो दोनों के पास डिसेंट नोट का अधिकार था। चाहते तो इस पर आपत्ति दर्ज करा सकते थे।
अब आगे क्या
– बोर्ड की बैठक में लिए प्रस्ताव को चैलेंज करने का अधिकार डीएलबी (डायरेक्टर ऑफ लोकल बॉडी) को है।