60 साल से दहेज बैन:डेढ़ घंटे में जलती है एक दुल्हन, राजस्थान-मध्यप्रदेश में दूल्हे देते हैं नकद और तोहफे
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की विश्वनाथगंज सीट से सपा प्रत्याशी रहे सौरभ सिंह की पत्नी ने उन पर दहेज के लिए जिंदा जलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया। आगरा में पत्नी के घरवालों ने डिमांड पूरी नहीं की तो पति ने उसे गंजा कर बिना कपड़ों के गांव में घुमाया। इस तरह की दहेज उत्पीड़न की कई घटनाएं हर दिन सुनने को मिल जाती हैं लेकिन दहेज पर लगाम नहीं लग पा रही है।
लॉकडाउन में बढ़े उत्पीड़न के मामले
लड़की भले ही कितनी काबिल, पढ़ी-लिखी हो लेकिन समाज में बिना दहेज के उसकी शादी होना नामुमकिन है। महाराष्ट्र की कोरो इंडिया एनजीओ से जुड़ीं प्रोग्राम कोऑडिनेटर सुजाता लवांडे ने वुमन भास्कर को बताया कि हमारे समाज की सोच है कि अगर लड़की को दहेज दिया जाएगा तो ससुराल में वह खुश रहेगी जबकि ऐसा नहीं है। हमारे यहां महीने में 6-7 केस दहेज उत्पीड़न के आते हैं। 3 महिलाओं ने तो इससे परेशान होकर आत्महत्या भी की। लॉकडाउन के बाद लड़कियों को दहेज के लिए ज्यादा परेशान किया गया। आजकल लोग सीधे दहेज नहीं मांगते। घर बनाना है, लड़के को बिजनेस शुरू करना है, इलाज के लिए पैसे चाहिए..इस तरह बहाने से वह लड़की के घरवालों से दहेज की मांग करते हैं। यह मिडिल क्लास परिवारों में ज्यादा है। इस मामले में सजा बहुत कम ही लोगों को मिलती है इसलिए लोगों में डर नहीं है।
इतिहास में नहीं कोई जिक्र
वैदिक काल में लड़कियों को उत्तराधिकारी बनने का अधिकार था लेकिन दहेज प्रथा नहीं थी। वहीं, ग्रीक इतिहासकार एरियन और मेगस्थनीज ने भी इस बात का जिक्र किया कि ग्रीक प्रशासक सिकंदर या अलेक्जेंडर द ग्रेट के समय में दहेज नहीं था। बल्कि लड़के दुल्हनों को सामान और पैसे देते थे।
ब्रिटिश काल में शुरू हुई प्रथा
1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने जमीन के निजीकरण पर बैन लगा दिया था। ब्रिटिश काल में महिलाओं को जमीन पर हक नहीं दिया जाता था। उन्होंने बेटी की शादी में नकद देना अनिवार्य कर दिया था। ऐसे में लड़की के माता-पिता ने शादी में उसे पैसे देना शुरू कर दिया जिस पर पति का हक होता था। ऐसे में पुरुषों ने इस हक का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
दहेज लेना-देना अपराध
वर्ल्ड बैंक ने भारत के गांव पर एक स्टडी की। साल 1960 से 2008 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में 40000 शादियां हुईं। इसमें 95% शादियों में दहेज दिया गया जबकि 1961 से यह गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जुबैर अहमद खान ने बताया कि दहेज निषेध अधिनियम 1 मई 1961 में लागू किया गया। अगर कोई दहेज के लिए प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए में मामला दर्ज होता है। इसमें जुर्माना और 3 साल की जेल हो सकती है। अगर दहेज के लिए लड़की की हत्या कर दी जाए तो आईपीसी की धारा 304 बी में केस दर्ज होगा। इसमें 7 साल से लेकर उम्रभर तक की जेल हो सकती है।
बिना दहेज की शादी करवातीं मैट्रिमोनी वेबसाइट
समाज के लिए दहेज अभिशाप है। ऐसे में कई मैट्रिमोनी वेबसाइट शुरू की गई हैं जहां वही लोग रजिस्टर कराते हैं जो दहेज के खिलाफ हैं। सऊदी अरब में रहने वालीं भारतीय एक्टिविस्ट अलीम खान फाल्की ने सिंपल निकाह के नाम से मैट्रिमोनी वेबसाइट शुरू की है। एंटी डाउरी मैट्रिमोनी डॉट कॉम भी इसी तरह की शादी को बढ़ावा दे रही है। आई डॉन्ट वॉन्ट डाउरी भी दहेज की लेन-देन पर अंकुश लगा रही है।