राष्ट्रगान की अनिवार्यता पर इस्लामिक पैरोकार बोले … सिर्फ मदरसे ही क्यों, बौद्ध और क्रिश्चियन स्कूल भी जन-गण-मन गाएं; सरकार ने जल्दबाजी में लिया फैसला

उन्नाव के कांजी मोहल्ला के दारुल-उलूम-फैज-ए-आम स्लामिया मदरसे में आज रोज से अलग माहौल था। सुबह तालीम से पहले बच्चों को एक लाइन में खड़ा होने को कहा गया। फिर सावधान मुद्रा में सभी ने राष्ट्रगान पढ़ा।

मदरसा शिक्षा में इस नए बदलाव की वजह है योगी सरकार का एक फैसला। UP मदरसा शिक्षा बोर्ड परिषद ने मदरसों में अब पढ़ाई से पहले राष्ट्रगान गाना जरूरी कर दिया है। इस फैसले पर हमने शाइस्ता अंबर, मौलाना शहाबुद्दीन रजवी, मौलाना यासूब अब्बास और जफरयाब जिलानी से बात की।

राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए किसी को सर्टिफिकेट देने की जरूरत नहीं

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं, “मदरसों में राष्ट्रगान का ऑर्डर मेरी समझ से सिर्फ सियासत का मामला है। देश में दूसरे भी जरूरी मुद्दे हैं, सरकार को उन पर ध्यान देना चाहिए। आजकल सिर्फ ज्ञानवापी मस्जिद, मदरसों में राष्ट्रगान हो रहा है कि नहीं, यही सब बातें हो रही हैं। क्या सारे नियम हमारे लिए ही हैं। क्या वो (सरकार) जिन्हें कहेंगे वहीं राष्ट्रभक्त होंगे। हमें अपनी राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए किसी को सर्टिफिकेट देने की जरूरत नहीं है।”

राष्ट्रगान का मुद्दा लेकर मदरसों को किया गया टारगेट
वो आगे कहती हैं, “सरकार राष्ट्रगान गाने के लिए केवल मदरसों को ही क्यों कह रही है और भी तो स्कूल हैं। क्रिश्चियन स्कूल, सिख स्कूल, बौद्ध स्कूल हैं, इनमें क्या हो रहा है। इनसे भी पूछना चाहिए था। सरकार को केवल हमसे से ही क्यों प्रॉब्लम है।”

मदरसों में राष्ट्रगान गाने पर सरकार की तरफ से जारी किया गया आदेश।
मदरसों में राष्ट्रगान गाने पर सरकार की तरफ से जारी किया गया आदेश।

शाइस्ता कहती हैं, “सरकार को एक पर्टिकुलर कम्युनिटी को निशाना बनाकर फैसले नहीं लेने चाहिए। बल्कि एक सिस्टमाइज तरीके से ऐसी व्यवस्था शुरू करनी चाहिए। पहले मदरसों के जिम्मेदार लोगों और बड़े शिक्षकों की राय ली जाती हो अच्छा रहता है।”

मदरसों के 55000 लोगों ने आजादी के लिए कुर्बानियां दी, सरकार इन्हें हार भी पहना सकती है

तंजीम उलेमा ए इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा, “ये सिर्फ इसलिए हो रहा है कि लोग इसका विरोध करें, लेकिन हम तो हमेशा से जन-गण-मन पढ़ते आए हैं। जंग-ए-आजादी में मदरसों से वाबस्ता रखने वाले 55000 लोगों ने कुर्बानियां दी हैं। सरकार राष्ट्रगान गाने की बात कर सकती है, तो हर गली चौराहों में आकर इन लोगों के परिवार वालों को हार भी पहना सकती है।”

धर्म से जुड़े हर एक शिक्षण संस्थान में राष्ट्रगान हो अनिवार्य

शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना यासूब अब्बास ने कहा, “सिर्फ मदरसों में क्यों सरकार को धर्म से जुड़े हर एक शिक्षण संस्थान में राष्ट्रगान को अनिवार्य करना चाहिए। इसपर राजनीति करना ठीक नहीं है।”

हमने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जिलानी को भी फोन किया, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से उनसे बात नहीं हो पाई।

उन्नाव के दारुल-उलूम-फैज-ए-आम स्लामिया मदरसे में राष्ट्रगान गाते बच्चे।
उन्नाव के दारुल-उलूम-फैज-ए-आम स्लामिया मदरसे में राष्ट्रगान गाते बच्चे।

मदरसों में जन-गण-मन की जगह पढ़ा जाता रहा है सूफियाना सलाम
मदरसों में भी ठीक उसी तरह से पढ़ाई होती है, जैसे किसी आम स्कूल में होती है। जैसे पढ़ाई से पहले प्राइवेट स्कूलों में सरस्वती वंदना ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ या फिर मिशनरी स्कूलों में ‘ओ माई गॉड, ऑलमाइटी इज इन यू’ जैसी प्रेयर होती हैं। ठीक वैसे ही मदरसों में भी अलग-अलग दुआओं से दिन की शुरुआत होती है।

कुछ मदरसों में अल्लामा इकबाल के गीत ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ तो कुछ में ‘लब पे आती है दुआं बन के तमन्ना मेरी’ गीत गाया जाता है। यूपी के मदरसों में सूफियाना सलाम, कौमी तराना और दूसरी दुआएं पढ़ी जाती हैं।

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