नगरीय निकाय चुनाव … नगर निगम में पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशियों का आरक्षित से ज्यादा सीटें जीतने का ट्रेंड, इस बार भी ऐसे ही आसार
- ओबीसी आरक्षण के लिए मची उथल-पुथल के बीच दैनिक भास्कर ने किया नगर निगम के पिछले तीन कार्यकालों का विश्लेषण
- जानकारों ने माना… पिछड़ा वर्ग के नेताओं की पकड़ और जीत का प्रतिशत ज्यादा
नगरीय निकाय चुनाव की तारीखें जल्द घोषित हो सकती हैं। वार्डों में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर चर्चा के बीच इस वर्ग के नेताओं ने पार्षद पद के टिकट को लेेकर अपनी दावेदारी जताना शुरू कर दिया है। ऐसे में दैनिक भास्कर ने नगर निगम के पिछले तीन कार्यकाल का विश्लेषण किया। इससे ट्रेंड पता चला कि पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी आरक्षित से ज्यादा सीटें जीतते रहे हैं। पिछले तीन चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो जीते हुए प्रत्याशियों में 35 से 44 फीसदी तक पार्षद पिछड़े वर्ग के ही चुने गए।
हालांकि चुनाव के लिए आरक्षण 25 फीसदी ही था। तमाम ऐसे वार्ड हैं जो सामान्य हैं, लेकिन यहां राजनीतिक दलों के पास ऐसा कोई सामान्य वर्ग का प्रत्याशी नहीं है, जो सीट निकाल सके। ऐसे में एकमात्र विकल्प होने के कारण पिछड़े वर्ग के कार्यकर्ता को ही प्रत्याशी बनाया जाता है। इस बार ओबीसी के लिए आरक्षित वार्डों की संख्या बढ़ने के आसार हैं। वार्डों की संख्या 17 से बढ़कर 20 हो सकती है। इसके बावजूद ट्रेंड को देखते हुए जानकारों का मानना है कि ओबीसी के नेता आरक्षित वार्डों के अलावा भी चुनकर परिषद में पहुंचेंगे।
पिछड़ा वर्ग बड़ा है, इस वर्ग के कार्यकर्ता सामान्य वार्डाें से भी दावेदार होते हैं
आरक्षण अपनी जगह है, पार्टी द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने की बात है तो पार्टी उस कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाती है, जिसकी क्षेत्र में पकड़ हो और वह चुनाव जीत सकता हो। पिछड़ा वर्ग बहुत बड़ा वर्ग है। ऐसे में इस वर्ग के तमाम कार्यकर्ता सामान्य वार्डों से भी दावेदार होते हैं।
-विवेक शेजवलकर, सांसद
संख्या बल में पिछड़ा वर्ग की स्थिति मजबूत, टिकट भी ज्यादा मिलते हैं
चूंकि पिछड़ा वर्ग में बहुत सारी जातियां शामिल हैं। इसलिए संख्या बल में इनकी स्थिति मजबूत है। इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टियां टिकट भी बांटती हैं। जब प्रत्याशी ज्यादा होंगे तो उनके चुनकर आने की संभावना भी ज्यादा होगी।
-डॉ. देवेंद्र शर्मा, शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष
पिछड़ा वर्ग के नेताओं की पकड़ अन्य लोगों से ज्यादा
शहरी क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के तमाम कार्यकर्ता वर्षों से अपने क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में उनकी पकड़ अन्य लोगों से ज्यादा है। यही कारण है कि इस वर्ग के कार्यकर्ता आरक्षित सीटों से ज्यादा संख्या में जीतकर आते हैं। राजनीतिक दल भी इस वर्ग के नेताओं को टिकट ज्यादा देती हैं।
-रविंद्र राजपूत, पूर्व पार्षद
सामान्य वार्ड में जीतते हैं पिछड़े वर्ग के नेता
आरक्षण संवैधानिक अधिकार है। पिछड़े वर्ग के तमाम ऐसे नेता हैं, जो अपनी मेहनत और जनता से सीधे संपर्क की दम पर चुनाव जीतते हैं। वे अपने पूरे कार्यकाल में लोगों से जुड़े रहते हैं। नतीजा- जब उनका वार्ड आरक्षित नहीं रहता तो भी वे सामान्य रूप से चुनाव लड़कर जीतते हैं।
-अलबेल सिंह घुरैया, पूर्व पार्षद