आरक्षण अपनी जगह, लेकिन पिछले पंचायत चुनाव में 48 हजार सामान्य पदों पर भी एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के उम्मीदवार ही जीते

सामान्य सीटों पर भी जो वर्ग संख्या में ज्यादा, उसके प्रत्याशी आसानी से जीत जाते हैं।

पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण की कवायद अपनी जगह है, लेकिन मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों के लिए जातिगत समीकरण सबसे अहम हैं। पिछले पंचायत चुनाव में भी आरक्षण के बावजूद 3 लाख 91 हजार पदों में से 12% यानी 48 हजार 387 ऐसे पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी, जो सामान्य (अनारक्षित) थे। इनमें महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं। अनारक्षित पद 1 लाख 89 हजार 279 थे, जिनमें से 1 लाख 47 हजार 293 पद ही सामान्य उम्मीदवारों को हासिल हो सके।

जाति अहम जहां जिस वर्ग की आबादी ज्यादा है, वहां आरक्षण से भी ज्यादा सीटें उस वर्ग को मिल जाती हैं। अनारक्षित सीटों पर भी एससी-एसटी, ओबीसी या महिला उम्मीदवारों के लड़ने पर कोई रोक नहीं है। इस कारण जातिगत प्रभाव वाले उम्मीदवार इन सीटों पर जीत जाते हैं।

ऐसे समझिए… चुनाव का ट्रेंड

पिछले पंचायत चुनाव में 22,604 सरपंच, 3 लाख 60 हजार 847 पंच, 312 जनपद पंचायतों के 6774 सदस्य और 50 जिला पंचायतों के 841 सदस्यों के लिए चुनाव हुआ। 2 लाख 1 हजार 787 पद आरक्षित थे। इनमें से 2 लाख 25 हजार 51 पंच, 18183 सरपंच, 5269 जनपद सदस्य और 671 जिपं सदस्य एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग से चुने गए।

इस वर्ग के पंचों के लिए 55632 पद आरक्षित थे। इनके अलावा 34,700 पंचों के पद ओबीसी वालों ने सामान्य से छीने। सरपंच के लिए सामान्य वर्ग के 3268 पदों पर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों ने फतेह हासिल की थी। जनपद-जिपं सदस्यों के अनारक्षित 1215 पदों पर आरक्षित वर्ग के लोग जीते।

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