भोपाल। गुना में आरोन के जंगलों में शिकारियों की मुठभेड़ पुलिस से हुई, यह संयोग था। खाकी वाले बलिदानी हुए तो नीचे से ऊपर तक सबकी नजरें कानून को चुनौती देने वालों पर तिरछी हो गईं। ऐसे में मौके का फायदा जंगल महकमे के जिम्मेदारों ने उठाया। दो दिन कदम-ताल की फिर धीरे से पतली पगडंडी पकड़ ली। अय्यारों का कहना है कि जंगल का चप्पा-चप्पा छानने वालों से शिकारियों का कभी सामना नहीं हुआ, यह कैसा अद्भुत संयोग था? जांच की आंच और यह आग जंगल विभाग तक पहुंचनी थी। यह बात अलग है कि लहू खाकी का बहा और उन्हीं का अधिकारी भी चलता किया गया। जंगल महकमे में तो बीटगार्ड तक नहीं हटाया गया। अब जानने वाले इसमें अलग-अलग समीकरण तलाश रहे हैं, लेकिन वे कह रहे हैं, हम लाए हैं तूफां से कश्ती निकाल के…इस कुर्सी को तुम रखना संभाल के…।

भोपाल की सांसद हैं। महिला हैं। साध्वी हैं। संवेदनशील हैं। राष्ट्र इनके लिए सर्वोपरि है। महिलाओं के लिए महिला होने के नाते हर समय उपलब्ध रहती हैं। इसके बावजूद कुछ दिन पहले अपने एक बयान से साध्वी प्रज्ञा सिंह ने महिलाओं को ही सोचने पर कर दिया। दरअसल, रेलवे के एक बड़े अफसर पर दुष्कर्म का आरोप लगने और जमानत खारिज होने के मामले में सांसद ने पीड़िता को ही यह कहकर कठघरे में खड़ा कर दिया कि महिला ने भी क्यों समर्पण किया था। अब यह बयान सुनकर महिला बिरादरी में चर्चा है कि आखिर साध्वी को पीड़िता का दर्द क्यों नजर नहीं आया। उन्होंने घटना में आरोपित की ज्यादती को आखिर कैसे अनदेखा कर दिया। दूसरा सवाल कानून के लंबे हाथों पर उठ रहा है। चर्चा यह भी है कि पुलिस को आरोपित ढूंढे से नहीं मिल रहा और खबर आ गई उसने अपने नए ठिकाने पर आमद भी दे दी है।
अब फिक्र न्यायिक जांच की
उच्चतम न्यायालय की कमेटी ने 2019 में हैदराबाद में महिला चिकित्सक से दुष्कर्म के चार आरोपितों के एनकाउंटर को पूरी तरह फर्जी बताया है। इस खबर को सुनते ही गुना में वर्दी वालों के कान खड़े हो गए हैं। कल तक जो वर्दी वाले पदोन्नति का सपना देख रहे थे, आज उनकी पेशानी से पसीना टपक रहा है। चिंता यह भी है कि देर-सबेर जब न्यायिक जांच शुरू होगी तो सबूत और कागज ही बोलेंगे। हां, कागज के साथ वे भी बोल सकते हैं, जिनके पांव में गोलियां लगी हैं। गुना मामले में जिंदा बचे दो शिकारियों ने अभी तो तोते की तरह बयान पढ़ दिए हैं, लेकिन कठघरे में वे बदले तो मुठभेड़ को सही साबित करना आसान नहीं होगा। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारी अब पुरस्कार, पदोन्नति की फाइलें किनारे कर उन कागजातों को पुख्ता करने में लगे हैं जिनमें दर्ज है कि शिकारियों को ले जा रही जीप सड़क से कैसे उतरी
मैडम नहीं, कूल रहता है केबिन
पहियों वाले विभाग के राजधानी के कार्यालय में पदस्थ एक महिला अधिकारी लगातार चर्चाओं में बनी रहती हैं। हाल यह है कि कभी यहां साहब का 11 सालों से एक ही पद पर टिका रहना गर्मागर्म मुद्दा था, लेकिन मैडम के कारनामे ऐसे हैं, जिसके चलते बड़े साहब की चर्चाएं ठंडी पड़ गई हैं। साहब का दफ्तर में आना-जाना भी अफलातूनी था। खुलने से पहले और बंद होने के बाद ही वे दफ्तर में कदम रखते थे। मैडम तो इनसे भी कई कदम आगे है, पूरे दफ्तर को ही घर ले जाती हैं। रात के अंधेरे में कारों में फाइलें ढुलती हैं। देर रात घर पर दफ्तर सजता है। वजन के हिसाब से फाइलों का दाम तय होता है। मैडम कितनी कूल हैं यह फाइलें बढ़वाने वाले ही जानें, लेकिन मैडम का केबिन हमेशा कूल रहता है। उनके एसी में आफ का बटन ही नहीं है।