भिण्ड … फिर अटका जिला जेल का निर्माण ?

31.40 करोड़ की नई स्वीक्रति के लिए गया प्रस्ताव भी लंबित

13 साल से भी बन पाई जेल , वर्ष 2009 में शुरू किया था काम

भिण्ड. गुजरे 13 साल से जिला जेल का निर्माण चल रहा है। बावजूद इसके अभी तक जिला जेल बनकर तैयार नहीं हो पाई है। इतने वर्षों के बीच-बीच में कभी एक तो कभी दो साल के लिए निर्माण रुक गया। इस वर्ष फिर से निर्माण मार्च 2022 से रुक गया है।

उल्लेखनीय है कि निर्माण कार्य पुन: शुरू कराए जाने के लिए लोक निर्माण के पीआईयू विभाग द्वारा फिर से 08 करोड़ 25 लाख रुपए का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। 500 बैरक वाली जिला जेल का निर्माण फिलहाल 80 फीसद हो चुका है। ऐसे में शेष 20 फीसद कार्य पर आठ करोड़ 25 लाख खर्च होने हैं। हालांकि इसके लिए फिलहाल शासन से स्वीकृति नहीं मिली है। लिहाजा सरकार से स्वसीकृति मिली तो जिला जेल की कुल लागत 31 करोड़ 40 लाख रुपए हो जाएगी।

चार गुना बढ़ गई निर्माण की लागत

विदित हो कि वर्ष 2009 में जिला जेल का निर्माण महज नौ करोड़ रुपए में पूरा किया जाना था। संबंधित ठेकेदार द्वारा कुछ समय काम करने के बाद छोडक़र चले जाने पर पुन: प्रस्ताव तैयार कर रीटेंडर किए गए। वर्ष 2016 में लागत दो गुना से भी ज्यादा बढक़र 23 करोड़ हो गई। नए ठेकेदार द्वारा भी करीब छह से आठ माह काम करने के बाद निर्माण को अधर में छोड़ दिया गया। इस तरह वर्ष 2022 तक लागत बढ़ते-बढ़ते 31 करोड़ 40 लाख पर पहुंच गई है। हालांकि विभागीय अधिकारियों का दावा है शासन से निर्माण की स्वीकृति मिलते ही छह माह में काम पूरा कर लिया जाएगा।

तो नौ करोड़ में तैयार होकर अभी तक संचालित हो जाती जिला जेल

बता दें कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा विभागीय अधिकारियों ने जिला जेल का निर्माण कार्य शुरू होने के साथ-साथ बारीकी से मॉनीटरिंग की होती तो न केवल निर्धारित अवधि में जेल बनकर तैयार हो जाती बल्कि लागत भी सिर्फ नौ करोड़ रुपए ही रहती। मगर जनता के खून पसीने की कमाई से जमा किया गया टैक्स रूपी धन अनदेखी और लापरवाही के चलते पानी की तरह बहाया जा रहा है। परिणामस्वरूप जिला जेल की लागत आज तकरीबन चार गुना हो गई है।

बंदियों को शिफ्ट करने में हो रही परेशानी

विदित हो कि जिला मुख्यालय पर जेल संचालित नहीं होने के कारण जिला न्यायालय में पेश होने के बाद जेल के लिए भेजे जाने वाले बंदियों को लहार, मेहगांव तथा गोहद जेल के अलावा ग्वालियर की जेल में शिफ्ट कराए जाने की परेशानी उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा बंदियों के परिजनों को मिलाई के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। वहीं बंदियों का स्वास्थ्य परीक्षण जिला मुख्यालय पर सहज हो जाता था जबकि कस्बाई क्षेत्र की उप जेलों में यह सुविधा समय पर मुहैया नहीं हो पा रही है।

ठेकेदारों द्वारा बीच में कार्य छोड़ दिए जाने तथा लागत बढ़ जाने से दोबारा टेंडर प्रक्रिया कराई जाती रहीं। ऐसे में लागत नौ करोड़ से बढ़कर 31.40 करोड़ हो गई है। अब स्वीकृति मिलने के बाद महज छह महीने में काम पूरा कर लिया जाएगा।

पंकज परिहारएसडीओ पीआइयू भिण्ड

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