2 कमरों में बंद 250 लोगों की मौत का राज …?
सुलझ सकती हैं मर्डर मिस्ट्री, लेकिन तीन राज्यों की पुलिस केस तक भूली…
फिल्म एक्टर सुशांत सिंह की संदिग्ध मौत साल 2020 में काफी सुर्खियों में रही। मौत को लेकर तरह-तरह के सवाल उठते रहे। मारा गया या उन्होंने सुसाइड किया। पोस्टमार्टम में सुसाइड का खुलासा हुआ, लेकिन इस सच को कोई मानने को तैयार नहीं था। तब विसरा रिपोर्ट ने ही मौत का राज खोला कि सुशांत के शरीर में किसी तरह का कोई जहर नहीं पाया गया है। ऐसे ही संदिग्ध केस जब सामने आते हैं तो पुलिस को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है विसरा की। लेकिन मौत का राज खोलने वाला यह विसरा जयपुर के एसएमएस थाने में सड़ांध मार रहा है। थाने की दो कोठरियों में करीब 250 लोगों की मौत का राज पिछले 7 साल से कैद है। …… ने उन बंद कमरों को खुलवाया तो चौंकाने वाला सच सामने आया…।
ये विसरा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाण राज्यों के मरने वाले लोगों का है, जिसे आजतक पुलिस लेकर नहीं गई। मतलब साफ है… मौत का असली कारण जाने बिना कई केस रफा-दफा कर दिए गए हैं। ये विसरा इतना महत्वपूर्ण होता है कि मौत की कई गुत्थियां सुलझ सकती हैं। पुलिस हत्यारों तक पहुंच सकती है। कई परिवार अपने परिजन की मौत के कारण की सही वजह जानने के लिए भटकते रहते हैं, लेकिन विसरा जांच करवाने की बजाय पुलिस केवल पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही दिखाती है। पिछले दिनों जयपुर में भी एक ऐसा केस देखने को मिला।
आखिर क्यों रखा गया है विसरा
राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों से लोग इलाज के लिए जयपुर के SMS हॉस्पिटल लेकर आते हैं। इसमें एक्सीडेंट, जहरखुरानी, सुसाइड का प्रयास, हत्या के प्रयास के रेफर केस भी होते हैं। इलाज से मरीज जिंदा रहे तो पुलिस केस बयानों से निपट जाता है। लेकिन, इलाज के दौरान मौत होने पर शव का पोस्टमार्टम एसएमएस की मॉर्च्यूरी में होता है। ऐसे केस में पोस्टमार्टम की जिम्मेदारी एसएमएस थाना पुलिस की होती है।
पुलिस की मजबूरी बना विसरा रखना
पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सौंपने के बाद भी SMS अस्पताल पुलिस थाने की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ-साथ हत्या, आत्महत्या जैसे अहम केस में मरने वालों का विसरा भी सबूत के तौर पर एक केन में इकट्ठा कर रखा जाता है। ताकि मौत की सही वजह जानने के लिए इसकी जांच करवाई जा सके।
पिछले 7 सालों में करीब 250 लोगों का विसरा इकट्ठा कर थाने में रखा हुआ है। थाने के 2 कमरे पूरी तरह भर गए हैं। किसी भी केस के खत्म होने के बाद भी पुलिस विसरा को नष्ट नहीं कर सकती। यही बात एसएमएस थाना पुलिस के लिए परेशानी बन चुकी है। संबंधित केस अधिकारी उसे एफएसएल जांच के लिए ले जाए तब जाकर विसरा का निस्तारण हो सकता है।
पुलिस भी केस को निपटाने का आसान रास्ता निकालती है। थाने में दर्ज केस में पोस्टमार्टम रिपोर्ट लगाकर फाइल कर दिया जाता है। शिकायतकर्ता को पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाकर शांत कर देते हैं। केस के आसानी से रफा-दफा होने पर विसरा की जरूरत हीं नहीं पड़ती। मौत की असल वजह दबी रह जाती है। केस अफसर की ओर से एफएसएल भेजकर रिपोर्ट लेने की बजाय ये विसरा SMS अस्पताल थाने में रखा रह जाता है।
केस में पेंच फंसने पर आते हैं दौड़कर
कई बार पेंच फसने पर यही विसरा अहम भूमिका निभाता है। पिछले सात सालों में कुछ केस ऐसे भी थे, जिसमें विसरा को लेने दूसरे राज्य की पुलिस जयपुर तक दौड़ी आई। गंध भरे कमरे में रखे विसरा को तलाश कर अपने साथ ले गई। केस फंस जाने या कोर्ट के तलब करने पर ही जांच अधिकारी विसरा लेने आते हैं। ताकि मौत की असल वजह जानने के लिए विसरा रिपोर्ट पेश कर सकें।