तोड़फोड़ न करो बिल आपके पिताजी ही भरेंगे …?
हिंसा और सरकारी संपत्ति को आग लगाने से आपकी बात मानी जाए या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन उसकी भरपाई आपके साथ-साथ सभी कोकरनीहोगी …
ग्वालियर। हिंसा और सरकारी संपत्ति को आग लगाने से आपकी बात मानी जाए या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन उसकी भरपाई आपके साथ-साथ सभी को करनी होगी, यह एकदम तय है। अग्निपथ पर जमकर बवाल मचा हुआ है। कई राज्यों में अभी तक हजारों करोड़ की सरकारी संपत्ति जला दी गई है। ऐसा तो है नहीं कि इन संपत्तियों का पुनर्निर्माण नहीं होगा। आपने पांच हजार करोड़ की संपत्ति में आग लगाई उसे बनाने में अब दस हजार करोड़ खर्च होंगे। क्या है कि सरकारों के पास कोई पैसे का पेड़ थोड़ी है। वह क्या करेंगी, भरपाई करने के लिए कुछ चीजों पर जीएसटी बढ़ा देंगी। पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और राज्य अपना वैट बढ़ा देंगे। तो जो तोड़फोड़ हुई थी उसका खर्चा आपके बिजली,पानी,पेट्रोल-डीजल, खानपान के बिल में जीएसटी के रूप में जुड़कर आपके ही सामने आ जाएगा। इसलिए रुक जाओ अग्निपुत्रो अपने पिताजी के पैसों में आग मत लगाओ।
अब सवर्णो की पार्टी नहीं है भाजपा
जनमानस में एक बहुत ही आम धारणा है कि भाजपा सवर्ण समाज जैसे ब्राह्मण, जैन, वैश्य, ठाकुरों की पार्टी है और कांग्रेस दलित,अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखती है। हालांकि अब भाजपा खुद को सवर्ण पार्टी की छवि से दूर कर रही है। ग्वालियर अंचल में इसके संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं। ओबीसी आरक्षण पर भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक जमकर लड़ाई लड़ी और चुनाव में 26 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित करा लीं। अब एक कदम आगे बढ़ते हुए ग्वालियर में 10 पार्षदी के टिकट अनारक्षित सीट होते हुए ओबीसी को दिए गये हैं। ऐसा करके आरक्षित वर्ग का हितैषी दिखाने का पार्टी ने भरसक प्रयास किया है। हालांकि सवर्ण की नाराजगी का खतरा भी बढ़ गया है। क्योंकि 2018 में आरक्षण पर भाजपा नेताओं द्वारा दिया माई के लाल वाला बयान और एससी-एसटी संशोधन बिल के विरोध में यह समाज नाराज हुआ था। असर यह था कि जिस अंचल से भाजपा की सरकार प्रदेश में बनती है वहीं से सरकार की विदाई हो गई थी।
प्रेम गली अति सांकरी ता में दो ना समाय
कबीर दास कहते हैं कि यदि विशुद्घ प्रेम है तो फिर उसमें मैं और तू नहीं हो सकता सिर्फ तू ही तू होना चाहिए। यानि सब कुछ तेरा,मेरा कुछ नहीं। वैसे राजनेताओं का प्रेम कुछ अलग तरह का होता है। अब देखो ना यहां दोनों केंद्रीय मंत्रियों में इतना प्रेम है कि मेयर के एक टिकट पर तक सहमति नहीं बन पाई। ग्वालियर का टिकट भाजपा हाईकमान को अंतिम समय तक रोके रहना पड़ा। आखिरकार एक निर्गुट भाजपा नेत्री को टिकट देकर पार्टी ने दोनों की बात नहीं मानी। इससे यह साफ है कि यहां भविष्य में सामान्य भाजपा कार्यकर्ताओं के भाग्य खुलते रहेंगे। क्योंकि सिंधिया और तोमर अपने लोगों के नाम पर अड़े रहेंगे और पार्टी सामंजस्य बिठाने के लिए बीच का रास्ता अपनाती रहेगी। जैसा अभी अपनाया।
केंद्र कम्युनिकेशन स्किल सुधारे
टीवी की कोई भी डिबेट उठाकर देख लीजिए यदि सबसे ज्यादा तेज और सर्वाधिक समय तक कोई बोल रहा होगा तो वह भाजपा का प्रवक्ता ही होगा। लेकिन क्या कारण है कि भाजपा के यह प्रवक्ता अपनी सरकार की नीतियों को ठीक ढंग से उस वर्ग के सामने नहीं रख पाते जिससे संबंधित वह योजना है। क्योंकि एक बार फिर कई शहर जल रहे हैं। इस बार युवा गुस्साए हुए हैं। कारण है सेना भर्ती की नई लांच की गई अग्निपथ स्कीम। बिहार, उप्र, हरियाणा, राजस्थान, ग्वालियर चंबल सहित कई शहर हिंसा की चपेट में हैं। कुछ ऐसा ही कृषि संशोधन बिल के बाद हुआ था। आखिकार उसे वापस लेना पड़ा। मैं मानता हूं कि इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे विपक्ष दल और अन्य कारण हो सकते हैं लेकिन यदि हम अपनी बात को ठीक से समझा ही नहीं पा रहे हैं तो दोष किसका?