संजय गांधी और मेनका की लव स्टोरी …?
दोस्त की शादी में हुई थी पहली मुलाकात; इंदिरा भी नहीं चाहती थीं कि दूसरा बेटा भी विदेशी बहू लाए….
इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की 23 जून 1980 को एक विमान हादसे में मौत हो गई थी। राजनीति के किरदार और किस्से की सीरीज में हम 23 जून तक उनसे जुड़ी तीन कहानियां जानेंगे। पहली कहानी हमने उनकी लव स्टोरी को चुना है। 27 साल के संजय का दिल 17 साल की मेनका आनंद पर आ गया था। लेकिन शादी तक का सफर आसान नहीं था।
इस लव स्टोरी को जानने से पहले संजय की पहले की प्रेम कहानियों के बारे में जानते हैं। इन प्रेम कहानी का सोर्स जेवियर मोरो की किताब “द रेड साड़ी” है।
जर्मन लड़की से चला था लंबा अफेयर
बड़े भाई राजीव गांधी की ही तरह संजय भी पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे। वहां उन्हें सबसे पहले एक मुस्लिम लड़की से प्यार हुआ। यह प्यार अधिक दिनों तक नहीं चल सका और दोनों अलग हो गए। इसके बाद संजय की मुलाकात जर्मनी की सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स से हुई। सैबिन उसी क्रिस्टीन की बहन थी जिसने राजीव को सोनिया से मिलवाया था। कॉलेज में सैबिन और संजय पहले दोस्त बने फिर इनके बीच अफेयर शुरू हो गया।
संजय इंग्लैंड से लौटे तो नौकरी करने सैबीन भी दिल्ली आई
संजय 1970 में अपनी पढ़ाई पूरी करके देश वापस लौट आए थे और मारुति कार बनाने के अपने काम में लग गए। सैबीन को भी दिल्ली में नौकरी मिली। इसलिए वह भी यहां चली आईं। राजीव और सोनिया भी सैबीन को अच्छे से जानते थे। यही कारण है कि सैबीन को जब भी वक्त मिलता वह सफदरगंज सोनिया के पास चली जाती थीं।
सोनिया गांधी को उम्मीद थी की मेरी तरह सैबीन भी गांधी परिवार की बहू बनेगी। सैबीन को भी यही लगता था लेकिन वह इंतजार करते-करते थक गई थी। वह सोनिया से कहती, “संजय को मुझसे ज्यादा अपने काम से प्यार है, उनकी लाइफ में काम के सिवा कुछ नहीं है।”
संजय ने उड़ते प्लेन से वापस बुला लिया
“द रेड साड़ी” किताब में जेवियर मोरो लिखते हैं, “सैबीन ने भारत छोड़ने का फैसला कर लिया। वह यूरोप के लिए जब जा रही थी तब सोनिया गांधी उन्हें एयरपोर्ट छोड़ने गई थी। संजय को जब यह पता चला तो उन्होंने हवाई जहाज उड़ा रहे पायलट से बात की। उन्हें जहाज को वापस दिल्ली लाने को कहा। जहाज तेहरान पहुंच था लेकिन संजय का प्रभाव कुछ ऐसा था कि पायलट विमान को दोबारा दिल्ली ले आया। दो दिन बाद सैबीन को दोबारा देखकर सोनिया हैरान रह गई।”
सैबीन संजय के इंतजार से थक गई तो दिल्ली के ही गोथे इंस्टीट्यूट के एक टीचर से शादी कर ली। यह पीएम इंदिरा गांधी के लिए सबसे राहत भरी बात थी। क्योंकि, वह नहीं चाहती थी कि उनकी दोनों बहुएं विदेशी हों।
यहां पर संजय की अधूरी लव स्टोरी खत्म होती है। अब मेनका आनंद के साथ उनके रिश्ते को जानते हैं।
दोस्त की शादी में गए तो जीवनसाथी से मुलाकात हो गई
14 दिसंबर 1973, संजय गांधी का 27वां जन्मदिन था। वह अपने एक दोस्त की शादी से पहले होने वाली कॉकटेल पार्टी में गए थे। जिस लड़के की शादी थी उसी ने संजय की मुलाकात 17 साल की मेनका आनंद से करवाई। वह एक रिटायर्ड सिख कर्नल की बेटी थी। दिल्ली के श्रीराम कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई छोड़कर पत्रकार बनने की तैयारी कर रही थी। सुंदर होने के चलते मेनका ने कई ब्यूटी कॉम्पटीशन जीते थे। उनका चेहरा फोटोजेनिक था इसलिए मॉडलिंग भी करती थी।
इस मुलाकात ने संजय पर ऐसा असर डाला कि वह अपना सारा खाली समय मेनका के साथ ही बिताने लगे। वह मेनका को लेकर किसी होटल या रेस्त्रा में नहीं जाते बल्कि अपने किसी दोस्त के घर चले जाते थे। सोनिया गांधी मेनका से बहुत प्रभावित नहीं थीं। उन्हें लगता था कि सैबीन के मुकाबले मेनका अभी बच्ची है। उन्हें इंदिरा गांधी की ही तरह लगता था कि अधिकतर लोग उनके सत्ता में होने के कारण गांधी परिवार के पास आना चाहते हैं।
इंदिरा से मिली मेनका तो मॉडलिंग की बात छिपा ली
जनवरी 1974 में संजय ने मेनका आनंद को मां से मिलवाने के लिए घर बुलाया। मेनका घर पहुंचीं तो सहमी नजरों के साथ चारों तरफ रखी चीजें देखने लगीं। मेनका को उम्मीद नहीं थी कि संजय से मुलाकात के करीब एक महीने बाद ही उन्हें देश की सबसे शक्तिशाली महिला के सामने बैठना पड़ेगा। इंदिरा आई तो कहा, “संजय ने तुम्हारा परिचय नहीं दिया, तुम अपने बारे में बताओ।” मेनका डर रही थीं, उन्होंने किसी तरह से अपने बारे में बताया लेकिन मॉडलिंग की बात छिपा ली। उन्हें यह बताना सही नहीं लगा।
इंदिरा गांधी ने मुलाकात के बाद कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि संजय गांधी उन्हें अक्सर लड़कियों से मिलवाते रहे थे।
शादी की बात आई तो इंदिरा ने कहा, 18 से पहले नहीं
मेनका और संजय का रिश्ता लगातार मजबूत होता गया। बात शादी तक आ गई। इंदिरा गांधी को पता चला तो उन्होंने तुरंत शादी करने से मना कर दिया। वह चाहती थी कि मेनका कम से कम 18 साल की हो जाएं। उन्हें मेनका के सिख होने से भी कोई दिक्कत नहीं थी। दोनों परिवारों की सहमति के बाद 29 जुलाई 1974 को खास मेहमानों के बीच सगाई की रस्म पूरी हो गई। इंदिरा ने मेनका को अपनी मां कमला नेहरू की अंगूठी दी।
मेनका की मां का अपने भाई से था विवाद
इंदिरा गांधी एक बार सोनिया से कह चुकी थी कि बहुत सारे लोग पैसे और पावर के चलते गांधी परिवार से जुड़ना चाहते हैं। उनकी यह आशंका मेनका के मामले में सही साबित हो गई। जेवियर मोरो लिखते हैं, “मेनका की मां अमतेश्वर पिछले 10 साल से अपने भाई के साथ पिता की संपत्ति में हिस्से के लिए मुकदमा लड़ रही थी। सोनिया ने इंदिरा से कहा, ये वह लोग हैं जो दुनिया में अपनी शान दिखाने में यकीन रखते हैं।”
मुस्लिम दोस्त के घर हुई सिविल शादी
संजय की शादी पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष माहौल में हुई। 23 सितंबर 1974 को उनके पुराने दोस्त मुहम्मद यूनुस के घर में सिख लड़की के साथ सिविल विवाह हुआ। यह शादी इस बात का सबूत है कि नेहरू परिवार के लिए धर्म कोई भी बाधा नहीं रही। इंदिरा गांधी ने मेनका को 21 बेहतरीन साड़ियां दीं। सोने की बुनी एक साड़ी दी जो नेहरू ने जेल में बुनी थी। राजीव और सोनिया गांधी के ठीक सामने वाले कमरे को संजय और मेनका गांधी का शयन कक्ष बनाया।
इंदिरा गांधी की असिस्टेंड रहीं ऊषा भगत कहती थीं, “मेनका बहुत जोशीली लेकिन अपरिपक्व और महत्वाकांक्षी थीं। वह बातों बातों में कई बार कह चुकी थीं कि संजय एक दिन प्रधानमंत्री होंगे। उनकी इस बात से आसपास के लोग सकुचा जाते थे।” ऊषा आगे बताती हैं कि एक बार सोनिया ने मेनका से कहा था, “मुझे खाना बनाना सिखा सकती हो?” तब मेनका ने जवाब दिया था, “वे खाना पकाने या घर के किसी भी काम में रुचि नहीं रखती।”