माता-पिता एक ही समय में मार्ग भी हैं और मंजिल भी

दुनिया के अधिकांश माता-पिता अपने खनकते हुए जज्बात बच्चों के सामने आसानी से पेश कर देते हैं। कई का तो मकसद ही बच्चों के प्रति रोक-टोक और उन्हें अपने हिसाब से चलाना होता है। पर अपनी तानाशाही के साथ-साथ उनको यह भी समझना होगा कि वे समीक्षक नहीं, विश्लेषक हैं। समीक्षक तो टिप्पणी करके अलग हो जाता है, लेकिन विश्लेषक केवल विश्लेषण ही नहीं करता, उस विषय का एक हिस्सा बन जाता है।

तो माता-पिता को बच्चों के लालन-पालन में प्रभाव और दबदबा दोनों एक साथ चलाना पड़ेंगे। बच्चों को भी समझना होगा कि माता-पिता केवल मील का पत्थर नहीं हैं। मील का पत्थर मंजिल की ओर बढ़ने में उपयोगी होता है, मंजिल नहीं होता। कई बच्चे माता-पिता को मंजिल तक पहुंचने का साधन बना लेते हैं।

कुछ ने तो उनको सीढ़ी ही मान लिया, जबकि वे वृक्ष हैं जो समय आने पर छांव और फल दोनों देंगे। माता-पिता एक ही समय में मार्ग भी हैं और मंजिल भी। जिस दिन संतानों के मन में यह भाव जाग जाएगा, अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का रास्ता वे स्वयं बड़ी आसानी से बना सकेंगे।

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