पार्टीगत निष्ठाएं प्रदर्शित करने के बजाय राष्ट्रीय निश्चय दिखाने की आज जरूरत

उदयपुर में कन्हैयालाल नामक एक दर्जी की जिस बर्बर और निर्दयी तरीके से हत्या की गई, उससे देश के सभी लोगों की तरह मैं भी बहुत हताश और चिंतित हूं। कन्हैयालाल एक साधारण गैर-राजनीतिक व्यक्ति थे, लेकिन उन पर धारदार हथियारों से 26 वार किए गए और फिर उनका सिर काटा गया। वे अपने परिवार के प्रमुख कमाने वाले थे, जिसमें उनकी पत्नी, बेटे और अनेक बहनें शामिल हैं।

उनके हत्यारों मोहम्मद रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद ने इसके बाद न केवल इस हत्या का वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित किया, बल्कि देश के प्रधानमंत्री सहित दूसरों को भी इसी अंजाम तक पहुंचाने की धमकी दी। लेकिन कन्हैयालाल का कसूर क्या था? बताया जाता है कि उनके आठ साल के बेटे ने एक सोशल मीडिया पोस्ट को फॉरवर्ड कर दिया था, जिसमें भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन किया गया था।

आज के भारत में इस ‘अपराध’ पर दिनदहाड़े किसी को निर्मम तरीके से मार डालना वास्तव में हमारे गणतंत्र और कानून व्यवस्था पर वस्तुत: एक तमाचा है। अफसोस की बात यह है कि राजस्थान की कांग्रेस-शासित सरकार और पुलिस समय रहते इस मामले में कोई कार्रवाई भी नहीं कर पाई, जबकि कन्हैयालाल उन्हें धमकियां मिलने के बाद 15 जून को ही पुलिस से मदद की मांग कर चुके थे।

खबरों के मुताबिक उनके अपने पड़ोसी नाजिम ने ही उनके खिलाफ शिकायत की थी और उनकी लोकेशन उजागर कर दी थी। यह दिखाता है कि कत्ल के पीछे केवल दो सिरफिरों का हाथ नहीं था। इसकी जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। भारतीय जनता पार्टी भी अपनी पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को मिल रही धमकियों पर यथेष्ट प्रतिक्रिया देने से चूक गई।

पार्टी यह स्पष्ट कर सकती थी कि भले ही वह नूपुर के कथन का समर्थन नहीं करती हो, लेकिन उन्हें जान से मारने की धमकियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन उलटे भारत की सरकार ही डैमेज कंट्रोल मोड में आकर अपना कूटनीतिक रुख दुरुस्त करने के जाल में फंस गई। नूपुर के कथन की जिम्मेदारी स्वयं पर ले ली। जबकि भारत की सरकार कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है, भले ही सरकार एक सत्तारूढ़ दल की हो।

वास्तव में सरकार भी किसी एक दल की नहीं, एनडीए गठबंधन की है, भाजपा उसमें अग्रणी दल भले ही क्यों ना हो। सरकार बड़ी आसानी से भाजपा प्रवक्ता के कथन से दूरी बना सकती थी। जब नूपुर के कथन पर हमारे मित्र-देशों से आपत्तियां आईं, तब भी सरकार इन शिकायतों को सम्बंधित राजनीतिक दल को अग्रेषित कर सकती थी। लेकिन उसके रुख से नूपुर का आक्रामक तरीके से विरोध करने वालों के हौसले और बुलंद हुए।

सोशल मीडिया पर इस तरह की बातें बड़ी शेखी के साथ कही जाने लगीं कि भारत सरकार को झुकाने का यही तरीका है कि उस पर दबाव बनाओ और टारगेटेड-हमले बोलो। कन्हैयालाल की हत्या पर विपक्षी दलों ने या तो भरसक मौन साधे रखा या वे इस घटना की निंदा में पर्याप्त मुखर नहीं हुए। जिस विचारधारा के वशीभूत होकर वह हत्या की गई, उसकी आलोचना करने की बात तो रहने ही दें।

एमआईएमएम पार्टी ने कन्हैयालाल की हत्या की निंदा तो की, लेकिन उसने अपनी ही पार्टी के उन सदस्यों पर कोई कार्रवाई नहीं की, जो खुलेआम नूपुर को जान से मारने की धमकियां दे रहे थे। कमोबेश यही रुख ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने भी अपनाया।

इसका तो यही मतलब है कि आज देश में इस्लामिक कट्‌टरपंथी ताकतों और तथाकथित सेकुलरों के बीच जो गठबंधन बन गया है, वह कन्हैयालाल की हत्या के लिए जिम्मेदार कारणों की तह में जाना ही नहीं चाहता। जबकि सच्चाई यह है कि कट्‌टरपंथ हमारे देश के सामने आज बड़ी चुनौती बन गया है। यह राजनीति करने का नहीं बल्कि अपने गणतंत्र को बचाने का समय है। आज सरकार और सिविल सोसायटी को पार्टीगत निष्ठाएं प्रदर्शित करने के बजाय राष्ट्रीय निश्चय दिखाना चाहिए।

भारत सरकार कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है, सरकार एनडीए गठबंधन की है, जिसमें भाजपा अग्रणी पार्टी भर है। ऐसे में भारत की सरकार बड़ी आसानी से भाजपा प्रवक्ता के कथन से दूरी बना सकती थी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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