पर्यावरण संरक्षण:प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगते ही कागज के पत्तल- दोना व गिलास के दाम बढ़े
पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर देशभर में एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक आयटम और 100 माइक्राेन से कम वाली पॉलीथिन के निर्माण से लेकर क्रय-विक्रय और उपयोग पर प्रतिबंध लग गया हैं। इसके बाद भी जहां एक ओर इनका उपयोग हो रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ जागरूक लोग इस सामग्री के विकल्पों को महत्व देने लगे हैं।
हालांकि कीमतों में ज्यादा अंतर होने से लोग कागज और मिट्टी की सामग्री की खरीदारी करने को लेकर असमंजस की स्थिति में आ गए हैं। यहां बता दें प्रतिबंध के दौर में अच्छी बात यह है कि सिंगल यूज प्लास्टिक की अधिकांश सामग्री के विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन प्लास्टिक सामग्री की तुलना में इनके दाम अधिक हैं। बाजार में लकड़ी के चम्मच, चाकू, कटर, आइसक्रीम स्टिक सहित कागज के पत्तल-दोने-कटोरी, छोटे-बड़े गिलास आदि सामग्री उपलब्ध हैं।
प्रतिबंध के बाद से इनकी बिक्री में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उल्लेखनीय है सिंगल यूज प्लास्टिक सामग्री व 75 माइक्रान की पॉलीथिन पर पहले से प्रतिबंध लगा है। लेकिन कार्रवाई के अभाव में इससे मानकों की सामग्री की खरीद फरोख्त धड़ल्ले से चल रही है। नगरपालिका व प्रशासन द्वारा ठोस कार्रवाई नहीं होने के कारण पॉलीथिन के उपयोग पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है।
प्रतिदिन 5 क्विंटल सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम और प्रतिबंध श्रेणी सहित सभी प्रकार की पॉलीथिन का विक्रय होता है। यह सामग्री शहर सहित जिले में जाती भर में जाती है। अलग-अलग श्रेणी बात करें तो ढ़ाई से तीन क्विंटल सिंगल यूज सामग्री का विक्रय होता है जबकि पॉलीथिन करीब 2 क्विंटल के आस-पास बिकती है।
पॉलीथिन आइटम के विकल्प के रूप में मिलने वाली सामग्री की डिमांड शहर में सिंगल यूज आइटम जैसे प्लेट्स, कप, गिलास, स्ट्रा, स्वीट बाक्स को कव्हर करने वाली पैकिंग, सजावट में उपयोग होने वाले थर्मोकोल आदि सामग्री के भाव क्वालिटी के अनुरूप है। व्यापारी अमित जैन के अनुसार अच्छी क्वालिटी के सिंगल यूज व लकड़ी-कागज सामग्री के भाव में अंतर तो है लेकिन लोग इसकी खरीदारी करने लगे हैं। चाय-नाश्ता की बड़ी होटल से लेकर छोटी से गुमटी पर भी अब कागज के गिलास ही उपयोग हो रहे है। इसलिए इनकी डिमांड बढ़ रही है।
प्लास्टिक सामग्री की खरीद फरोख्त में 30 फीसदी कमी लोगों में जागरूकता और बाजार में सिंगल यूज सामग्री का विकल्प मिलने और प्लास्टिक की अच्छी क्वालिटी की सिंगल यूज सामग्री के भाव में अंतर होने के बाद भी प्लास्टिक सामग्री का प्रयोग 30 फीसदी तक कम हुआ है। लकड़ी से बने चम्मच-कटर-चाकू, आइसक्रीम स्टिक सहित कागज से बने पत्तल-दोने, कटाेरी-गिलास जैसी सामग्री की बिक्री बढ़ी है। लेकिन कीमत अधिक होने की वजह से अभी लोग इसके उपयोग करने के लिए पूरी तरह आगे नहीं आ रहे हैं।
ऐसे समझें पॉलीथिन और कागज के दोना-पत्तल में कीमतों में अंतर
बाजार में पॉलीथिन थैली 80 रुपए से लेकर 210 रुपए किलो तक बिक रही है। जबकि कंपोस्टेबल अर्थात मिट्टी के साथ नष्ट होने वाली थैलों का भाव 120 से 300 रुपए किलो तक है। कारोबारियों का कहना है कि पॉलीथिन के तुलना में इनकी मजबूती कम है। इसलिए कम बिकती है। पॉलीथिन के प्रयोग ज्यादा होने के पीछे थैलों की कीमत अधिक और मजबूती कम होना मुख्य कारण है। इसी वजह से दुकानदार आज भी प्रतिबंधित पॉलीथिन का ही उपयोग ज्यादा कर रहे है।