Gwalior Court News: फूड सेफ्टी विभाग के जुर्माने नहीं टिक पा रहे कोर्ट में, लाखों की राशि रह जाती है हजारों में
फूड सेफ्टी विभाग त्याेहाराें के दौरान किराना स्टोर, दूध डेयरी सहित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों पर छापामार कार्रवाई की जाती है..
Gwalior Court News: ग्वालियर। फूड सेफ्टी विभाग की ओर से त्याेहाराें पर मिलावट का कारोबार रोकने के लिए हर साल अभियान चलाया जाता है। मिथ्या छाप, मिस ब्रांड, अमानक खाद्य पदार्थ पाए जाने पर कारोबारियों के ऊपर लाखों रुपये का जुर्माना ठोका जाता है, लेकिन जुर्माने के आदेश जिला न्यायालय में नहीं टिक पा रहे हैं। लाखों रुपये की जुर्माने की राशि हजारों में रह जाती है। वर्ष 2019 से अब तक करीब 150 अपीलों में फैसला हुआ है। जुर्माने के 90 फीसद से अधिक आदेशों में कोर्ट ने बदलाव किया है। कोर्ट ने इनके आदेशों को न्याय संगत न मानते हुए जुर्माने की राशि 35 से 50 हजार रुपये के बीच कर दी है।
फूड सेफ्टी विभाग त्याेहाराें के दौरान किराना स्टोर, दूध डेयरी सहित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों पर छापामार कार्रवाई की जाती है। मानव जीवन के लिए जो वस्तुएं खतरनाक होती हैं, उनके खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई की जाती है। जिनके खाद्य पदार्थ अमानक व मिथ्या छाप के पाए जाते हैं, उनके खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई की जाती है। यह जुर्माना 50 हजार से लेकर पांच लाख रुपये तक लगाया जाता है। न्याय निर्णय अधिकारी जुर्माने की कार्रवाई करते हैं। खाद्य कारोबारी न्याय निर्णय अधिकारी के आदेश को जिला न्यायायल में चुनौती दे रहे हैं। जिला न्यायाधीश व अपर सत्र न्यायालय में जुर्माने के खिलाफ की अपील की सुनवाई की जाती है। अपील में हर तथ्य को परखा जाता है। फूड सेफ्टी विभाग के आदेश में कई कमियां रहती हैं, उनकी वजह से आदेशों में बदलाव हो जाता है।
इन कमियों के कारण आदेशों में हो रहा बदलावः
-सैंपल लेने के 14 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट आ जाना चाहिए, लेकिन विभाग से सैंपल लेट भेजे जाते हैं। जांच रिपोर्ट छह-छह महीने देर से आती है। अपील में इसे आधार बनाया जाता है।
-विभाग ने जो खाद्य पदार्थ जब्त किया है, वह मानव उपयोग के लिए कितना खतरनाक है, इसका खुलासा नहीं किया जाता है।
-कारोबारी को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया जाता है, सीधे अंतिम तर्क पर पहुंच जाते हैं और जुर्माने की कार्रवाई कर देते हैं।
-सैंपल देने के बाद उस व्यक्ति को 15 दिन के भीतर नोटिस देकर स्पष्टीकरण लेना चाहिए। धारा 49 के अनुसार व्यापारी की हैसियत देखना चाहिए कि वह जुर्माना भर सकता है या नहीं।
केस-1: जितेंद्र चौधरी के रेस्टोरेंट से फूड सेफ्टी विभाग ने मावा व पनीर के नमूने लिए। इस खाद्य पदार्थ को जांच के लिए लैब भेजा गया। रिपोर्ट आने के बाद विभाग ने तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माने के आदेश के खिलाफ जिला न्यायालय में अपील दायर की। कोर्ट ने जुर्माने की राशि को घटाकर 35 हजार रुपये कर दिया।
केस-2ः दीपक मांडिल की दुकान पर फूड सेफ्टी विभाग ने छापा मारा। मावा व पनीर के नमूने लिए गए। फूड सेफ्टी विभाग ने दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माने की राशि को जिला न्यायालय में चुनौती दी। कोर्ट ने दो लाख रुपये जुर्माने की राशि घटाकर 50 हजार रुपये कर दी।
केस-3ः आइसक्रीम विक्रेता उमाशंकर कुशवाह पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। जुर्माने के आदेश के खिलाफ जिला न्यायालय में अपील दायर की। कोर्ट ने दो लाख रुपये के जुर्माने को घटाकर 35 हजार रुपये कर दिया है।
वर्जन-
पुरानी अपीलों में कोर्ट ने फैसला किया है। जुर्माने के आदेश में कानूनी कमियां हैं, जिसकी वजह से जुर्माने की राशि में बदलाव हुआ है। कमियों के बारे में विभाग को अवगत कराया है। सुधार होने पर जुर्माने की राशि में बदलाव की संभावना कम रह जाएगी।
विजय शर्मा, लोक अभियोजक, जिला एवं सत्र न्यायालय