भोपाल : एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी …? एनरॉलमेंट से डिग्री तक का काम निजी कंपनी काे …

  • जरूरत 260 कर्मचारियों की, सिर्फ 20 ही नियमित कर्मचारी
  • विवि ने कंपनी को चार महीने पहले दिया ठेका

एनरॉलमेंट से डिग्री तक का काम निजी कंपनी काे, 118 आउटसोर्सकर्मी बना रहे 4 महीने पुराना रिजल्ट

प्रदेश के 90 हजार मेडिकल स्टूडेंट के एडमिशन एनरोलमेंट से लेकर डिग्री तैयार करने के लिए एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी ने एक निजी कंपनी को 4 महीने पहले ठेका दिया। इसके बाद भी बच्चों के रिजल्ट बनाने में लगातार गलतियां हो रही हैं। ऐसी शिकायतें हर एग्जाम के रिजल्ट में सामने आती हैं। पता चला है कि आउटसोर्स पर कर्मचारियों को रखकर पुराना डाटा मैनुअल अपडेट किया जा रहा है। ये कर्मचारी रोजाना गोपनीय काम करने आते हैं।

ऐसे 118 लोगों को यूनिवर्सिटी ने एग्जाम और रिजल्ट के काम में लगा रखा है। कोई भी गलती होने पर किसी को सजा नहीं दी जाती है। दरअसल, यूनिवर्सिटी में लगभग 260 कर्मचारियों की जरूरत है, जिनकी मदद से गोपनीय काम पूरी तरह बेहतर तरीके से हो सकता है, लेकिन यूनिवर्सिटी में सिर्फ 20 रेगुलर कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनका पूरा समय आउटसोर्स कर्मचारियों की निगरानी में चला जाता है।

परीक्षा नियंत्रक बोले- आउटसोर्स कर्मियों से काम कराना ज्यादा आसान

मार्च में टेंडर हुआ और एडमिशन से लेकर एग्जाम, रिजल्ट व डिग्री तक का काम मेरिटट्रेक कंपनी को मिला। इन्हें 95 रुपए प्रति स्टूडेंट भुगतान किया जाता है। इनका काम है कि स्टूडेंट के एनरॉलमेंट, एडमिशन, एग्जाम के रिजल्ट और डिग्री को सॉफ्टवेयर के जरिए सिंक्रोनाइज्ड रखना है। एग्जाम के बाद काॅपियां वेल्यूअर के पास ऑनलाइन भेजी जाती है। ऑनलाइन कॉपी चेक होने के बाद मार्क्स अपडेट किए जाते हैं। ये सॉफ्टेवयर के जरिए ऑटो अपडेट हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन कंपनी को पुराना डाटा नहीं दिया गया। एग्जाम कंट्रोलर का कहना है कि पुराना डाटा कर्मचारियों के जरिए अपडेट करना आसान है। सवाल यह है कि जब आउटसोर्स कर्मचारियों से काम कराना है तो फिर कंपनी को क्यों लाया गया।

कर्मचारियों की कमी दूर करने शासन से मांग की है…

यूनिवर्सिटी ने नई कंपनी को 4 महीने पहले ही काम दिया है। वह नया डाटा फीड कर रही है। पुराना डाटा हमारे कर्मचारी अपडेट कर रहे हैं और कंपनी से जल्दी कर देते हैं। रेगुलर कर्मचारियों की कमी है, इसे दूर करने शासन से मांग की है।

-डॉ. सचिन कुचिया, एग्जाम कंट्राेलर, एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी

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