इतने बेसब्र और अधीर क्यों होते जा रहे हैं आज के युवा?

युवावस्था का मतलब है ऊर्जा, सकारात्मकता, आशावाद, उत्साह। युवावस्था में आत्मविश्वास उफनता है, संघर्ष करने का जज्बा होता है, युवा कड़ी मेहनत करके तेजी से नतीजे पाना चाहते हैं और उसके बाद जमकर मौज-मस्ती करना नहीं भूलते। लेकिन आज युवाओं में अधीरता भी बढ़ती जा रही है।

वे अच्छे-से फोकस नहीं कर पा रहे हैं। स्किल डेवपलमेंट में उनकी रुचि घट रही है। पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज का युवा कहीं अधिक बेसब्र हो चुका है। किसी स्किल को सीखने में जितना समय देने की जरूरत होती है, उतना वाे दे नहीं पाता और लगातार अपने मौजूदा काम में बदलाव करता रहता है।

यह भी देखा जाता है कि आज के युवा हर चीज को लेकर बहुत ज्यादा शिकायतें करते हैं, फिर चाहे वह काम हो या आसपास का माहौल। अधीरता के कारण वे अपने कॅरियर को भी जोखिम में डाल देते हैं। जबकि धैर्य ऐसा गुण है, जो हमारे व्यक्तित्व में नाटकीय बदलाव लाने में सक्षम है। इससे हम एक बेहतर मनुष्य बनते हैं, हमारी शख्सियत में गहराई बढ़ती है, हम नई चीजें सीखते हैं और औरों की तुलना में बेहतर कर पाते हैं।

हाल ही में एक बहुत दिलचस्प अध्ययन किया गया, जिसमें युवाओं को यह विकल्प दिया गया कि उन्हें तुरंत एक छोटा-सा लाभ चाहिए या एक महीने बाद उससे बड़ा लाभ। युवाओं ने तुरंत छोटे लाभ को चुना। स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी, मॅक्स प्लान्क इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में रिसर्चरों ने यह जानने की कोशिश की कि आज के युवा क्यों शॉर्ट-टर्म गेन को प्राथमिकता देते हैं।

शोध में पाया गया कि इसका सम्बंध उनके दिमाग के मैकेनिज्म से है। उनका दिमाग आने वाले कल में होने वाले फायदों को समझ नहीं पाता, जिससे वे बहुत अधीर हो जाते हैं और इंस्टैंट रिजल्ट की तलाश करने लगते हैं। वैसे भी आज हम एक ऐसे माहौल में जी रहे हैं, जिसमें खुश और सफल होने के लिए तात्कालिक लक्ष्यों को अर्जित करना होता है।

घटती एकाग्रता, बढ़ती महत्वाकांक्षाएं, त्वरित सुख और विफलताओं को स्वीकारने की अक्षमता से युवाओं में तनाव बढ़ रहा है, जो आगे चलकर अवसाद, मनोरोगों और आत्मघाती प्रवृत्तियों को जन्म देता है। हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां ऑनलाइन डिलीवरी के लिए स्टोर्स हैं, एक क्लिक पर मनोरंजन उपलब्ध है और स्मार्टफोन हमारी पसंद और जरूरतों के हिसाब से अनंत चीजें कर सकते हैं। इसकी तुलना में पुरा-पाषाण युग या प्राचीनकाल के युवाओं में अंतहीन संयम होता था।

वे शिकार के लिए अनेक दिनों या कई हफ्तों तक भी प्रतीक्षा कर सकते थे। हर पीढ़ी के साथ धैर्य का स्तर घटता चला गया है। आज हम ऐसे दौर में चले आए हैं, जब सबकुछ हमारी अंगुलियों के इशारों पर होता है। अब भोजन का इंतजार नहीं करना पड़ता, चीजों और सेवाओं के लिए कतार में नहीं लगना पड़ता और यांत्रिक जीवन में हमारी जीवनैशली बहुत तेज गति वाली हो गई है।

अगर युवा धीरज का महत्व जानें और रोजमर्रा के जीवन में उसका पालन करें तो वे अपनी कई गलतियों में सुधार कर सकेंगे। इससे उनका जीवन सरल, संतुष्ट और सुखमय होगा और उसमें से तनाव, गुस्से और फ्रस्ट्रेशन जैसी नकारात्मक भावनाएं घटेंगी।

जब हम धैर्यवान होते हैं तो शांत होते हैं और चीजों पर बेहतर तरीके से फोकस कर पाते हैं। तब हम नई चीजें सीखने को तैयार रहते हैं। धैर्य की कला में महारत हासिल करने में समय और प्रयास लगते हैं। अगर आप धैर्यवान हैं तो अपनी विफलताओं को सहज तरीके से स्वीकार कर पाते हैं। अच्छी चीजें उन्हीं के साथ होती हैं, जो उनकी राह तकना जानते हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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