तिरंगा राष्ट्रीय प्रतीक ही नहीं, नागरिकों के नैतिक व्यवहार का भी प्रतीक है
आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए ‘हर घर तिरंगा’ के साथ भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिसके तहत करीब 100 करोड़ लोग 13 से 15 अगस्त के बीच राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। केंद्र ने ध्वज संहिता में संशोधन किया है और अब तिरंगे को दिन और रात में खुले और व्यक्तिगत घरों-इमारतों में प्रदर्शित करने की अनुमति दे दी गई है।
पहले ध्वज को सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही फहरा सकते थे। दुनिया के हर स्वतंत्र राष्ट्र का अपना झंडा है, जो दर्शाता है कि यह एक स्वतंत्र देश है। 1921 में मसूलीपट्टनम के आंध्र कांग्रेसी पिंगली वेंकय्या ने पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक में राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का प्रस्ताव रखा। महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रीय ध्वज रखने का विचार पसंद आया।
गांधी ने कहा, ‘हमारे लिए हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, यहूदियों, पारसियों और अन्य सभी लोगों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे जीने और मरने के लिए एक समान ध्वज को पहचानें।’ अगर हम स्वतंत्रता का इतिहास देखें तो पाएंगे कि लहराता झंडा एक सामूहिक एकता को दर्शाता रहा और सभी को सभी से जोड़े रहा। झंडा सम्मान, देशभक्ति, शांति और राष्ट्र की एकता के उत्सव का प्रतीक ही तो है।
मार्कस केमेलमेयर, डेविड जी विंटर ने ‘अमेरिकी ध्वज के संपर्क के परिणाम’ को लेकर एक अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि अमेरिकी ध्वज संयुक्त राज्य अमेरिका में अक्सर प्रदर्शित होने वाला राष्ट्रीय प्रतीक है। उनकी यह परिकल्पना थी कि ध्वज देशभक्ति बढ़ाएगा, जिसे देश के प्रति प्रेम-प्रतिबद्धता के रूप में परिभाषित किया गया है। अध्ययनों ने इस विचार का समर्थन किया कि अमेरिकी ध्वज ने राष्ट्रवाद को बढ़ाया।
वहीं एक और अध्ययन लिंडा जे स्किटका ने किया और अमेरिका में आतंकी हमलों पर लोगों की प्रतिक्रिया समझी गई। इस शोध का लक्ष्य उन अंतर्निहित प्रेरणाओं को समझना था जिनके कारण यह व्यापक व्यवहार हुआ। विशेष रूप से, देशभक्ति (देश का प्यार और समूह में एकजुटता)। यह पाया गया कि 9/11 के आतंकी हमले के बाद का झंडा-प्रदर्शन व्यवहार देशभक्ति की अभिव्यक्ति था।
यह ‘हर घर तिरंगा’ का भाव हमसे कुछ और भी प्रश्न करता है कि हम तिरंगे से सीखते क्या हैं? क्या हमारा तिरंगा हमसे यह आशा नहीं करता कि हम और भी अनुशासित और निष्ठावान बनें। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा तिरंगा अपनाया गया था। आज हमें नहीं भूलना चाहिए कि केसरिया रंग हमारे अंदर की शक्ति और साहस का प्रतिनिधित्व करता है।
वो शक्ति जो मानवता के कल्याण में हो। और ऐसा साहस जिससे हमारे राष्ट्र की और परिवार की सीमाएं सुरक्षित रहें। मध्य भाग सफेद है जो ईमानदारी, पवित्रता और शांति को दर्शाता है। भारत ने कभी किसी भी मुल्क की सीमाओं को अनावश्यक निशाना नहीं बनाया।
अशोक के धम्म और शांति का यह देश रहा और हमें यह आशा करनी चाहिए कि हर घर तिरंगा उसी शांति की दिशा तय करेगा। नीचे जो हरा रंग समृद्धि, उर्वरता और विकास का संकेत देता है, वह हमें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा। चक्र में 24 समान दूरी वाली तीलियां हैं। अशोक चक्र को समय चक्र के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें 24 तीलियां दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करती हैं और समय की गति का प्रतीक हैं। चक्र का अर्थ है कि गति में जीवन है और गतिहीनता में मृत्यु है। यह एक शांतिपूर्ण परिवर्तन की गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करता है।
तिरंगा सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक ही नहीं है बल्कि नागरिक के नैतिक व्यवहार का भी प्रतीक है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने कहा था कि यह ध्वज जिसका हम सम्मान करते हैं और जिसके तहत हम सेवा करते हैं, एक राष्ट्र के रूप में हमारी एकता, शक्ति, विचार और उद्देश्य का प्रतीक है। तिरंगा राष्ट्र का मस्तक है और हमारा गौरव। और इसी भाव के साथ हम सब फहराएं, ‘हर घर तिरंगा’।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)