डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराने 58 कानूनों को खत्म करने की संसद से मंजूरी
संसद ने पुराने पड़ चुके 58 अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने के प्रावधान वाले एक अहम विधेयक को शुक्रवार को मंजूरी प्रदान कर दी। इन कानूनों में कुछ कानून डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं। राज्यसभा ने निरसन और संशोधन विधेयक 2019 को संक्षिप्त चर्चा के बाद ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर दी। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। चर्चा में ज्यादातर सदस्यों ने इसका स्वागत किया और सुझाव दिया कि मूल विधेयक में ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि कानून का प्रयोजन समाप्त होने के बाद वह खुद ही समाप्त हो जाए।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक की चर्चा करते हुए कहा कि इस विधेयक के जरिए पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त किया जा रहा है, जिनकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है। उन्होंने कहा कि ऐसे कानूनों की समीक्षा के लिए एक मजबूत तंत्र की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के बाद सरकार ने फैसला किया था कि अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को समाप्त किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए दो लोगों की समिति बनायी गयी थी। समिति ने 1824 कानूनों की पहचान की थी और अब तक 1428 कानून वापस लिए जा चुके हैं।
उन्होंने हालांकि कहा कि यह एक सतत प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि पुराने वित्त विधेयकों को भी समाप्त किया जाना है और इसके लिए वित्त मंत्रालय से चर्चा चल रही है। प्रसाद ने कहा कि सरकार दो प्रकार के कानूनों को समाप्त कर रही है। इनमें मूल कानून और संशोधित कानून शामिल हैं। उन्होंने कहा कि संशोधित कानून भी अपने आप समाप्त नहीं होते। उन्होंने भारतीय दंड संहिता, 1860 की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें समय समय पर जरूरी संशोधन किए गए हैं। सिनेमेटोग्राफ कानून में संशोधन की मांग पर उन्होंने कहा कि इसके लिए फिल्म समुदाय को एक स्वर में बात करनी होगी। अभी उनमें ऐसी एकराय नहीं है।
चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के भूपेंद्र यादव ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि विधेयक संसद में ही आते हैं और उनमें ही ऐसा जिक्र होना चाहिए कि उनका प्रयोजन समाप्त होते ही वे स्वत: समाप्त हो जाएं। उन्होंने कहा कि मृतप्राय कानूनों को समाप्त करने के लिए सरकार को कोई प्रक्रिया अपनानी चाहिए। कांग्रेस की अमी याज्ञनिक ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि कानून का प्रयोजन पूरा हो जाने पर उन्हें वापस लेना उचित है।
सपा सदस्य जया बच्चन ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि लोगों को इनके बारे में कैसे जानकरी देंगे। उन्होंने कहा कि न्याय सही तरीके से और समय से मिले तो ज्यादा कानून की जरूरत नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि कुछ विधेयक भाजपा की पिछली सरकार के दौरान लाए गए थे और उन्हें भी खत्म किया जा रहा है। बीजद के प्रशांत नंदा ने सिनेमेटोग्राफ कानून सहित कुछ कानूनों में संशोधन की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पुराने हो चुके कानूनों की समय समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
जद (यू) की कहकशां परवीन ने कहा कि यह विधेयक पुराने हो चुके कानूनों के सफाये के लिए है और जिन कानूनों की जरूरत नहीं है, उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के शुभाशीष चक्रवर्ती, अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन, माकपा के केके रागेश और के सोमप्रसाद, द्रमुक के पी विल्सन, भाकपा के विनय विश्वम, सपा के वीर सिंह और भाजपा के रामकुमार वर्मा ने भी विधेयक का समर्थन किया।