लीकेज वाले बांध की दीवार तोड़ी, पानी निकलना शुरू …?

धार में तीन दिन से सुर्खियों में बने कारम डैम की पाल पर आखिरकार शासन-प्रशासन ने JCB चला दी। 50 घंटे की मशक्कत के बाद भी जब डैम को बचाने की कोशिशें नाकाम नजर आईं, ताे इसकी दीवार को तोड़ने का फैसला लिया गया। शनिवार रात 11.30 बजे वॉल तोड़कर बांध से पानी निकालना शुरू किया गया। अभी पानी का बहाव कम है, लेकिन धीरे-धीरे फ्लो बढ़ने लगेगा। ये पानी आगे जाकर महेश्वर में नर्मदा में गिरेगा। डैम फूटने के डर से धार जिले के 13 और खरगोन जिले के 6 गांवों के लोग पहाड़ों और राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं।

जल संसाधन विभाग काे 8 दिन पहले से पता चल गया था कि डैम का जलस्तर बढ़ने लगा है। तकनीकी खामियों का भी अंदाजा लग चुका था, बावजूद सुधार काे लेकर अनदेखी की गई। इसके चलते 22 हजार से अधिक लाेगाें काे सुरक्षित जगह पहुंचाने के बाद शनिवार देर रात 44 गांवों के हिस्से के पानी काे बहाना पड़ा। मामले में सरकार की नाकामी पर सवाल उठने लगे ताे मंत्री से लेकर प्रशासनिक अमले काे माैके पर पहुंचकर व्यवस्था संभालना पड़ी। सेना की भी मदद ली गई, लेकिन 50 घंटे गुजरने के बाद भी बांध की मरम्मत नहीं हो सकी।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी डैम की सिचुएशन पर नजर रखे हुए हैं। सुबह 6 बजे ही उन्होंने अपने निवास से फोन के जरिए धार और खरगोन के अधिकारियों से बात की। मौके पर मौजूद मंत्री तुलसी सिलवाट से भी स्थिति की जानकारी ली। राहत शिविरों में ठहरे लोगों के लिए भी व्यवस्थाओं को लेकर निर्देश दिए।

बांध की दीवार तोड़कर कुछ इस तरह पानी निकाला जा रहा है।
बांध की दीवार तोड़कर कुछ इस तरह पानी निकाला जा रहा है।
प्रभारी मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी (लेफ्ट) भी आज मौके पर पहुंचे हैं।
प्रभारी मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी (लेफ्ट) भी आज मौके पर पहुंचे हैं।

ये लापरवाही आई सामने
डैम के अंदर वाले हिस्से में पाल काे सुरक्षित करने मिट्टी बिछाते समय 12 मीटर के बाद मुरम से पिचिंग की गई। दूसरी तरफ मुरम की लेयर नहीं बिछाई। 10 किमी के कैचमेंट एरिया में जलस्तर बढ़ने लगा ताे नहर के लिए लगाए गए वॉल्व काे खाेला तक नहीं। जब डैम में दरार आने के बाद पानी का रिसाव शुरू हुआ ताे उस वॉल्व काे खोलने पहुंचे। इसका मेंटेनेंस नहीं हाेने से 48 में से 24 नट ही खोल पाए, जिससे पानी का प्रेशर बढ़ता गया और डैम काे फोड़ने की नौबत बन गई।

शनिवार रात 11.30 बजे बांध की दीवार तोड़कर पानी निकालना शुरू किया गया।
शनिवार रात 11.30 बजे बांध की दीवार तोड़कर पानी निकालना शुरू किया गया।

30 लाख खर्च हुए, नागदा-गुजरी में ट्रैफिक बंद
जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट की निगरानी में बांध का पानी निकालने के लिए कैनाल बनाने का काम शुरू हुआ था। 48 घंटे तक 6 पोकलेन और मशीनरी चलाने के नाम पर 30 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। देर शाम डैम की पाल काे तोड़ने के लिए मशीनें लगाई गईं। नागदा-गुजरी हाईवे का ट्रैफिक भी शाम 7 बजे बाद बंद कर दिया गया।

कांग्रेस की समिति पहुंची, देखकर लौट गए
पूर्व सीएम कमलनाथ ने मामले की जांच के लिए कांग्रेस की समिति गठित की। इसमें जिले के विधायकों समेत खरगोन जिले के विधायकों काे शामिल किया गया। समिति दोपहर 3 बजे माैके पर पहुंची। डैम का निरीक्षण कर कहा कि भ्रष्टाचार हुआ है। इसकी जांच रिपोर्ट शीघ्र उच्च स्तर भेजी जाएगी। समिति में विधायक उमंग सिंघार, पांचीलाल मेड़ा, डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ, डॉ. हीरालाल आदि पहुंचे थे। इसके पूर्व नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने भी यहां पहुंचकर निर्माण पर सवाल उठाए।

डैम से पानी निकालने का काम शनिवार रात से शुरू हुआ।
डैम से पानी निकालने का काम शनिवार रात से शुरू हुआ।

सीएम ने नियंत्रण कक्ष से ली जानकारी, दिए निर्देश
इधर लीकेज की खबर मिलने के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मंत्रालय में विशेष बैठक ली। इसके बाद वे नियंत्रण कक्ष से लगातार राहत व बचाव कार्य की निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने सुरक्षा टीम के साथ देश के अलग-अलग विशेषज्ञों से चर्चा की। उन्होंने कलेक्टर काे पशुधन और जनधन की रक्षा करने के निर्देश दिए।

पानी बढ़ेगा इसका अंदाजा था, इतना बढ़ेगा पता नहीं था
धार में जल संसाधन विभाग के ईई बीएल नीनामा का कहना है कि डैम में पानी बढ़ने पर लगाए गए मीटर से भी इसकी जानकारी मिल गई थी। पानी अचानक से बढ़ेगा इसका अंदाजा नहीं था। पानी बढ़ने से हुई समस्या को लेकर प्रशासन को अवगत कराया था। जनहानि की आशंका को देख ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुनादी करा दी थी।

निर्माण में इंजीनियरिंग के मूल सिद्धांतों का भी पालन नहीं
डैम के निर्माण में हुई लापरवाही के बारे में बताते हुए जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड एसई अशोक सोजातिया ने भास्कर से कहा- इस बांध में बड़ी गलती कंस्ट्रक्शन की गलत प्लानिंग है। जहां से रिसाव हुआ है, वहां का काम सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होता है। इसे नाले का काम कहते हैं। यह काम एक साल का होता है और बारिश से पहले पूरा कर लेते हैं। नदी गहरी होने से उसका पाट भी गहरा है। ऊंचाई अधिक और चौड़ाई कम है। संभवत: काम की गति धीमी होने से यह सब कुछ हुआ है।

विभाग के ही सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर सुधीर सक्सेना ने बताया कि यह सामान्य ज्ञान है… जिस साल बांध बनाया जाता है, उस साल पूरा नहीं भरते। जितने बांध अब तक मैंने देखे हैं, सबके लिए अलग तरह की डिजाइन होती है। बांध में कितना पानी हो, यह उसकी डिजाइन पर निर्भर करता है। यह जरूर है कि पहले साल में पूरी क्षमता से पानी नहीं भरा जाता। यह बहुत सामान्य ज्ञान की बात है। अब यदि निर्माणाधीन डेम है तो फिर सोचा जा सकता है कि इतना पानी कहां से आया। इसकी व्यवस्था क्यों नहीं की।

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