BJP ने संसदीय बोर्ड से गडकरी और शिवराज को हटाया …? गडकरी ने 24 दिन पहले नागपुर में कहा था- मन करता है राजनीति छोड़ दूं
गडकरी ने 24 दिन पहले नागपुर में कहा था- मन करता है राजनीति छोड़ दूं …
भाजपा ने बुधवार को नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का ऐलान किया है। 11 सदस्यों वाले संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को हटा दिया गया है। नितिन गडकरी ने 24 दिन पहले यानी 24 जुलाई को नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था- मन करता है राजनीति छोड़ दूं।
इस बयान के अभी महीने दिन भी पूरे नहीं हुए थे कि पार्टी संगठन की सबसे ताकतवर संस्था (केंद्रीय संसदीय बोर्ड) से केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की विदाई हो गई।
गडकरी का राजनेताओं पर दिया बयान भी चर्चा में रहा
गडकरी ने पिछले साल भी राजनेताओं पर एक और बयान दिया था, जो राजनीतिक गलियारे में काफी चर्चा में रहा। उन्होंने राजस्थान विधानसभा में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा था- आजकल हर किसी की समस्या है, हर कोई दुखी है। जो मुख्यमंत्री बनते हैं, वो इसलिए परेशान रहते हैं कि पता नहीं कब हटा दिया जाए। विधायक इसलिए दुखी हैं, क्योंकि वो मंत्री नहीं बन पाए। मंत्री इसलिए दुखी हैं, क्योंकि उन्हें अच्छा विभाग नहीं मिला। अच्छे विभाग वाले इसलिए दुखी हैं, क्योंकि वो मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
संसदीय बोर्ड में पहली बार सिख को मिली जगह
संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में एक भी CM को भी जगह नहीं मिली है। वहीं 11 सदस्यों वाले नए संसदीय बोर्ड में पहली बार सिख समुदाय से इकबाल सिंह लालपुरा को शामिल किया गया है। लालपुरा पूर्व IPS रह चुके हैं। फिलहाल वे अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं। वहीं बोर्ड में इस बार 6 नए लोगों को जगह दी गई है।
इनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, असम के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री सर्वानंद सोनोवाल, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, के लक्ष्मण शामिल हैं। इनके अलावा बोर्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह और पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष को जगह मिली है।
15 सदस्यीय चुनाव समिति में एक भी CM नहीं
इसके साथ ही BJP ने 15 सदस्यों की केंद्रीय चुनाव समिति का गठन किया है। BJP में पार्लियामेंट्री बोर्ड के बाद केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) को पार्टी की दूसरी सबसे ताकतवर संस्था माना जाता है। गडकरी और शिवराज को चुनाव समिति में भी जगह नहीं मिली है।
इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री जुएल ऊरांव, शाहनवाज हुसैन, पार्टी की पूर्व महिला मोर्चा की अध्यक्ष विजया रहाटकर को भी CEC से हटाया गया है। नए चेहरों में सबसे बड़ा नाम महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस का है।
इसके अलावा भूपेंद्र यादव, ओम प्रकाश माथुर और महिला मोर्चा की अध्यक्ष वनथी श्रीनिवास नए चेहरे के तौर पर चुनाव समिति में शामिल किए गए हैं। इनके अलावा इस टीम में PM मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह के अलावा बीएस येदियुरप्पा, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, बीएल संतोष को जगह दी गई है।
भाजपा संसदीय बोर्ड में इस फेरबदल के मायने समझिए…
1. नार्थ ईस्ट को पहली बार प्रतिनिधित्व: नार्थ ईस्ट से सर्बानंद सोनोवाल को स्थान मिला है। वह असम के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल केंद्र में मंत्री है। नार्थ ईस्ट में उनका प्रभाव भी है। अगले साल नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में चुनाव होंगे, जिसका सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा मिलेगा। पहली बार नार्थ ईस्ट से किसी व्यक्ति को संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है।
2. सुधा यादव भरेंगी सुषमा स्वराज की जगह: सुषमा स्वराज के देहांत के बाद भाजपा संसदीय बोर्ड में महिला की कमी खल रही थी। उस कमी को पूरा करने के लिए भाजपा ने हरियाणा से आने वाली सुधा यादव को शामिल किया है। सुधा यादव ओबीसी से आती है। भाजपा का निशाना पूरे देश के ओबीसी पर है।
इसको देखते हुए सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में स्थान मिला है। इतना नहीं बल्कि सुधा यादव कारगिल शहीद की पत्नी है। इसके लिए सैनिक परिवारों में भी भाजपा की ओर से एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। सुधा यादव अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान सांसद रह चुकी है।
3. दलित के जरिए सियासी मैसेज:अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में मध्य प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद सत्य नारायण जटिया को भाजपा ने संसदीय बोर्ड में शामिल करके बड़ा सियासी मैसेज दिया है।
पहले मध्य प्रदेश से संसदीय बोर्ड में दलित चेहरे के तौर पर थावर चंद गहलोत हुआ करते थे, जिन्हें बीजेपी ने राज्यपाल बना दिया। उनके अलावा मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज चौहान थे, लेकिन उन्हें हटाकर भाजपा ने दलित चेहरे को ज्यादा पंसद किया है।
4. अल्पसंख्यक के नाम पर इकबाल: इकबाल सिंह पूर्व IPS हैं, जिन्होंने 2012 में बीजेपी जॉइन की। इसके पहले ये नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी के चेयरमैन भी रहे हैं। ये बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके हैं। जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था तब इकबाल सिंह एक्टिव पुलिस अफसर को रूप में सेवाएं दे रहे थे। इकबाल की बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एंट्री से बीजेपी पंजाब के वोटर को खुश करना चाहती है। वहीं देशभर में फैले सिख समुदाय के लिए ये मैसेज देने की कोशिश है।
5. दक्षिण भारत से येदि और लक्षमण: येदियुरप्पा कर्नाटक के सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। और तीन बार नेता विपक्ष रहे हैं। कर्नाटक के अलावा येदुरप्पा का दक्षिण में अच्छा खासा प्रभाव है। मुख्यमंत्री पद के हटाए जाने के बाद अब येदुरप्पा को संसदीय बोर्ड में लाया गया है। ये उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश लगती है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण में पैठ बनाने की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए येदुरप्पा का चेहरा काम आ सकता है।
डॉ. के. लक्ष्मण फिलहाल बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ये तेलंगाना राज्य से आते हैं और राज्य की इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। बीजेपी तेलंगाना के चंद्रशेखर राव को चुनौती देना चाहती है और इस काम में के लक्ष्मण अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा लक्ष्मण ओबीसी वोट बैंक भी साध सकते हैं।
संसदीय बोर्ड सबसे ताकतवर संस्था
भाजपा में पार्टी की संसदीय बोर्ड को सबसे ताकतवर माना जाता है। गठबंधन से लेकर हर बड़े फैसले बोर्ड की 11 सदस्यीय टीम लेती है। इसके अलावा राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा या विधान परिषद का नेता चुनने का काम भी इसी इकाई का होता है।
पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश के CM और विपक्ष का नेता चुनने का काम संसदीय बोर्ड ही करती है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गठबंधन को लेकर भी संसदीय बोर्ड का ही फैसला अंतिम माना जाता है।
चुनाव समिति दूसरी सबसे ताकतवर संस्था
संसदीय बोर्ड के बाद चुनाव समिति बीजेपी में दूसरी सबसे ताकतवर संस्था के तौर पर जानी जाती है। चुनाव समिति के सदस्य लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव के टिकटों पर फैसला लेते हैं। चुनावी मामलों की सभी शक्तियां पार्टी की चुनाव समिति के पास हैं।
2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी केंद्रीय चुनाव समिति ने ही तय किया था। तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह हुआ करते थे।