कम उम्र में पार्टनर तलाश रहे लड़के-लड़कियां !
गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड के लिए परिवार-दोस्तों से दूरी, मन न मिले तो तोड़ते रिश्ता, जान लेने-देने का खतरा
क्या आप ‘जूमर्स’ को जानते हैं, उनके दिल का हाल पहचानते हैं? 1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाली पीढ़ी के लिए जेनरेशन-जेड, जेन-जेड और जूमर्स जैसे टर्म का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि, 1981 से 1996 के बीच जन्म लेने वालों को मिलेनियल्स कहते हैं।
भारत समेत दुनियाभर में जूमर्स सबसे युवा हैं, जिनसे दुनिया को बदलने, उसे बेहतर बनाने की उम्मीदें जुड़ी हैं। लेकिन, यही पीढ़ी आज सबसे ज्यादा तनाव की चपेट में है। ‘सिग्ना इंटरनेशनल हेल्थ सर्वे-2023’ की ग्लोबल स्टडी के मुताबिक 18 से 24 साल की उम्र के 91 फीसदी युवा स्ट्रेस से जूझ रहे हैं।
छोटी उम्र में नहीं संभलता ब्रेकअप का दर्द
इन युवाओं के स्ट्रेस और एंग्जायटी की सबसे बड़ी वजह पढ़ाई या करियर का बोझ नहीं, बल्कि रिलेशनशिप और ब्रेकअप है। ‘नीलसन आईक्यू’ के एक सर्वे में 87 फीसदी जूमर्स ने बताया कि रिलेशनशिप से जुड़ी समस्याओं की वजह से वे स्ट्रेस झेल रहे हैं। इस पीढ़ी के हर तीसरे युवा की मेंटल हेल्थ पर ब्रेकअप का बहुत बुरा असर पड़ा है।
पारस हॉस्पिटल, गुड़गांव में सीनियर कन्सल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति सिंह बताती हैं कि जेन जेड में रिलेशनशिप स्ट्रेस बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है। इसकी कई वजहें हैं। वे छोटी उम्र में ही रिलेशनशिप में चले जाते हैं, लेकिन इतने मैच्योर नहीं होते कि रिश्तों से जुड़ी दिक्कतें सुलझा सकें।
इसलिए इस उम्र के युवाओं को पार्टनर से मतभेद, ब्रेकअप और ऐसे ही तमाम रिलेशनशिप इश्यूज से निपटना नहीं आता। उनके सामने जैसे ही कोई समस्या आती है, तो वे डर जाते हैं कि कहीं रिश्ता न टूट जाए, वे अकेले न पड़ जाएं। ब्रेकअप का यह डर एंग्जायटी और स्ट्रेस बढ़ा देता है।
लड़के-लड़कियों में स्ट्रेस की वजहें अलग
लड़के हों या लड़कियां, रिलेशनशिप से जुड़ा तनाव दोनों को परेशान करता है, दोनों में तनाव की वजह एकदम अलग है। डेटिंग ऐप ‘क्वैकक्वैक’ के सर्वे के मुताबिक लड़के जहां ब्रेकअप की वजह से स्ट्रेस का शिकार होते हैं, वहीं लड़कियां रिलेशनशिप को बचाए रखने का दबाव झेलती हैं, जिससे उनकी मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव असर पड़ता है। स्ट्रेस और एंग्जायटी उन्हें जकड़ लेती है।
रिश्ते को बचाने के इस प्रेशर के कारण ही लड़कियां टॉक्सिक रिलेशनशिप से भी बाहर नहीं निकल पातीं। यही नहीं, सोसायटी का दोहरा रवैया भी लड़कियों को परेशान करता है। चाहे करियर हो या फिर रिलेशनशिप, लड़कियों के लिए सोसायटी अलग नजरिया और अलग नियम रखती है। इस दोहरेपन का लड़कियों के करियर पर भी असर पड़ता है। काम उनके लिए बोझ बनने लगता है और वे ऑफिस जाने से भी कतराने लगती हैं।
सोशल मीडिया पर रिलेशनशिप का दिखावा
नीलसन आईक्यू का सर्वे बताता है कि 66 फीसदी जूमर्स को अपनी मेंटल हेल्थ बचाने के लिए सोशल मीडिया से ब्रेक लेना पड़ा। 40 फीसदी को सोशल मीडिया की वजह से ही स्ट्रेस का सामना करना पड़ा। उनकी ‘लव लाइफ’ पर भी सोशल मीडिया का गहरा असर पड़ रहा है।
डॉ. प्रीति सिंह बताती हैं कि रिलेशनशिप आजकल बच्चों के बीच स्टेटस सिंबल बनती जा रही है। जिसकी वजह से वे कम उम्र में ही पार्टनर खोजने लगते हैं। सोशल मीडिया की वजह से यह पियर प्रेशर और बढ़ जाता है। जिसका असर दूसरे बच्चों पर भी पड़ता है और वे एक-दूसरे को ठीक से जाने समझे बिना रिलेशनशिप में चले जाते हैं, फिर सबको दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के साथ फोटो भी पोस्ट करने लगते हैं।
ऐसे रिश्तों में दिक्कतें भी जल्दी शुरू होती हैं। इस तरह, स्टेटस सिंबल, सोशल मीडिया और पियर प्रेशर का यह सर्कस लगातार चलता रहता है। जिसमें रुठना, मनाना, नाराजगियां और मेंटल प्रेशर इन सब का घालमेल मेंटल हेल्थ को बर्बाद कर देता है।
जन्म-जन्मांतर के रिश्ते पर नहीं भरोसा
क्वैकक्वैक के सर्वे के दौरान 37% यूजर्स ने कहा कि उन्हें जन्म-जन्मांतर के रिश्ते और सोलमेट जैसे शब्दों पर भरोसा नहीं है। लेकिन, इमोशनल कनेक्शन उनके लिए फिजिकल रिलेशन से ज्यादा मायने रखता है।
जब बात साथी तलाशने की आती है तो वे पारंपरिक तौर-तरीकों की बजाए ऑनलाइन डेटिंग को प्राथमिकता देते हैं। 59 फीसदी युवाओं ने डेटिंग ऐप्स को पार्टनर तलाशने का अपना पसंदीदा तरीका बताया। इनमें से 54 फीसदी ने कहा कि भले ही वे ऑनलाइन पार्टनर तलाश रहे हैं, लेकिन उन्हें ऐसा साथी चाहिए जो रिश्ते को लेकर लिए सीरियस हो। इसके लिए वे एक ही समय में कई लोगों से चैटिंग करते हैं।
लेकिन, इतना सब करने के बावजूद रिश्ते क्या बात रिश्ते को सीरियस बनाती है या उसे मजबूती देती है, ये इस कच्ची उम्र में वे नहीं जानते। इन युवाओं के रिश्ते उनके दोस्तों की एडवाइज, उनके रिएक्शन और अपने मूड से मॉनिटर होती हैं।
इसी सर्वे में जूमर्स यह दावा भी करते हैं कि उन्हें झूठ की बुनियाद पर रिश्ते बनाना पसंद नहीं है, भले ही वे रिजेक्ट कर दिए जाएं। लेकिन, जैसे ही रिश्तों में कोई उलझन आती है, लगता है कि बात नहीं बन रही, तो वे रिश्ता तोड़ने से पहले वे इस बारे में बात करने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते। पार्टनर को बिना कुछ बताए अचानक बात करना बंद कर देते हैं और भूत की तरह गायब हो जाते हैं।
डेटिंग की दुनिया में इसे ‘घोस्टिंग’ कहते हैं। ये इस तरह के रिश्तों की सबसे बड़ी खामी है, जहां सच्चाई का सामना करने और सच कहने से युवा बचते हैं। उन्हें रिश्ता जोड़ने की जितनी जल्दी होती है, उन्हें रिश्ता तोड़ने की भी जल्दी होती है।
विचार न मिले तो कर लेते हैं ब्रेकअप
मिलेनियल्स हों या फिर उनसे पहले की पीढ़ी, अधिकतर लोग विरोधी विचार वालों को सम्मान देते हैं, उनके नजरिए को समझने की कोशिश करते हैं। खासकर रिलेशनशिप के मामले में अपना खुली सोच रखते हैं। लेकिन, जूमर्स की पसैनिलिटी इससे एकदम अलग है।
क्वैकक्वैक की स्टडी से पता चलता है कि जेनरेशन-जेड अपने विचारों को लेकर काफी हद तक जिद्दी है। दूसरों के नजरिए को समझने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है। जिंदगी जीने के तौर-तरीके और विचार न मिलते हों, तब वे साथ रहने की बजाए अलग हो जाना ज्यादा पसंद करते हैं।
डेटिंग ऐप पर पार्टनर तलाश रहे 52 फीसदी जूमर्स ने कहा कि अगर किसी यूजर की आइडियोलॉजी अलग हो, तो उसके साथ बात आगे नहीं बढ़ती। अब इस पीढ़ी की लड़कियां भी खुलकर अपनी राय रख रही हैं। 36 फीसदी लड़कियों ने कहा कि वे ऐसे किसी लड़के के साथ जिंदगी नहीं बिताना चाहतीं, जिससे उनके विचार न मिलें।
रिलेशनशिप के बाद फैमिली और फ्रेंड्स से दूरी
साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति कहती हैं अकेलापन जेन-जेड की परेशानी बढ़ा देता है। अगर न्यूक्लियर फैमिली में दोनों पेरेंट्स वर्किंग हैं, तो वे बचपन से ही अकेलापन झेलते हुए बड़े होते हैं। उनमें पार्टनर बनाने, रिलेशनशिप में जाने की चाहत बहुत ज्यादा होती है। रिलेशनशिप में जाने के बाद वे अपनी फैमिली और फ्रेंड्स के साथ टाइम बिताना कम कर देते हैं। धीरे-धीरे उनका सामाजिक दायरा सिकुड़ने लगता है और वे अलग-थलग पड़ जाते हैं।
फिर जब रिश्ते में कोई दिक्कत आती है, तब उनके पास कोई ऐसा नहीं होता, जिससे वे इस बारे में बात कर सकें, उससे मदद मांग सकें। रिलेशनशिप टूटना उनके लिए बहुत तकलीफदेह होता है। ऐसे हालात में स्ट्रेस मैनेज कर पाना मुश्किल हो जाता है।
पढ़ाई और काम पर पड़ता बुरा असर, मेंटल हेल्थ होती खराब
साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक ब्रेकअप और दूसरे रिलेशनशिप इश्यूज की वजह से जूमर्स अपनी पढ़ाई, करियर और दूसरे कामों पर ध्यान नहीं दे पाते। जिससे उनकी परफॉर्मेंस खराब होने लगती है। स्ट्रेस बढ़ता है। इससे उन्हें नींद नहीं आती। चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ जाता है। खाना ठीक से नहीं खाते। कॉलेज, ऑफिस नहीं जाते। नशे का सहारा लेते हैं।
अगर सपोर्ट सिस्टम अच्छा नहीं होता तो वे फैमिली और फ्रेंड्स से भी खुलकर बात नहीं कर पाते। जिससे हालात बदतर हो जाते हैं। डिप्रेशन और एंग्जायटी उनपर हावी हो जाती है। ऐसे में कई बार वे घातक कदम उठा लेते हैं। खुद को और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की मदद लेना जरूरी
किसी को छोड़ना या फिर किसी को छोड़कर जाते हुए देखना आसान नहीं होता। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट बताती हैं कि इन हालात के डर से ही लोग कई बार टॉक्सिक रिलेशनशिप से निकलने में बहुत टाइम लगा देते हैं। जिससे उनके लिए खतरा और बढ़ जाता है। अगर स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंग्जायटी या फिर कोई भी दूसरी मानसिक परेशानी महसूस हो तो तुरंत किसी काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट से मदद लेनी चाहिए। लेकिन, अधिकतर जूमर्स किसी की मदद लेने से झिझकते हैं। ऐसे में उनकी परेशानी बढ़ती जाती है।