रोहिंग्या बच्चों को सरकारी स्कूलों में मिल सकेगा प्रवेश’, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या बच्चों को लेकर एक बड़ा निर्देश दिया है। देश की शीर्ष न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि रोहिंग्या बच्चे प्रवेश के लिए सरकारी स्कूलों से संपर्क कर सकते हैं। कोर्ट ने आज रोहिंग्या बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका का निपटारा किया।

  1. रोहिंग्या बच्चों को सरकारी स्कूलों में मिल सकेगा प्रवेश।
  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई प्रवेश देने से इनकार करे तो HC जाएं।
  3. यूएनएचसीआर कार्ड वाले बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने की मांग संबंधी याचिका का निपटारा।
नई दिल्ली। देश के शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को एक बड़ी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान निर्देश दिया कि रोहिंग्या बच्चे प्रवेश के लिए सरकारी स्कूलों से संपर्क कर सकते हैं और इनकार किए जाने की स्थिति में वे उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।
दरअसल, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों को यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) कार्ड रखने वाले रोहिंग्या बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका का निपटारा किया।
कोर्ट ने क्या कहा?
जानकारी दें कि इस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने एनजीओ ‘रोहिंग्या मानवाधिकार पहल’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस से कहा कि हम चाहते हैं कि बच्चे पहले सरकारी स्कूलों का रुख करें। अगर उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाता है, तो वे उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।
पीठ ने यह भी कहा कि हाल में कोर्ट ने इसी राहत की मांग करने वाली एक अन्य जनहित याचिका में भी इसी तरह का आदेश पारित किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने इस दौरान कोर्ट से कहा कि अदालत अपने निर्देश को आदेश में दर्ज कर सकती है, जिससे 500 छात्रों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। गोंजाल्विस ने कहा कि मैं 2018 से इस मुद्दे के लिए लड़ रहा हूं और एक सीधे आदेश से अदालत 500 छात्रों को प्रवेश देगी।
बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि वह वही आदेश पारित कर रही है, जो उसने रोहिंग्या बच्चों के मामले में एक जनहित याचिका पर पारित किया था। पीठ ने कहा कि हम चाहते हैं कि बच्चे ही आगे आएं। 12 फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि शिक्षा प्राप्त करने में किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
जनहित याचिका में क्या की गई मांग
बता दें कि इस याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे शहर में रोहिंग्या शरणार्थियों को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक पहुंच प्रदान करें। शीर्ष अदालत ने पहले यह जानना चाहा था कि ये शरणार्थी किस क्षेत्र में रह रहे हैं और उनका विवरण भी मांगा था।
कोर्ट ने मांगी थी ये जानकारी

  • 31 जनवरी को सर्वोच्च न्यायलय ने एनजीओ से कहा कि वह अदालत को बताए कि रोहिंग्या शरणार्थी शहर में कहां बसे हैं और उन्हें कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कोर्ट ने एनजीओ के वकील गोंसाल्वेस से भी हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें दिल्ली में उनके बसने के स्थानों का उल्लेख हो।
  • इस दौरान एनजीओ की ओर से पेश वकील गोंसाल्वेस ने कहा था कि एनजीओ ने रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक पहुंच की मांग की थी, क्योंकि आधार कार्ड न होने के कारण उन्हें इससे वंचित कर दिया गया था।
  • उन्होंने कहा था कि वे शरणार्थी हैं जिनके पास यूएनएचसीआर कार्ड हैं और इसलिए उनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकते। लेकिन आधार के अभाव में उन्हें सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक पहुंच नहीं दी जा रही है।

दिल्ली में कहां रहते हैं रोहिंग्या शरणार्थी?

एनजीओ ‘रोहिंग्या मानवाधिकार पहल’ की ओर से पेश वकील ने पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रोहिंग्या शरणार्थी दिल्ली के शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास इलाकों में रहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया था कि शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में वे झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जबकि खजूरी खास में वे किराए के मकान में रहते हैं।

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