BJP Mission 2023: शिवराज ने फिर दिया 200 पार का नारा,
2018 में रहे थे नाकाम, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े …
2018 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘अबकी बार 200 पार’ का नारा दिया था। नतीजे आए तो पार्टी के दावों की हवा निकल गई। अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए शिवराज ने फिर यही लक्ष्य रखा है …
2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा सरकार बनाने में नाकाम रही थी। उस समय पार्टी का लक्ष्य 200 पार यानी 200 से ज्यादा सीटें जीतने का था। इसके बाद भी पार्टी सिर्फ 109 सीटें ही जीत सकी थी। 2023 के विधानसभा चुनावों से एक साल पहले भाजपा ने एक बार फिर 200 पार का नारा दिया है। कुशाभाऊ ठाकरे की जयंती के कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान ने अबकी बार 200 पार का नारा दिया है। क्या यह हासिल हो जाएगा? क्या कहते हैं जमीनी हालात?
आइये, पहले बात करते हैं 2018 के विधानसभा चुनावोंं और उसमें भाजपा के प्रदर्शन की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए नारा दिया था कि अबकी बार दो सौ पार। चौथी बार बाजी जीतने के लिए शिवराज सिंह चौहान चुनावी मैदान में थे। पार्टी और शिवराज को पूरा भरोसा था कि सत्ता में वापसी होगी। नतीजे आए तो बीजेपी 165 से 109 पर और कांग्रेस 58 से 114 पर पहुंच गई थी। कांग्रेस ने अपना 15 साल का वनवास खत्म कर कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी।
क्या-क्या बदल गया 2018 के बाद
कमलनाथ सरकार बनने के 15 महीने बाद पार्टी में ही उपेक्षा का सामना कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 22 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी। इससे कमलनाथ सरकार ढह गई। शिवराज सिंह चौहान ने फिर शपथ ली और भाजपा की सरकार बनाई। प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो विधानसभा चुनावों के बाद एक लोकसभा और 32 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं।
2019 लोकसभा चुनावः प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। प्रदेश की 29 लोकसभा सीट में से 28 पर बीजेपी को जीत मिली थी। छिंदवाड़ा में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने चुनाव जीता था। हालांकि, इस सीट पर पिछली जीत की तुलना में मार्जिन बहुत कम था।
2020 में 28 सीट पर उपचुनावः कांग्रेस सरकार के गिरने के बाद उपचुनाव में बीजेपी ने अपनी सरकार बचा ली थी। 28 सीटों में से भाजपा ने 19 और कांग्रेस ने 9 जीती। अधिकतर सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थी। ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 में से 7 सीटें कांग्रेस ने जीती। राजनीतिक जानकारों ने बीजेपी के प्रदर्शन को उम्मीद के मुताबिक नहीं माना। यह कहा गया कि भाजपा को ज्यादातर सीटेें जीतनी चाहिए थी।
मई 2021 दमोह उपचुनावः सत्ता में रहने के बावजूद अक्टूबर 2020 दमोह विधानसभा सीट के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। यह सीट तत्कालीन कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के इस्तीफे से खाली हुई थी। इस पर मई में चुनाव कराए गए। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन ने बीजेपी के प्रत्याशी राहुल लोधी को 17028 मतों से हरा दिया था।
अक्टूबर 2021 में चार सीटों पर चुनावः इस चुनाव में सतना की रैगांव सीट सत्ताधारी भाजपा से कांग्रेस ने छीन ली। यह इसलिए अहम है क्योंकि 2018 के चुनाव में भाजपा को विध्य क्षेत्र से बड़ी जीत मिली थी। यह भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। हालांकि, खंडवा लोकसभा के साथ जोबट और पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।
2022 नगरीय निकाय चुनावः नगरीय निकाय चुनाव में शहरों के परिणाम भी बीजेपी के हिसाब से ठीक नहीं रहे। बीजेपी 16 में से 9 महापौर सीट ही बचा सकी। यहीं नहीं कई सीटों पर बीजेपी की जीत का अंतर मामूली था। इस चुनाव में बीजेपी ने नौ, कांग्रेस ने पांच और कटनी में निर्दलीय और सिंगरौली में आम आदमी पार्टी के महापौर प्रत्याशी जीते। इसे भी भाजपा के दावों के हिसाब से अच्छा नहीं माना जा रहा है।
इसलिए चौकन्ना होने की जरूरत
प्रदेश में चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बनाम कांग्रेस होते रहे हैं। पिछले साल 32 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने 11 विधानसभा सीटें जीती हैं। यानी 34 प्रतिशत पर भाजपा को हार का सामना करना। जबकि अधिकर सीटें भाजपा को समर्थन करने की वजह से विधायकों के इस्तीफे से बाद खाली हुई थी। नगर निगम की 16 में से नौ हारी यानी करीब 54 प्रतिशत पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में विंध्य और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा की हार बताती है कि उसे चौकस रहने की जरूरत है।
क्या है बीजेपी के कमजोर होने के कारण
- नाराज पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को मनाने में नाकाम। इसका प्रभाव संगठन पर पड़ रहा। कटनी में बीजेपी की बागी प्रीति सूरी महापौर चुनाव जीत गई।
- कई जगह जातिगत समीकरण नहीं बिठा पाने से खेल बिगड़ा। सिंगरौली में ब्राह्मण वोटों ने गणित बिगाड़ दिया।
- भाजपा कुछ समय से गुटबाजी बढ़ने से अलग-अलग खेमों में बंट गई है। नतीजा ग्वालियर में हार।
- पार्टी में वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करना। इससे भी संगठन पर असर पड़ा है।
- खस्ताहाल सड़क, रोजगार के मुद्दे का भी चुनाव में असर देखने को मिला है।
अब मामा की बुलडोजर छवि
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बच्चियों के मामा की छवि अब बुलडोजर मामा में तब्दील की गई है। अपराधियों, दंगाइयों के अवैध मकान और दुकान पर मामा का बुलडोजर चल रहा है। 2018 से पहले मामा शांत रहते थे। अब हिंदुत्व को लेकर मुखर रहते हैं। पहले गाड़ देंगे, खदेड़ देंगे जैसे शब्दों का प्रयोग करते नहीं दिखते थे।
अब बूथ रणनीति के केंद्र में
भाजपा ने बूथ को लेकर रणनीति बनाई है। प्रदेश के 65 हजार बूथ सशक्तिकरण अभियान में डिजिटल के साथ ही फिजिकल पहुंच को सुनिश्चित किया जा रहा है। प्रत्येक बूथ पर पन्ना प्रमुख बनाने के साथ ही एक अध्यक्ष, महामंत्री और सोशल मीडिया एजेंट की तैनाती पर फोकस है। बूथ मैनेजमेंट को आधार बनाकर भाजपा ‘बूथ जीता चुनाव जीता’ नारे पर आगे बढ़ रही है।