भोपाल : कैसे लड़ेंगे कुपोषण से ….38 लाख बच्चों का पोषण आहार
कैसे लड़ेंगे कुपोषण से:दो विभागों के बीच उलझा 38 लाख बच्चों का पोषण आहार, चार महीने से आंगनवाड़ियों में पहुंच रहा है अधूरा राशन
प्रदेश की आंगनवाड़ियों के 38 लाख बच्चों के राशन का मामला दो विभागों के बीच उलझ गया है। 95 हजार आंगनवाड़ियों में बच्चों को पूरक पोषण आहार बांटने का काम स्वसहायता समूहों को मिला हुआ है, लेकिन उन्हें मार्च के महीने से कंट्रोल दुकानों से राशन नहीं मिल पा रहा है। जुलाई में सिस्टम अपडेट हुआ तो कुछ आंगनवाड़ियों में पूरक पोषण आहार बनाने के लिए स्वसहायता समूहों को गेहूं और चावल मिल पाया है।
पिछले चार महीनों से बच्चों के अनुपात में आंगनवाड़ियों में राशन नहीं पहुंच पा रहा है। महिला बाल विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक शाह के मुताबिक ये खाद्य विभाग ही बताएगा कि राशन क्यों नहीं पहुंच पा रहा है। वहीं, खाद्य विभाग के अफसरों का कहना है कि हमें आवंटन मिलेगा तो बांट देंगे। आवंटन मिल ही नहीं रहा है तो कैसे बांटें।
महिला बाल विकास और खाद्य विभाग एक-दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी
- 95 हजार आंगनवाड़ियां हैं मध्य प्रदेश में
- 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए नाश्ता और भोजन तैयार होता है
दिक्कत इसलिए.. पहले पर्ची देते थे, अब पोर्टल से आवंटन
मार्च 2022 के पहले खाद्य आवंटन के लिए जिले और ब्लॉक में महिला बाल विकास विभाग द्वारा बच्चों की संख्या के हिसाब से पर्ची तैयार कर स्वसहायता समूहों को दी जाती थी। इसके अनुसार गेहूं और चावल राशन दुकान से मिल जाता था। नई व्यवस्था से यह आवंटन पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन कर दिया गया है लेकिन तकनीकी कारणों से पोर्टल में स्वसहायता समूहों के नाम और आवंटन दर्ज नहीं हैं। लिहाजा, उन्हें कंट्रोल की दुकान से बैरंग लौटा दिया जाता है। इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री तक की जा चुकी है। संचालक खाद्य दीपक सक्सेना का कहना है कि जिन्हें ऑनलाइन खाद्यान्न नहीं मिल पा रहा है, उन्हें ऑफलाइन दे रहे हैं। जो दिक्कतें हैं, जल्दी दूर कर लेंगे।
खाद्य सामग्री खरीदी के लिए राशि भी नहीं मिल रही
आंगनवाड़ियों में 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए नाश्ता और भोजन तैयार करने के लिए गेहूं और चावल सार्वजनिक उपभोक्ता भंडार की दुकानों से दिया जाता है। साथ ही नाश्ता और भोजन तैयार करने में लगने वाली अन्य सामग्री खाद्य तेल, सोया, मूंगफली, गुड़, दाल, सब्जी नमक आदि की खरीदी के लिए प्रत्येक बच्चे के हिसाब से 7.50 रुपए दिए जाते हैं। यह राशि भी पिछले चार महीनों से स्व-सहायता समूहों तक नहीं पहुंच रही है।