बच्चे का गुस्सा केसे सभाले … ?

कोई उसके साथ न खेले, मैथ्स के सवालों पर रोए तो ‘एंगर थर्मामीटर’ बनाएं, मिलेगी मदद …

बच्चे की मां प्रिंसिपल की बात मानकर साइकोलॉजिस्ट से मिलती हैं। बच्चे के साथ कई सेशन करने के बाद साइकोलॉजिस्ट को पता चलता है कि वो अपने घर के माहौल को लेकर परेशान है। इसलिए वो शांत रहता है और हमेशा कुछ सोचता रहता है। जब उससे कुछ पूछा जाता है तो या तो वो चुप रहता है या फिर गुस्सा करने लगता है। आखिर में पता चलता है कि बच्चे के इस बर्ताव का सबसे बड़ा कारण उसके माता-पिता के बीच होने वाला झगड़ा है, जिससे घर का माहौल खराब होता है। ये डॉक्यूमेंट्री अमेरिका के ‘द मेंटल हेल्थ’ फिल्म बोर्ड ने बनाई थी। यानी आज से 72 साल पहले भी बच्चों का गुस्सा, जिद और मेंटल हेल्थ एक गंभीर मुद्दा था।

अगर आपका बच्चा भी गुस्सा करता है या जिद्दी है तो क्या आपने कभी सोचा है कि उसके अंदर ये आदतें कहां से आई हैं। घर के बिगड़ते माहौल से घबराकर बच्चे के अंदर निराशा पनपने लगती है और ऐसी स्थिति में उसका मन कई सवालों के बीच उलझकर रह जाता है। यही उलझन बच्चे के गुस्से की वजह बनती है। गुस्से में आकर बच्चा चिल्लाता है या आक्रामक हो जाता है। अगर बच्चा हर छोटी बात पर गुस्सा करने लगे तो इसका सीधा संबंध उसके मानसिक स्वास्थ्य से होता है।

गुस्सा और स्ट्रेस बच्चे के हुनर को निखार सकता है लेकिन…

अमेरिका में चाइल्ड एंड फैमिली साइकोलॉजिस्ट डॉ. जैजमीन मैक कॉय अपनी फेमस किताब ‘द अल्टीमेट टैंट्रम गाइड’ में लिखती हैं कि बच्चों में गुस्सा और स्ट्रेस उनके हुनर को निखारने में मदद करते हैं। ‘मॉम साइकोलॉजिस्ट’ नाम से जानी जाने वालीं मैक कॉय आगे कहती हैं- अगर यही गुस्सा आदत बन जाए तो बीमारी की शक्ल ले सकता है। यानी आपके बच्चे का गुस्सा या स्ट्रेस एक हद तक उसे आगे बढ़ने में मदद कर सकता है लेकिन समय रहते इन पर रोक न लगाई जाए तो यही बात बच्चे और पेरेंट्स दोनों के लिए परेशानी बन सकती है। आइए जानते हैं यह सब कैसे होता है।

बच्चे में नजर आएं ये लक्षण तो उसकी मेंटल हेल्थ पर ध्यान दें

अगर बच्चा हाइपरएक्टिव है, गुस्सा आने पर हाथ-पैर पटकता है, बातूनी है या कम बात करता है, जिद्दी है, बड़ा होने के बावजूद बिस्तर गीला करता है, गुमसुम रहता है, उसे नींद कम आती है, खाना कम खाता है, फास्ट फूड ज्यादा पसंद करता है तो ये सभी बातें इस ओर इशारा करती हैं कि बच्चे की मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है। अब आगे बढ़ने से पहले ये जानें कि मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर क्या है और बच्चों में ये क्यों होता है।

दिमाग में होने वाले केमिकल बदलावों से होता है मेंटल डिसऑर्डर

एंग्जॉयटी, डिप्रेशन और घर या बाहर के माहौल से पैदा हुई घबराहट के चलते दिमाग में कुछ केमिकल बदलाव होते हैं। जिससे बच्चे की भावनाओं और व्यवहार पर असर देखने को मिलता है। ऐसी स्थिति में बच्चे के दिमाग में एक केमिकल रिलीज होता है, जिसका नाम न्यूरोट्रांसमीटर है। ये केमिकल हर समय एक्टिव रहता है और दिमाग के नर्व सेल्स को मैसेज पहुंचाता रहता है। बता दें कि नर्व सेल्स दिमाग से मिलने वाले निर्देशों को शरीर के दूसरे अंगों तक पहुंचाते हैं। जैसे प्यास लगने पर दिमाग के नर्व सेल्स हाथ को आदेश देंगे कि पानी का गिलास हाथ से उठाकर मुंह तक ले जाना है और पानी पीना है।

हर व्यक्ति की सोच और उसकी हर हरकत इसी केमिकल से तय होती है। इसी केमिकल के असंतुलित होने पर बच्चे को मेंटल डिसऑर्डर जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के प्रोफेसर और साइंटिस्ट माइकल एंडरसन के मुताबिक दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर का एक केमिकल दोस्त भी होता है जिसे गाबा (GABA) के नाम से जाना जाता है। गाबा का काम होता है न्यूरोट्रांसमीटर के संतुलन को बनाए रखना। लेकिन दिमाग में कुछ और केमिकल्स भी होते हैं जो न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलित होते ही एक्टिव हो जाते हैं। इसलिए गाबा हमेशा अपने मकसद में सफल नहीं हो पाता। नतीजा यह होता है कि गुस्से और दुख में आप शांत रहकर फैसले नहीं ले पाते। इसलिए केमिकल्स का यह असंतुलन बच्चे में गुस्सा, चिड़चिड़ापन और बेचैनी पैदा करता है।

दिमाग अपने अंदर मेमोरी स्टोर भी करता है। दिमाग के इस हिस्से को हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) कहते हैं। इस हिस्से में डर की वजह से आने वाले बुरे ख्यालों और सपनों को रोकने में भी गाबा बच्चे की मदद करता है। यानी कुछ बुरा याद आने पर घबराने और हड़बड़ाने से रोकता है।

बच्चे की आदतों में छिपे हैं डिसऑर्डर के संकेत

गुस्सा, घर के माहौल से होने वाली घबराहट और इससे मिला शॉक बच्चे की आदतों पर असर डालता है। इससे बच्चे में पांच तरह के इमोशनल डिसऑर्डर विकसित हो सकते हैं। आइए समझते हैं कि बच्चों की कौन सी आदत के पीछे कौन सा डिसऑर्डर छिपा हो सकता है।

1- रिएक्टिव एडजस्टमेंट डिसऑर्डर ( RAD)

ऐसे बच्चे और बच्चों की तुलना में बहुत नपी-तुली भावनाएं जाहिर करते हैं। बुरा व्यवहार करने के बावजूद उन्हें कोई पछतावा नहीं होता। ऐसे बच्चे अच्छी या बुरी परिस्थिति में भावनाओं के भड़कने पर भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करते। ऐसे बच्चों को देखकर आपको लग सकता है कि उन्हें पेरेंट्स के प्यार और देखभाल की भी जरूरत नहीं। लेकिन असल में ऐसा नहीं होता। ऐसे बच्चे अपनी जरूरतों और मन की बात नहीं कह पाते। इन बच्चों से जब कोई उनका प्रिय खिलौना भी छीन ले तो वे परेशान नहीं होते।

2- एडजेस्टमेंट डिसऑर्डर (AD)

यह डिसऑर्डर बच्चों के जीवन में अप्रिय घटनाओं या अचानक हुए बदलावों के कारण पनपता है। इसमें बच्चे का रिएक्शन इमोशनल हो सकता है, जैसे उस बच्चे का उदास हो जाना, अचानक घबरा जाना। इस परेशानी से जूझता बच्चा बदतमीजी या दूसरों के साथ अप्रिय बर्ताव भी कर सकता है।

3- पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)

इस समस्या से परेशान बच्चों और टीनएजर्स को लगातार बुरे ख्याल आते हैं। वो ज्यादातर बुरी चीजें ही सोचते हैं। उनका मन बुरी घटनाओं या दर्दनाक हादसों के फ्लैशबैक में डूबा रहता है। यानी उनके दिमाग को स्टोर करने वाला हिस्सा हिप्पोकैम्पस उन्हें ये बातें याद दिलाता रहता है। बच्चा नींद कम आने, लड़ाई करने और स्कूल में परेशान नजर आ सकता है। बच्चा कई जगहों पर जाने से बचता और डरता भी है। इन बच्चों में डिप्रेशन, सिरदर्द या पेटदर्द जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं।

4- एक्यूट स्ट्रेस डिसऑर्डर (ASD)

इस डिसऑर्डर के लक्षण PTSD जैसे ही होते हैं। ये किसी दर्दनाक या इमोशनल घटना के घटने के कुछ दिनों बाद या एक-दो महीने के अंदर नजर आते हैं। ऐसे मामलों में तुरंत मनोचिकित्सक की मदद लेने पर ASD की समस्या ठीक होती ही है। साथ ही PTSD जैसी समस्या का खतरा टल जाता है।

5- डिसइनहिबिटेड सोशल एंगेजमेंट डिसऑर्डर (DSED)

इस डिसऑर्डर की समस्या से जूझते बच्चे अजनबियों के साथ बातचीत करने में सहज होते हैं। उन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने में जरा भी देर नहीं लगती। ऐसे बच्चे किसी भी अजनबी के साथ जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। कई बार वे अपने पेरेंट्स को बताए बिना अजनबियों के साथ इधर-उधर घूमने तक निकल जाते हैं।

बच्चों में ऐसे लक्षण दिखें तो कैसे निपटें

कई अध्यनकर्ताओं का कहना है कि ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों की मेंटल हेल्थ पर बात करने से बचते हैं। उन्हें इस विषय पर बात करने में शर्म महसूस होती हैं। इसलिए ऐसे विषयों पर फिल्में, नाटक और नुक्कड़ नाटक तैयार किए जाते हैं, बैनर लगाए जाते हैं ताकि लोगों को इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिले और वो इस विषय की गंभीरता समझें।

चाइल्ड काउसलर डॉ. संजीव गुप्ता का कहना है कि बच्चों में स्ट्रेस, गुस्सा जैसे लक्षण लगातार दिखें तो पेरेंट्स परेशान होने के बजाए उससे निपटने के तरीकों को समझें और जानें। बच्चे के एंगर अटैक को देखकर उसे जानने और समझने की कोशिश करें, न कि उस पर गुस्सा करें।

अब हम आपको बताते हैं किस तरह जानें कि बच्चा इन समस्याओं से जूझ रहा है…

1- छह साल का समझदार बच्चा जब गुस्से में नखरे दिखाए

छोटी उम्र में बच्चे बहुत ज्यादा गुस्सा जाहिर करते हैं, लेकिन 6 साल की उम्र के बाद बच्चे अपनी भावनाओं को समझने लगते हैं। इसलिए वे अपने आपको कंट्रोल करना भी सीख जाते हैं। अगर आपका बच्चा 6 साल के बाद भी गुस्से में नखरे दिखाने लगे तो इसका मतलब है कि वो एंगर की समस्या से जूझ रहा है। अगर बच्चा खिलौने सही जगह पर रखने, स्कूल के लिए तैयार होने, होमवर्क करने की बात एक बार में नहीं मानता और डांटने-डपटने से ही कहना माने तो ये लक्षण ठीक नहीं हैं।

2- मैथ्स के सवालों पर रोए या स्कूल से लगातार नोट आए

बच्चे हर प्रतियोगिता में जीतना चाहते हैं। ऐसा न होने पर वे निराश हो जाते हैं। लेकिन अगर उनका चिड़चिड़ापन और गुस्सा काफी देर तक रहता है तो यह चिंता की बात है। इस वजह से भविष्य में भी उनके सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। अगर मैथ्स के हर चैप्टर में वो रोने लगते हैं तो ये समस्या का संकेत है। बच्चा स्कूल एक्टिविटीज में हिस्सा न ले और बच्चे की एक्टिविटी से बचने को लगातार नोट आ रहे हों तो टीचर्स से मिलकर बच्चे के बिहैवियर को समझना जरूरी है।

3- कोई आपके बच्चे के साथ न खेले या आपका बच्चा शिकायत करे

बच्चे की दूसरे बच्चों से दोस्ती भी उसकी समस्या को समझने में मदद करती है। अगर स्कूल में कोई आपके बच्चे के साथ न खेले। अगर आपका बच्चा हर गेम में जीतने के लिए रूल बदल दे या हारने पर खेलना छोड़ दे या झगड़ने लगे तो आप संभल जाएं। अगर हर बार बच्चा ये कहे कि लड़ाई दूसरे बच्चे ने शुरू की या ये कहे कि टीचर उसे अच्छे से नहीं पढ़ाते और शिकायत करे कि उसके साथ ठीक व्यवहार नहीं होता। और बच्चा अपने गुस्से को सही ठहराए तो उसकी ये समस्या चिंता की बात है। बच्चे के इसी व्यवहार को ब्लेमगेम कहा जाता है।

4- बच्चा हर बात पर गुस्सा हो जाए और फिर रोने लगे

अगर बच्चा हर बात पर गुस्सा हो जाता है तो समझ लीजिए कि उसके अंदर के इमोशंस और एनर्जी सही तरीके से बाहर नहीं आ पा रही है। ऐसा होने पर आपका बच्चा गुस्से में आकर ऊंटपटांग हरकत करता है और फिर रोने लगता है। बच्चा ऐसी हरकत लगातार करता रहे तो आगे चलकर ऐसे बच्चे खुद को नापसंद करने लगते हैं।

5- हाथ-पैर पटके और आपको तकलीफ देने के लिए गलत बोले

बच्चा गुस्से में हाथ-पैर पटकने लगे और जमीन पर लोट जाए। उसके हाथ में आई हर चीज फेंकने लगे तो संभल जाएं। ऐसे बच्चे अपने मनपसंद खिलौने तोड़ देते या फेंक देते हैं। गुस्से में आने पर बच्चा आपकी अटेंशन पाने और रिएक्शन देखने के लिए या आपको तकलीफ पहुंचाने के लिए गलत भाषा का भी इस्तेमाल करे तो ये स्थिति चिंताजनक है।

 

बच्चों का गुस्सा शांत करने के लिए शुरुआत से ही कुछ उपाय करने होंगे …

1- बच्चे के गुस्से से डरें नहीं, वो चिल्लाएं तो आप न चिल्लाएं

अपने बच्चे के गुस्से से लड़ने के बजाए उसके गुस्से से प्यार से निपटें और उसको गुस्सा कंट्रोल करना सिखाएं। ये ऐसा हुनर है जो उसे बड़े होने के बाद भी काम आएगा। बच्चा आप पर चिल्लाए तो उसी वक्त आपका उस पर चिल्लाना सही नहीं। यह स्थिति को बिगाड़ सकता है। पेरेंट्स के लिए यह समझना जरूरी है कि तीन साल की उम्र से बच्चे में जो आदतें विकसित हो रही हैं, वह उनके डेवलपमेंट का ही एक हिस्सा है। बच्चों के लिए व्यहार की सीमा तय करना ही पेरेंट्स की जिम्मेदारी है। यानी बच्चा जब नाराज हो तो अपनी नाराजगी आपको कैसे बताए। इसके लिए पेरेंट्स बच्चे को अपनी भावनाएं जाहिर करने का तरीका समझाएं। उसे सिखाएं कि उसे क्या कहना चाहिए। जैसे-बच्चा ये बोले कि मैं नाराज हूं, मैं खुश नहीं हूं, मुझे यह अच्छा नहीं लगता। यानी बच्चा यह सीखे कि भावनाओं को जाहिर करना तो ठीक है, लेकिन उन्हें गलत ढंग से जताना ठीक नहीं।

2- बच्चों को सिखाएं भावनाओं की भाषा

बच्चों को ये बताएं कि गुस्सा आने पर क्या होता है। फैमिली और चाइल्ड साइकोलॉजी स्पेशलिस्ट मैक कॉय भी कहती हैं कि ऐसे समय में थोड़ा रुकना चाहिए और ये जानना चाहिए कि गुस्से के दौरान शरीर में क्या हाेता है या बॉडी कैसा महसूस करती है। ये समझना जरूरी है। आपको कैसे पता चलता है कि आप क्या महसूस कर रहे हैं। ये एक महत्वपूर्ण अनुभव है।

3- समस्या को नाम दें ताकि उसका हल मिल सके

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डैन सीगल के अनुसार, जब आप भीतरी टेंशन और अवसाद को महसूस करें तो आप उस समस्या को पहचानकर और उसे नाम देकर अपनी समस्या को 50 फीसदी कम कर सकते हैं। डैन ने अपनी इस बात को समझाने के लिए एक टर्म दिया- ‘नेम इट टू टेम इट’ यानी समस्या को सुधारने के लिए उसको पहचानें और एक नाम दें। सभी चाइल्ड डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट का भी यही मानना है। डैन का ये भी मानना है कि बच्चों को ये सिखाया जाना चाहिए कि वे अपनी भावनाओं को पहचानें और उन्हें एक नाम दें, जिससे जब बच्चा उस स्थिति से गुजरे तो वह उस पर बात कर सके। यह बात समझाने के लिए बच्चे को दूसरे बच्चों की तस्वीरें दिखाएं, जिसमें बच्चे मुस्करा रहे हों, हंस रहे हों या गुस्से में हों।

4- आप जब नाराज हों ताे बच्चों को जरूर बताएं

कई बार माता-पिता ये सोचते हैं कि वे बच्चों को अपने इमोशंस से बचाकर रखें। लेकिन, गुस्से या फ्रस्ट्रेशन के दौरान बच्चों के सामने अपनी भावनाएं जाहिर करना बच्चों के लिए सीख हो सकती है। हालांकि, हर बार ऐसा करेंगे तो बच्चा आपकी नाराजगी को हल्के में ले सकता है। इसके लिए आपको ये तय करना होगा कि बच्चे के किस बिहेवियर पर आपको अपनी नाराजगी किस तरीके से जाहिर करनी है।

5-गहरी सांस लेना या रिवर्स काउंटिंग सिखाएं

बच्चे को अपना गुस्सा बाहर निकालने में मदद करना एक तरह का एक्सपेरिमेंट है, जिसमें पेरेंट्स कई तरीके आजमा सकते हैं। कुछ बच्चे गहरी सांस लेकर गुस्से को शांत करने में कामयाब होते हैं तो कुछ को रिवर्स काउंटिंग से मदद मिलती है। वहीं, कुछ बच्चों को गुस्से मिटाने के लिए ज्यादा शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है।

मैक कॉय आगे कहती हैं कि बच्चों को ये सिखाएं कि खुश या उदास होने की तरह गुस्सा करना भी ठीक है। बस उनको गुस्सा जाहिर करने का तरीका और उसे कम करने के टिप्स भी सिखाने चाहिए।

6- बच्चे के मन की बात भी सुनें

पेरेंट्स इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों को वो सभी मौके दें, जहां वे अपनी भावनाएं माता-पिता के सामने रख सकें। बच्चों का पेरेंट्स से ये जुड़ाव जरूरी है। बच्चों से लगातार बातचीत होती रहनी चाहिए, ताकि वे अपनी भावनाएं जाहिर करने में सहज हों और खुलकर अपनी बात कह सकें। अगर बच्चे गुस्सा आने पर अपनी बात कहना नहीं सीख पाएगा तो यह बात उसे जिंदगी भर परेशान करेगी। या तो वो गुस्सा दबाएगा या फिर आक्रामक और अमर्यादित व्यवहार करेंगे।

7- बच्चे को गु्स्सा आए तो उनसे पेंटिंग या कलरिंग करवाएं

गुस्से का कारण जानना तो जरूरी है ही, साथ में सही तरीकों और शब्दों के चयन से बच्चों के बर्ताव में आप बदलाव पाएंगे। बच्चों को सिखाएं कि जब उन्हें गुस्सा आने लगे तो उन्हें क्या करना चाहिए। जब वह मायूस हैं तो चीजें फेंकने के बजाय, वे अपने कमरे या किसी शांत जगह में जाएं। जब तक वे बेहतर महसूस न करें, उन्हें पेंटिंग, कलरिंग या किसी ऐसी एक्टिविटी को करने को कहें जो उन्हें पसंद हो। इसके अलावा बच्चे काे मनपसंद गेम या खिलौना दें। ऐसा करते हुए वह शांत भी होंगे, खुद को कंट्रोल करना भी सीखेंगे और भविष्य में अपने व्यवहार के प्रति जिम्मेदार बनेंगे।

8- बच्चा गुस्सा जाहिर करने वाले शब्द जाने

बच्चों को सबसे पहले गुस्से की भाषा और शब्दावली के बारे में बताएं ताकि वो उन्हें ठीक से पहचान कर पेरेंट्स से गुस्से के बारे में बता सके। इसके लिए बच्चा अपनी भावनाओं को जताने वाले शब्द जैसे- खुशी, दुख, डर, मायूसी और अकेलापन का मतलब जाने। इन शब्दों को समझने में माता-पिता उसकी मदद करें।

9- बच्चों को एंगर थर्मामीटर बनाना सिखाएं

बच्चों को एक कागज पर एंगर थर्मामीटर बनाना सिखाएं, जिसमें जीरो से लेकर 10 तक नंबर हो। इस थर्मामीटर में जीरो का मतलब ‘मैं गुस्सा नहीं हूं’। 5 का मतलब ‘थोड़ा नाराज हूं’ और 10 का मतलब ‘मैं ज्यादा गुस्से में हूं।’ बच्चे को जब गुस्सा आना शुरू हो को उसे इस थर्मामीटर के ऊपर नंबर लिखने को कहें। इससे भी बच्चे को गुस्से को काबू करने में मदद मिलेगी।

10-गुस्सा कम न हो तो एंगर मैनेजमेंट काउंसलिंग करवाएं

इन सब कोशिशों के बावजूद बच्चे का गुस्सा कम न हो तो उसे मेडिकल हेल्प की जरूरत हो सकती है। अगर आपको लग रहा है कि बच्चा छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है तो मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स से मिलें। वह बच्चे का गुस्सा भड़कने की वजहों को पहचानकर ‘एंगर मैनेजमेंट काउंसलिंग’ करते हैं।

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