सत्ता के गलियारों में विलासिता का आनंद लेते बाबा और राजनीति में उनका दखल

हजारों साल बाद भी इन बाबा लोगों को समाज में बड़ी प्रतिष्ठा हासिल है क्योंकि एक समाज के रूप में भारत अब भी चमत्कारों में विश्वास करता है जिसे ये तथाकथित धार्मिक पुरुष पैदा करने का दावा करते हैं. अब वे सत्ता के गलियारों में वीवीआईपी कल्चर और विलासिता का आनंद लेते देखे जाते हैं.

अतुल्य भारत लंबे समय से अजब-गजब किस्म के बाबाओं और उनकी अलौकिक शक्तियों को लेकर अविश्वसनीय कहानियों का घर रहा है. समाज में उनकी उपस्थिति और उनकी अलौकिक शक्तियों का रामायण और महाभारत जैसे हिन्दू धर्मग्रंथों में विस्तार से चित्रण किया गया है. हजारों साल बाद भी इन बाबा लोगों को समाज में बड़ी प्रतिष्ठा हासिल है क्योंकि एक समाज के रूप में भारत अब भी चमत्कारों में विश्वास करता है जिसे ये तथाकथित धार्मिक पुरुष पैदा करने का दावा करते हैं.

चूंकि अमीर और गरीब, बड़े या छोटे – समाज के हर वर्गों के लोग उनसे आशीर्वाद लेने और अपने जीवन में चमत्कार की उम्मीद में उनके पास आते हैं, वे जल्द ही राजनेताओं के भी चहेते बन जाते हैं. जो बाबा अपने आश्रम और पहाड़ी गुफाओं में रहते थे, वे सत्ता के गलियारों में वीवीआईपी कल्चर और विलासिता का आनंद लेते देखे जाते हैं.

स्वतंत्रता से पहले भारत के नेताओं का बाबाओं से जुड़ाव और निर्भरता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, मगर स्वतंत्रता के तुरंत बाद उन्हें प्रमुखता मिलने लगी.

आनंदमयी मां और नेहरू परिवार

आनंदमयी मां उर्फ निर्मला सुंदरी के साथ पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के संबंध सभी जानते हैं. नेहरू जी के जीवन में वह उनकी पत्नी कमला नेहरू के माध्यम से आईं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी उपस्थिति में कमला नेहरू को असीम सांत्वना मिलती थी. आनंदमयी मां के अनुयायी उनके चमत्कार और जादुई उपचार के कारण उनसे जुड़े.

यह प्रवृत्ति तब जारी रही जब नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी (गांधी) के स्वास्थ्य को लेकर योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मदद मांगी. इंदिरा से निकटता के कारण योग गुरू सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक के रूप में उभरे, जिनकी हर जगह पर मांग थी. माना जाता है कि उन्होंने इंदिरा की तरफ से कई बड़े राजनीतिक काम को अंजाम दिया. खास कर आपातकाल के दौरान और 1980 के दशक की शुरुआत में उनकी तूती बोलती थी.

लगभग उसी समय, देवराहा बाबा के नाम से एक और बाबा प्रमुखता में आए. वह मथुरा में यमुना नदी के किनारे 12 फुट ऊंचे लकड़ी के चबूतरे पर रहते थे. इंदिरा गांधी, उनके बेटे राजीव, उनकी पत्नी सोनिया और बूटा सिंह जैसे बड़े राजनेता चुनाव में जीत के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनसे मिलने जाते थे. वह अपने यहां आने वालो को अपने पैरों से आशीर्वाद देने के लिए प्रसिद्ध थे. हालांकि, सत्ता का स्वाद चखने के लिए वे अपने लकड़ी के मंच से कभी नीचे नहीं आए.

पीवी नरसिम्हा राव और चंद्रस्वामी

पीवी नरसिम्हा राव से निकटता के कारण चंद्रास्वामी से ज्यादा कोई भी बाबा राजनीति के इतने करीब नहीं आया. राव के प्रधानमंत्री रहने के दौरान, चंद्रास्वामी एक समानांतर शक्ति केंद्र के रूप में उभरे. हालांकि, चंद्रास्वामी के बाद इस प्रवृत्ति में कुछ बदलाव आया. ये बाबा दिल्ली के सत्ता के गलियारों में नहीं दिखने लगे मगर राजनेता उनके पास दर्शन करने जाने लगे. इसने आसाराम बापू, बाबा रामपाल, बाबा गुरमीत राम रहीम, बाबा रामदेव और सत्य साईं बाबा को भारी लोकप्रियता दिलाई.

उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या के कारण राजनेता उनसे समर्थन मांगने के लिए उनसे मुलाकात करने लगे. बाबा लोग अपने अनुनायियों के बीच किसी विशेष राजनीतिक दल या नेता का समर्थन करने के लिए फरमान जारी करने लगे. बदले में सत्ता में आने के बाद ये नेता बाबा के गलत और विवादास्पद कार्यों को लेकर भी दखल नहीं देते थे. ऐसे संतों पर भारतीय राजनेताओं की निर्भरता बेरोकटोक जारी है.

आज के दौर में स्वामी रामदेव सबसे सक्रिय और सफल बाबा हैं. मगर राजनीति में हस्तक्षेप करने की जगह वे अपने व्यापारिक हितों का विस्तार करने के लिए अपने प्रभाव और राजनेताओं के साथ निकटता का उपयोग करना ज्यादा पसंद करते हैं.

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