वर्तमान हालातों में अच्छे इंसान का जीवन बहुत कठिन हो सकता है

‘आप अच्छे हो…?’ किसी से भी मिलें तो ‘कैसे हो?’ के बजाय यह पूछकर देखें। फिर उनके जवाब ‘अच्छा हूं’ पर गौर करें। यह जवाब तीन कारकों पर निर्भर होगा- वित्त, स्वास्थ्य और सामाजिक स्वीकार्यता, जरूरी नहीं कि उस व्यक्ति के जवाब में यह छुपा हो कि ‘मैं अच्छा इंसान हूं।’ अगर लोगों से पूछना शुरू कर दें कि ‘आप अच्छे इंसान हो’ तो मुमकिन है कि लोग आपसे कटने लगें।

एक परिचर्चा में जब एक वक्ता ने ये तुलना पेश की, तो उसे लोगों का स्टैंडिंग ओवेशन मिला। वक्ता ने आगे वर्णन किया कि अधिकांश लोगों का ‘अच्छा हूं’ का दावा ‘अच्छे इंसान’ से नहीं होता और इसी कारण ज्यादातर ‘अच्छे इंसान’, बहुत सारे समय अच्छी स्थिति में नहीं होते। ये खूबसूरत बात मुझे तब याद आई जब बेंगलुरु में ई-बाइक्स से जुड़ी घटनाएं सुनीं।

ये शहर जहां टेक युवाओं की भारी मौजदूगी के कारण अधिकांश शिक्षित लोग रहते हैं, वहां ई-बाइक्स से सीट, बैटरी, जीपीएस ट्रैकर की चोरी की घटनाएं हो रही हैं और गाड़ी में खराबी होने पर उसे नालों में फेंक रहे हैं। युवा उन्हें स्टंट में आजमा रहे हैं, जबकि कुछ पार्किंग का रंग-रूप बिगाड़ रहे हैं। एप से संचालित यह सुविधा पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई थी, ताकि लोगों की मेट्रो स्टेशन से घरों के नजदीकी बस स्टॉप तक की कनेक्टिविटी रहे, जून 2022 से शुरू हुई इस योजना पर लोगों की बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी।

अधिकारियों ने 120 ई-बाइक्स और 30 साइकिल रखवाईं। तीन महीने में तबसे अब तक 12 हजार लोगों ने 30 हजार से ज्यादा राइड की। पर तोड़-फोड़ से अधिकारी चिंतित हैं। आकलन के अनुसार 60% से ज्यादा बाइक्स पर दो या तीन लोगों को बैठाकर सवारी हुई, जिसके लिए ई-बाइक्स नहीं हैं। कुछ लोग इसे तय भौगोलिक सीमा (शहर के बाहर) से बाहर ले गए, जिससे बैटरी खुद बंद हो गईं। तब उन्होंने इन्हें बीच सड़क पर छोड़ दिया। कई बाइक्स गड्‌ढों में, तो कई लंबे समय तक घरों पर रखी रहीं।

अपनी गाड़ियां खड़ी करने के लिए लोगों ने ई-बाइक्स की पार्किंग की रेलिंग्स तक तोड़ दीं। आज इन जियो-फेंस लोकेशन(जहां ई-बाइक्स संचालित होती हैं) पर जाएं तो पार्किंग स्थल पर बाइक्स इस्तेमाल से जुड़े डूज़-डोन्ट लिखे मिलेंगे। अधिकारी किसी एजेंसी की सेवाओं पर विचार कर रहे हैं ताकि दोषियों को दंड दे सकें। अगर वे दुरुपयोग को रोकने में असफल रहे तो सरकार योजना वापस ले सकती है और चंद बदमाशों के कारण लोग इससे वंचित रह जाएंगे।

वही शहर जिसे गार्डन सिटी भी कहते हैं, वहां बागवानी विभाग ने कुछ चुनिंदा पार्कों के अंदर कुछ खाने से रोकने के लिए नियम को सख्ती से बहाल किया है। बिखरा कचरा न केवल सौंदर्य और स्वच्छता खराब करता है बल्कि चूहे बगीचे नष्ट कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कचरे से आसानी से भोजन मिलता है। इसलिए पार्क साफ रखने के लिए अधिकारियों ने छह साल पुराने नियम को फिर से मजबूत किया है।

मैंने ऊपर जिस वक्ता का जिक्र किया था, उसने यह कहते हुए अपनी बात समेटी थी कि निस्संदेह हर शहर में कई अप्रिय घटनाओं से समाज की छवि धीरे-धीरे खराब हो रही है। (जैसे बेंगलुरु में हो रहा है) पर क्या यह हमें ‘अच्छा इंसान’ होने से रोक सकता है? मेरा जवाब बड़ा ‘ना’ है। व्यक्तिगत तौर पर अगर हम अपने शहर, राष्ट्रीय संपत्ति जैसे रेलवेज या सरकारी इमारतों के प्रति थोड़ी परवाह और ध्यान देंगे, तो हम इस मानसिकता को बदल सकते हैं कि ‘मेरा क्या जाता है?’

फंडा यह है कि वर्तमान हालातों में अच्छे इंसान का जीवन कठिन हो सकता है, पर यह हमें ऐसा बनने से नहीं रोक सकता, अगर ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी तो भविष्य में सबकी जिंदगी आसान हो जाएगी।

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