आसान लोन बांट रहे एप बढ़े … ! गैरकानूनी, फिर भी हटे नहीं …

आसान लोन बांट रहे एप बढ़े:RBI की सख्त गाइडलाइन में छेद…54% लेंडिंग एप गैरकानूनी, फिर भी हटे नहीं

आसान लोन…आपकी अंगुलियों के इशारे पर…सीधा आपके बैंक खाते में…। ऐसा सुनहरा वादा करने वाले हजारों मनी लेंडिंग एप आपको प्ले स्टोर पर मिल जाएंगे। कुछ दिनों पहले RBI ने अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद 1100 लेंडिंग एप्स की जांच की तो 600 यानी 54% गैर-कानूनी थे। ये एप्स हटना तो दूर, लेंडिंग एप्स की संख्या बढ़कर 1290 हो गई है।

दरअसल, अब तक गूगल ऐसे एप्स को प्ले स्टोर पर रखने या हटाने में अपने नियम लागू करता था। इन नियमों के तहत कई एप्स को उसने हटा भी दिया था। मगर RBI ने 10 अगस्त को घोषणा की थी कि वह रजिस्टर्ड लेंडिंग एप्स की लिस्ट जारी करने वाला है। इस लिस्ट में शामिल लेंडिंग एप्स ही प्ले स्टोर पर रखे जा सकेंगे।

इस घोषणा को डेढ़ महीने से ज्यादा बीत चुके हैं। अब तक RBI की लिस्ट जारी नहीं हुई है। 2 सितंबर को रेगुलेटरी बैंक ने डिजिटल लेंडिंग से जुड़ी एक गाइडलाइन तो जारी की है, मगर रजिस्टर्ड एप्स की लिस्ट अब तक नहीं आई है। इस वजह से अभी गूगल प्ले स्टोर भी अपने नियम लागू करने को लेकर असमंजस में है।

RBI को 2020 से 2021 के बीच डिजिटल लेंडिंग एप्स की धांधलियों की कुल 2562 शिकायतें मिली थीं। 2019 से अब तक इन लोन एप्स की रिकवरी के तरीकों की वजह से 64 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। माना यह जा रहा है कि RBI ने नई गाइडलाइन और रजिस्टर्ड एप्स की लिस्ट जारी करने का फैसला लेंडिंग एप्स की इन धांधलियों की वजह से लिया है।

मगर इस गाइडलाइन के बावजूद कई ऐसे लूप होल्स हैं जिनकी वजह से डिजिटल लेंडिंग रिस्की बने रहेंगे। समझिए…भारत में लेंडिंग एप्स की स्थिति क्या है…RBI की गाइडलाइन से स्थिति कितनी बदल पाएगी…और आप सही लेंडिंग एप की पहचान कैसे करें।

RBI की गाइडलाइन्स की यूं उड़ती हैं धज्जियां

1) लोगों को पता ही नहीं चलता कि एप के पीछे कौन है

नियम क्या है: केंद्रीय रिजर्व बैंक के मुताबिक सिर्फ कमर्शियल बैंक, शहरी को-ऑपरेटिव बैंक, स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक, डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (NBFC) ही लोन दे सकते हैं। इन्हें रजिस्टर्ड एंटिटी कहा जाता है। डिजिटल लेंडिंग के लिए रजिस्टर्ड एंटिटी किसी लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर या डिजिटल लेंडिंग एप की सेवाएं आउटसोर्सिंग के जरिये ले सकता है।

दिक्कत क्या है: यह व्यवस्था आम आदमी के लिए कन्फ्यूजन पैदा करती है। क्योंकि लेंडिंग एप्स कभी अपने विवरण में सीधे तौर पर यह जिक्र नहीं करते कि वह खुद कोई NBFC हैं या किसी रजिस्टर्ड एंटिटी से जुड़े हैं।

यहां तक कि सबसे लोकप्रिय क्रेडिट सर्विस मानी जाने वाली बजाज फिनसर्व के एप के विवरण में भी कहीं यह नहीं लिखा है कि वह एक रजिस्टर्ड NBFC है।

गूगल के प्ले स्टोर पर 34 लाख से ज्यादा एप्स की भीड़ है। इसमें भारत में लेंडिंग एप्स भी 1200 से ज्यादा हैं। इनमें कई मिलते-जुलते नामों वाले भी हैं। इस भीड़ में सही की पहचान कर पाना मुश्किल है।

2) बैंक के नाम पर एप्स वसूलते हैं फीस…पेनल्टी भी लगाते हैं

नियम क्या हैRBI कहता है कि लोन लेने वाले से किसी भी तरह की फीस या पेनल्टी रजिस्टर्ड एंटिटी यानी बैंक या NBFC खुद लें और वो भी अपने खाते में।

दिक्कत क्या हैलोन लेने वाले को अक्सर पता ही नहीं होता कि एप किस बैंक या NBFC से लोन दिलवा रहा है। एप और ग्राहक के बीच हुई बातचीत की मॉनिटरिंग नहीं होती। ऐसे में कई एप्स लोन तो बैंक से दिलवाते हैं, मगर फीस और पेनल्टी के नाम पर ग्राहक से पैसे अपने खाते में वसूलते हैं।

3) KEY FACT STATEMENT देना जरूरी…किसी को नहीं मिलता

नियम क्या है: गाइडलाइन के मुताबिक हर रजिस्टर्ड एंटिटी को लोन जारी करने से पहले ग्राहक को एक Key Fact Statement देना है। इस स्टेटमेंट में लोन की राशि, उस पर लगने वाला ब्याज, वार्षिक ब्याज की दर, ईएमआई की राशि और लोन की अवधि सबकुछ होना चाहिए।

दिक्कत क्या है: कई एप तो दावा ही ये करते हैं कि एप डाउनलोड करते ही खाते में लोन की रकम पहुंच जाएगी। ऐसे लोन्स में ग्राहक को ब्याज की दर के बारे में बाद में पता चलता है। एप कई बार ब्याज दर दिखाते कुछ और हैं और असल में कुछ और वसूलते हैं।

4) रिकवरी का काम किसे सौंपा ये ग्राहक को बताना होता है…कोई नहीं बताता

नियम क्या है: गाइडलाइन के मुताबिक अगर लोन की रिकवरी की नौबत आती है तो रजिस्टर्ड एंटिटी ये काम किसी लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर को आउटसोर्स कर सकते हैं। लेकिन इसकी जानकारी ग्राहक को देनी होगी। अगर लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर बदला जा रहा हो तो भी इसकी जानकारी ग्राहक को देनी होगी।

दिक्कत क्या है: ऐसा होता नहीं है। ग्राहक को पता ही नहीं होता कि रिकवरी करने के लिए कौन आ रहा है। कई एप्स बैंक की जानकारी के बिना भी ग्राहक पर लोन रिकवरी का दबाव बनाते हैं।

RBI ने बैंकों के सिर पर डाली पूरी जिम्मेदारी…उन्हें पता ही नहीं कि लेंडिंग एप्स को जांचना कैसे है

अपनी गाइडलाइन के 9वें पॉइंट में RBI ने कहा है कि रजिस्टर्ड एंटिटी यानी बैंक और NBFC को किसी भी लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर को काम देने से पहले उसकी पूरी जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए।

बैंक या NBFC इन डिजिटिल लेंडिंग एप्स को अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। एक बैंक कई लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर्स को काम सौंप देता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उसकी पहुंच हो सके।

लेकिन इस प्रक्रिया में हर बार हर लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर की पूरी जांच-पड़ताल नहीं की जाती है। RBI की गाइडलाइन में यह स्पष्ट नहीं है कि किसी लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर के लिए मिनिमम रिक्वायरमेंट्स क्या हैं।

इस अस्पष्टता की वजह से हर बैंक और NBFC अलग-अलग पैमाने पर इन लेंडिंग सर्विस प्रोवाइडर्स को जांचता है। किसी के पैमाने सख्त होते हैं तो किसी के बहुत नरम।

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