महिलाएं आवाज उठाएं तो आरोप लगाने तक ही सीमित न रहें, कानूनी कार्रवाई भी करें

लेकिन लोगों को यह नहीं पता है कि मी-टू आंदोलन के कारण इस मसले पर जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ी है और इसके कारण जिसे ड्यू-प्रोसेस या मानक-प्रक्रिया कहा जाता है, वह अब सरल-सुगम हो गई है। पुलिसकर्मियों से लेकर अदालत के वकीलों तक सबकी जिम्मेदारियां तय हैं। आज कानून न केवल अपनी आवाज उठाने वाली स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि कानूनी मामला दर्ज करने की प्रक्रिया भी अब बहुत जटिल नहीं रह गई है। कैसे?

किसी संस्थान में काम करने वाली महिलाएं पोश एक्ट (सेक्शुअल हैरासमेंट ऑफ वीमन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) एक्ट 2013) संक्षेप में POSH) के तहत कानूनी मदद प्राप्त कर सकती हैं, जिसमें इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी को शिकायत दर्ज करना होती है। इसके बाद जांच शुरू हो जाती है। जांच रिपोर्ट के अनुसार कार्रवाई तय की जाती है- फिर चाहे पीड़िता को मुआवजा देना हो या दोषी को नौकरी से निकाल देना हो।

कार्यस्थल के बाहर भी महिलाएं उन्हें यौन प्रताड़ना देने वालों के विरुद्ध केस दर्ज कर सकती हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में इसके लिए अनेक प्रावधान हैं, जैसे अनुच्छेद 354 और 509। ये धाराएं किसी स्त्री के सम्मान को क्षति पहुंचाने, उस पर हमला कर लज्जा-भंग करने की कोशिश या इलेक्ट्रानिक साधनों द्वारा यौन-उत्पीड़न, अश्लील सामग्री भेजने या अनुचित मांगें करने आदि पर लगती हैं। ये बिलकुल भी जटिल नहीं हैं। तीन सीधे-सरल कदम उठाकर महिलाएं न्याय पा सकती हैं :

1. दोषी व्यक्ति के विरुद्ध राष्ट्रीय महिला आयोग में लिखित शिकायत दर्ज कराना। आयोग आपकी शिकायत को स्थानीय पुलिस थाने को भेज देगा।

2. पुलिस थाने जाकर एफआईआर दर्ज करवाना। बेहतर होगा अगर अपने वकील के साथ ही थाने जाएं। एफआईआर दर्ज करवाने की प्रक्रिया में डेढ़ से दो घंटे लगते हैं। अधिकतर महिलाओं का अनुभव है कि उनसे जुड़े मामलों में पुलिस के द्वारा संवेदनशीलता और मददगार रवैए का परिचय दिया जाता है। वे शिकायत की गोपनीयता को भी कायम रखने की कोशिश करते हैं। मामले की नजाकत को देखते हुए एक लेडी कांस्टेबल अमूमन वहां मौजूद होती है। एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस आरोप-पत्र तैयार करती है और अदालती प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

3. अपनी सुविधा के अनुसार किसी दिन का चयन करके आपको मजिस्ट्रेट की कोर्ट में जाना होता है। इसमें 45 मिनट का वेटिंग टाइम हो सकता है। किसी लेडी मजिस्ट्रेट के द्वारा आपके बयान को दर्ज किया जाता है। यह वही बयान होना चाहिए, जो आपने एफआईआर में लिखा है। अमूमन यह पूरी प्रक्रिया तेज गति से और दक्षता के साथ पूरी कर ली जाती है।

भले ही आपके पैरेंट्स इस मामले में आपसे कहें कि- जाने दो। भले ही आपके दोस्त आपको यह बिन मांगा मशविरा दें कि- कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ने का कोई फायदा नहीं है। भले ही आपके संगी-साथी आपसे कहें कि- यह सब तो होता ही रहता है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है… इसके बावजूद आपको कार्रवाई करनी ही चाहिए!

यह समय की मांग है कि जब महिलाएं शोषण और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाएं तो केवल आरोप लगाने तक सीमित न रहें, बल्कि कानूनी कार्रवाई भी करें। सिस्टम पर विश्वास रखें। देश की कानूनी-प्रक्रिया आपको निराश नहीं करेगी। पहले भी सैकड़ों महिलाओं ने आवाज उठाई है और न्याय पाया है।

वैसा करके आप उनके नक्शे-कदम पर चलेंगी और दूसरों के लिए प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करेंगी। जब कानून-व्यवस्था ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक तंत्र बना रखा है, जिसमें दोषी को दंडित किया जा सकता है तो इसका लाभ उठाकर यौन-अपराधियों को सख्त संदेश देने का मौका नहीं चूकना चाहिए। क्योंकि- अब बहुत हो चुका!

भले ही पैरेंट्स कहें कि- जाने दो। भले ही दोस्त मशविरा दें कि- कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ने का फायदा नहीं। भले ही संगी-साथी कहें कि- यह सब तो होता रहता है… आपको कार्रवाई करनी ही चाहिए!

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