जिनपिंग की ताजपोशी को लेकर दुनिया में क्यों मची है खलबली? ये हैं पांच बड़े कारण
शी जिनपिंग लगातार तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. हालांकि, आधिकारिक एलान होना बाकी है. वहीं जिनपिंग की ताजपोशी से पहले ही दुनिया में खलबली मच गई है. जानिए इसके पीछे क्या कारण हैं.
साउथ चाइना सी 35 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. समुद्र के इस टुकड़े पर करीब 250 छोटे बड़े द्वीप हैं. ये इलाका हिंद और प्रशांत महासागर के बीच है, जो चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई और फ़िलीपीन्स से घिरा है. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक साउथ चाइना सी के इस पूरे इलाके पर जापान का कब्जा था. जापान जंग हारा तो चीन ने समुद्र के इस टुकड़े पर कब्जा जमा लिया.
दशकों से चीन साउथ चाइना सी पर अपना दावा ठोकता आया है. चीन के लिए समुद्र का ये टुकड़ा यूं हीं अहम नहीं है. इसके पीछे ठोस आर्थिक वजह हैं. एक वजह है साउथ चाइना के वो खनिज जिन पर चीन गिद्द की नजर दशकों से गढ़ाए बैठा है. जिसे लेकर साउथ चाइना सी में चीन को अमेरिका की मौजूदगी भी अखरती रही है. दशकों से चीन की दादागीरी साउन चाइना सी के लहरों पर दुनिया देखती और झेलती आई है. खासकर जिनपिंग सत्ता में आने के बाद. साउथ चाइना सी में बारूद और धधकता रहा है. जिनपिंग की ताजपोशी से ये आक्रामता और बढ़ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन साउथ चाइना सी में किसी का दखल नहीं चाहता. इसकी वजह भी हैं.
साउथ चाइन सी से सालाना कितना व्यापार होता है?
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में होने वाले व्यापार का 80 फीसदी समुद्री मार्ग से होता है और इस व्यापार का करीब एक तिहाई साउथ चाइना सी से हो कर गुजरता है. साउथ चाइना सी से सालाना करीब 3.37 ट्रिलियन डॉलर का बिजनेस होता है. साउथ चाइना सी में खनिज संपदा का अंबार है. यहां तीस हजार प्रकार की मछलियां हैं. मछली उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर करीब 15 फीसदी का मछली उत्पादन साउथ चाइना सी से होता है. ऐसे में साउथ चाइना सी में हर मुल्क की दिलचस्पी है. 2012 में चीन ने फिलीपीन्स के मच्छुआरों को यहां मछली पकड़ने से रोक दिया था. मामला UN तक पहुंचा था. लॉ ऑफ द सी कन्वेन्शन के तहत ट्राइब्यूनल ने फैसला फिलीपीन्स के हक में दिया था, लेकिन चीन ने तमाम कायदे कानून को ठेंगा दिखा था. वहीं अब चीन समुद्र के इस टुकड़े की चौरफा घेराबंदी कर चुका है.
टेंशन की दूसरी वजह – ताइवान पर चीन की नजर
जिनपिंग की ताजपोशी से ताइवान तक टेंशन में है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन और ताइवान के बीच की तल्खी बहुत पुरानी है. चीन ताइवान पर अपना हक जमाता आया है. जिनपिंग के सत्ता में आते ही ताइवान में खौफ के हूटर कई बार बजे 10 सालों में जाने कितनी बार रेड आर्मी के फाइटर जेट ताइवान की फिजाओं में दहशत भर चुके हैं. यूक्रेन वॉर के बाद चीन की आक्रामकता और बढ़ी. ताइवान बॉर्डर पर कई बार रेड आर्मी का बड़ा मूवमेंट देखा गया.
टेंशन की तीसरी वजह – ताइवान और अमेरिका के संबंध
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ये कह चुके हैं कि चीन के हमले की स्थिति में अमेरिका ताइवान की रक्षा करेगा. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइन के 20वें अधिवेशन के पहले दिन शी जिनपिंग ने ताइवान के मुद्दे पर जोर देकर कहा कि वह ताइवान में विदेशी दखल बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा. ऐसे में यह माना जा रहा है कि अगर शी जिनपिंग की ताजपोशी होती है तो अमेरिका और चीन के बीच ताइवान के मुद्दे पर टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है, जो कि पूरी दुनिया के लिए किसी बड़ी खतरे से कम नहीं है.
टेंशन की चौथी वजह – LAC पर बढ़ेगा तनाव
चीन में सत्ता, संविधान और सरकार जिनपिंग के नाम से ही शुरू होती है और इसी नाम पर खत्म. जिनपिंग की ताजपोशी भारत के लिए खतरे की घंटी है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले 10 सालों में चीन की दादागीरी की पूरी पिक्चर भारत ने देखी भी और झेली भी. जिनपिंग के सत्ता में रहते हुए एलएसी पर पहली बार हिंसक झड़प हुई. इसी के साथ 40 साल में पहली बार एलएसी पर गोली चली. सर्दियों में भी एलएसी पर फौज तैनात रही. लद्दाख से अरुणाचल तक चीन साजिश करता रहा. वहीं 2020 में गलवान में चीनियों पर हुए गर्दनतोड़ प्रहार के बाद एलएसी पर कई बार टकराव के हालात बनते रहे हैं. लद्दाख में पैंगोंग लेक पर पुल बनाने से लेकर अरूणाचल में सरहद के करीब तक रेल नेटवर्क तैयार करना चीन की साजिशों का सबूत है.
टेंशन की पांचवी वजह – चीन में क्रांति की आहट
जिनपिंग की ताजपोशी से दुनिया ही नहीं खुद चीनियों के होश फाख्ता हैं. जिसका बिगुल तक बीजिंग में बज चुका है. जिनपिंग की ताजपोशी के खिलाफ चीन में विद्रोह छिड़ा है. वहीं बगावत का फन बीजिंग में कुचला जाने लगा है. प्रदर्शन करने वालों की धर पकड़ शुरू हो चुकी है. क्रांति की अगुवाई करने वालों के अकाउंट भी ब्लॉक कर दिए हैं.