वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी से हमें मिलने वाले ज्ञान की सच्चाई
बीते कुछ सालों में भारतीय नागरिकों में एक नए ज्ञान का उदय हुआ है। उनके पास ऐसे-ऐसे तथ्य और डाटा आ गए हैं, जो किसी भी डॉक्टरेट को निष्प्रभ कर सकते हैं। वे अनेक तरह की थ्योरियों में विश्वास करते हैं, फिर चाहे वह राजनीतिक हो, आर्थिक हो या धार्मिक। वे चुटकी बजाते ही इन थ्योरियों को सिद्ध भी कर सकते हैं। उन्हें सूचनाओं के अपने ‘भानुमती के पिटारे’ को खोलना भर होगा।
वे दूर-सुदूर के समाचार स्रोतों, तथ्यों, घटनाओं से सूचनाएं जुटा सकते हैं। इतना ही नहीं, वे अपनी थ्योरियों को वैज्ञानिक रूप से सटीक भी प्रमाणित कर सकते हैं। आइए मिलते हैं, द ग्रेट इंडियन वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट्स से! आप किडनी स्टोन की समस्या से पीड़ित हैं? वे तुरंत औषधियों के नाम गिनाना शुरू कर देंगे, जो सदियों से इस रोग की रामबाण दवा हैं।
अश्वगंधा और शिलाजित तो उनके फर्स्ड एड किट्स का अभिन्न अंग हैं। आप मिड-लाइफ क्राइसिस से गुजर रहे हैं? चिंता की क्या बात है? हमारे वॉट्सएप्प ग्रैजुएट्स विभिन्न चक्रों की शुद्धि करने वाले मंत्र बता देंगे। बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता? वॉट्सएप्प से शिक्षित मांएं सामने आएंगी, जो किसी थैरेपिस्ट से कम नहीं हैं। वे यूट्यूब पर सुना कोई मनोवैज्ञानिक समाधान सुझा देंगी।
वॉट्सएप्प ग्रैजुएट्स को पता रहता है कि किस शहर में किस समुदाय की आबादी बढ़ रही है या श्रीलंका के पतन के लिए जैविक खेती कितनी जिम्मेदार है। उन्हें पता है कि पूरी दुनिया में अमेरिकी ब्रांड क्यों अपनी दुकानें बंद कर रहे हैं और इससे किसे सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला है।
चाहे नागरिकों को जागरूक करना हो या फिल्मों का बायकॉट करना या फिर देश के इतिहास के बारे में कोई शिक्षाप्रद लेख ही क्यों न पढ़वाना हो- टीचर्स-डे के दिन अगर कोई सच में ही हमारे ग्रीटिंग कार्ड्स का अधिकारी है तो वह वॉट्सएप्प ही है! इस उभरते हुए ज्ञानोदय का ध्येय-वाक्य है- हर कोई बहस कर सकता है।
विमर्श की स्वतंत्रता लोकतंत्र में सभी को समान रूप से मिली है। अगर आपके पास नियमित गति से वॉट्सएप्प फॉरवर्ड्स आ रहे हैं तो आप सत्य के निकट हैं। बस आपको पूरा भरोसा होना चाहिए कि फलां चीज सही है, उसके बाद आपको उसे किसी को भी आगे बढ़ाने में कोई संकोच नहीं होने वाला। लेकिन जब किसी दोस्त या पारिवारिक सदस्य के साथ होने वाली बहस आपको मुश्किल परिस्थिति में फंसा दे तो दुविधा से बचने के लिए- और सम्बंधों को बचाने के लिए- आप इतना जरूर कह सकते हैं कि यह मैं नहीं कह रहा हूं, यह तो फलां फॉरवर्ड में कहा गया था।
भले ही वॉट्सएप्प भारत में फॉरवर्ड्स की संख्या पर पाबंदी लगा दे, इन ग्रैजुएट्स को कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि जब वे किन्हीं चैट्स पर ‘फॉरवर्डेड मैनी टाइम्स’ पढ़ते हैं तो सोचते हैं इतने लोगों ने इसे देखा और आगे बढ़ाया है तो यह सही ही होगा! हाल ही में ‘मूड ऑफ द नेशन’ के सर्वेक्षण में वॉट्सएप्प पर प्रसारित किए जाने वाले समाचारों की सत्यता का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि उनमें से केवल 28 प्रतिशत ही तथ्यपूर्ण होते हैं।
शेष अधिकतर फर्जी हैं। आज भी समाचारों का सबसे भरोसेमंद स्रोत प्रिंट माध्यम ही है। लेकिन इससे वॉट्सएप्प ग्रैजुएट्स भला क्यों संकोच करने लगे? उनके लिए उनका वॉट्सएप्प समूह गौरव का विषय है, भले ही उस पर किसी अमेरिकी टेक कम्पनी की मिल्कियत हो। स्मार्टफोन को शहरवासियों का भरपूर प्यार मिलने के बाद अब वे ग्रामीण भारत में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगे हैं।
यानी वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट्स की तादाद में और इजाफा होगा। आखिर हर चीज पर उच्च-वर्ग का ही एकाधिकार क्यों रहे? वह समाज के वंचित तबकों तक क्यों नहीं पहुंच सकती? भारत की 18 भाषाओं में किसी सूचना को प्रसारित क्यों नहीं किया जा सकता? जब देश के नेतागण भारत को आगे ले जाने की बात करते हैं तो वॉट्सएप्प ग्रैजुएट्स इसका अर्थ लगाते हैं- वॉट्सएप्प पर मिले ज्ञान को आगे ठेल देना!
वॉट्सएप्प पर प्रसारित किए जाने वाले समाचारों की सत्यता का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि उनमें से मात्र 28% ही तथ्यपूर्ण होते हैं। आज भी समाचारों का सबसे भरोसेमंद स्रोत प्रिंट माध्यम ही है।