3 हजार करोड़ के ई-टेंडर घोटाले के 6 आरोपी बरी …!
3 हजार करोड़ के ई-टेंडर घोटाले के 6 आरोपी बरी:EOW पेश नहीं कर सकी सबूत; कोर्ट ने कहा-संदेह के आधार पर ये दोषी नहीं
भोपाल की जिला अदालत ने मध्यप्रदेश के बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले के 6 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। EOW ने इन सभी पर नामजद केस दर्ज किया था। कोर्ट ने माना कि ई-टेंडर के लिए डेमो टेंडर बनाया गया था, लेकिन इन्हीं लोगों ने बनाया, अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं कर सका। ऐसे में संदेह के आधार पर इन्हें दोषी नहीं माना जा सकता।
सरकारी वकील आशीष त्यागी ने EOW की तरफ से कोर्ट में पक्ष रखा। मामले की सुनवाई स्पेशल जज संदीप कुमार श्रीवास्तव की कोर्ट में हुई।
ये आरोपी हुए बरी
कोर्ट ने ई-टेंडरिंग घोटाले मामले में जिन आरोपियों को बरी किया, उनमें मध्यप्रदेश इलेक्ट्राॅनिक विकास निगम के तत्कालीन ओएसडी नंद किशोर ब्रह्मे, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डायरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, एंटारेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन और भोपाल के कारोबारी मनीष खरे शामिल है। ये सब बुधवार को जिला कोर्ट में पेश हुए। इनके खिलाफ ईओडब्ल्यू ने चालान पेश किया था।
ब्रह्मे की तरफ से वकील प्रशांत हरने ने बताया कि 33 गवाहों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने सभी 6 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर सका।
तीन हजार करोड़ के घोटाले का दावा
मप्र का ई-टेंडरिंग घोटाला अप्रैल 2018 में सामने आया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर इसकी जांच EOW को सौंपी गई थी। इस बीच 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बन गई। कांग्रेस सरकार में ई-टेंडर घोटाले की जांच में तेजी आई। 10 अप्रैल 2019 को 7 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई।
एक मैसेज से खुला टेंडर घोटाला
घोटाला तब उजागर हुआ, जब एक कंपनी के कर्ताधर्ता द्वारा जल निगम की तीन निविदाओं को खोलते समय कम्प्यूटर ने मैसेज डिस्प्ले किया। इससे पता चला कि निविदाओं में टेम्परिंग की जा रही है। प्रारंभिक जांच में पाया गया था कि जीवीपीआर इंजीनियर्स और अन्य कंपनियों ने जल निगम के तीन टेंडरों में बोली की कीमत में 1,769 करोड़ का बदलाव कर दिया था। ई-टेंडरिंग को लेकर ईओडब्ल्यू ने कई कंपनियों के खिलाफ केस दर्ज किया था।
गुजरात का सोरठिया नहीं हुआ पेश
ई-टेंडर घोटाले में आरोपी बनाए गए गुजरात की वेल्जी रत्न एंड कंपनी के मालिक हरेश सोरठिया को कोर्ट ने फरार घोषित कर रखा है। वह बुधवार को भी कोर्ट में पेश नहीं हुआ। सोरठिया लंबे समय से गिरफ्तारी से बच रहा है। आरोप है कि सोरठिया की कंपनी ने जल संसाधन विभाग में 330 करोड़ के ठेके हासिल करने के लिए दस्तावेजों में टेम्परिंग के लिए बिचौलिए मनीष खरे के खातों में कमीशन के 3 करोड़ 33 लाख रुपए ट्रांसफर किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी हरेश की याचिका खारिज करते हुए उसे ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने के आदेश दिए थे। बावजूद वह कोर्ट में पेश नहीं हुआ।
9 ई-टेंडर साॅफ्टवेयर के साथ हुई छेड़छाड़
EOW ने FIR के समय दावा किया था कि करीब 3 हजार करोड़ के ई-टेंडरिंग घोटाले में साक्ष्यों व तकनीकी जांच में पाया गया कि ई प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ कर मप्र जल निगम मर्यादित के 3 टेंडर, लोक निर्माण विभाग के 2, जल संसाधन विभाग के 2, मप्र सड़क विकास निगम का एक, लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का एक। कुल 9 निविदाओं के साॅफ्टवेयर में छेड़छाड़ की गई थी।
जिन्होंने शिकायत की, उन्हें ही आरोपी बना दिया
घोटाले की शिकायत नंद किशोर ब्रह्मे ने की थी। वह व्हिसिल ब्लोअर की भूमिका में रहे। 10 अप्रैल 2019 को हुई FIR में उनका नाम नहीं था। 13 अप्रैल को ब्रम्हो को जांच एजेंसी ने आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जेल भेज दिया गया, जबकि वह घोटाले के स्टार विटनेस थे। उन्होंने कोर्ट में खुद के बेगुनाह होने की याचिका लगाई। बुधवार को फैसला आया, जिसमें 6 आरोपियों को बरी कर दिया गया।