– बेलगडा थाने में पुलिस हिरासत में मौत का मामला

 ग्वालियर हाई कोर्ट की युगल पीठ से बेलगडा थाने में हिरासत में हुई मौत के मामले में पुलिस अधीक्षक ग्वालियर अमित सांघी व तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन को बड़ी राहत मिल गई। कोर्ट ने एकल पीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में पुलिस अधीक्षक ग्वालियर की जांच के आदेश पुलिस महानिदेशक को दिए थे। इसके अलावा पुलिस कर्मियों से 20 लाख की वसूली के आदेश पर भी रोक लगा दी है। लेकिन सीबीआइ जांच जारी रहेगी। रिट अपील की सुनवाई न्यायमूर्ति रोहित आर्या व न्यायमूर्ति एमआर फडके ने की।

पुलिस थाना बेलगड़ा अंतर्गत ग्राम बाजना में 10 अगस्त 2019 को सुरेश सिंह रावत खेमू शाक्य के बीच विवाद हो गया। दोनों खेस पासपास में थे। खेमू शाक्य बेलगड़ा थाने में केस दर्ज कराने पहुंच गया। पुलिस खेमू की शिकायत पर एफआइआर दर्ज कर ली। उसके पीछे सुरेश सिंह रावत केस दर्ज कराने पहुंच गए। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। उनके भाई से रिश्वत के नाम पर 20 हजार रुपये मांगे। जब उन्होंने पैसे नहीं दिए तो पुलिस मारपीट कर दी। उसने लाकअप में खुद को फांसी लगा ली। पुलिस उसे उपचार के लिए भितरवार लेकर पहुंची, लेकिन डाक्टरों ने जब उसे मृत घोषित कर दिया तो पुलिस कर्मी शव को छोड़कर भाग गए। इस मौत को लेकर काफी हंगामा हुअा। इस मामले भितरवार थाने स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद केस शिवपुरी जिले के एसडीओपी को स्थानांतरित हो गया। पुलिस ने तीन साल में जांच नहीं की तो सुरेश रावत के लड़के ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने डीजीपी को 28 नवंबर 2022 को आदेश दिया कि इस मामले में पुलिस अधीक्षक ग्वालियर की भूमिका की जांच की जाए। इस आदेश के चलते तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन व अमित सांघी की मुश्किल बढ़ रही थी। उन्होंने युगल पीठ में रिट अपील दायर की। साथ ही शासन ने भी रिट अपील दायर की। अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने तर्क दिया कि 12 अगस्त 2019 को केस करैरा स्थानांतरित हो गया था। पुलिस महानिरीक्षक इस मामले की निगरानी कर रहे थे। ग्वालियर के एसपी का इस केस की जांच से कोई संबंध नहीं था। न निगरानी कर रहे थे। युगल पीठ ने दोनों एसपी की जांच के आदेश पर रोक लगा दी।

इन आदेशों पर भी रोक लगाई

– मृतक को 20 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिए जाने का आदेश दिया था। क्षतिपूर्ति के पैसे उन छह पुलिस कर्मियों से वसूल किए जाने थे, जिन पर सुरेश रावत के साथ मारपीट का आरोप था। जिसकी वजह उसकी मौत हुई थी।

– इस केस की जांच एसडीओपी करैरा जांच कर रहे थे। इन्होंने तीन साल तक जांच को लंबित रखा। कोर्ट का आदेश था कि क्या इन्होंने आरोपितों को फायदा पहुंचाने के लिए जांच लंबित रखी है। कोर्ट ने इस बिंदु पर रोक लगा दी।