दुनिया बदलना चाहते हैं तो कूदें और तैरें

 राय देने वालों की दुनिया है। सिर्फ एक ही क्षेत्र क्रिकेट का उदाहरण लें। अगर भारत मैच हारता है तो ज्यादातर क्रिकेट प्रेमी टीम पर ये कहकर कूद पड़ेंगे कि टीम को इस तरह बेहतर खेलकर मैच जीतना चाहिए था। पर उनमें से कितने लोगों ने असल में क्रिकेट खेला होता है? अनुमान लगाना मुश्किल है। संभव है कई लोगों ने खेला भी हो पर जैसे वे अपनी राय दे रहे थे, वैसे जीतते, ये अलग सवाल है।

ऐसे ही कल्पना करें कि आप 21 साल के हैं और भविष्य में डॉक्टर बनने वाले हैं। महिलाओं को ऊपर उठाने, लैंगिक समानता आदि मुद्दों पर आप मुखर हैं और अगर कोई आपसे राजनीति में आने को कहे, वो भी सरपंच स्तर पर ताकि गांव आगे बढ़े तो क्या आप करेंगे? शायद नहीं। वो इसलिए क्योंकि लोग सोचते हैं कि सरपंच न तो कोई ऊंचे दर्जे का राजनीतिक पद है, न ही इसमें डॉक्टर जैसे अच्छे पैसे मिलते हैं।

पर 21 साल की यशोधरा शिंदे अपने विचारों को लेकर सिर्फ मुखर भर नहीं थी। जब बेहद चुनौतीपूर्ण समय में अवसर ने दरवाजे पर दस्तक दी तो उन्होंने इसे स्वीकारा। वह हमेशा से डॉक्टर बनना चाहती थीं और 12वीं के बाद जॉर्जिया में मेडिकल में दाखिला ले लिया। साढ़े पांच साल के कोर्स में वह 4 साल पूरा कर चुकी थी।

अचानक एक दिन उन्हें गांव से सरपंच पद पर चुनाव लड़ने के लिए फोन आया, उन्होंने सोचा कि यह गांव की हर महिला को आत्मनिर्भर बनाने के उनके सपने को पूरा करने का रास्ता है। इसके अलावा वह चाहती थीं कि गांव के बच्चे सेहत से जुड़ी अच्छी आदतें अपनाएं और कोई किसान हित में भी काम करे। इसलिए सांगली (महाराष्ट्र) जिले की मिराज तहसील में वाडी गांव के लोगों ने जब उनके परिवार से किसी को ग्राम प्रधान के पद के लिए खड़ा होने की इच्छा जताई तो वह जॉर्जिया से वापस आईं, चुनाव लड़ा और जीता।

इस साल 18 दिसंबर को महाराष्ट्र के 7682 गांव में मतदान हुआ था। चुनाव जीतने के बाद अब उनका फोकस अपने बचे ज्यादातर कोर्स को ऑनलाइन पूरा करना है और वापस जाकर लिखित परीक्षा देना है क्योंकि डॉक्टर गांव की सबसे बड़ी जरूरत हैं, जहां आबादी 5 हजार से कम है। इसके अलावा वह महिला मुद्दों पर काम करके उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती है।

उनका ध्येय स्पष्ट है कि गांव की कोई भी महिला जीवनयापन के लिए पुरुषों पर निर्भर न रहे। उनकी प्राथमिकता सूची में बच्चों के लिए शिक्षा, टॉयलेट बनाना, सैनिटरी नैपकिन के प्रति जागरुकता, उनकी उपलब्धता व सेहत की अच्छी आदतें शामिल हैं। चूंकि 80% गांववाले खेती करते हैं और इसी से गांव का आर्थिक पहिया चलता है, वह खेती के तरीकों और उत्पादन पर ध्यान देगी।

जॉर्जिया में उनके दोस्त कोर्स ऑनलाइन पूरा कराने में उनकी यथासंभव मदद कर रहे हैं। गांव के लिए उनका एक शब्द का एजेंडा गांव का विकास है। जाहिर है उनके परिवार वाले पहले चुनाव लड़ चुके थे और गांव को बहुत लाभ पहुंचाया था।

इसलिए ग्रामीण चाहते थे कि उनके ही घर से कोई चुनाव लड़े और परिवार ने यशोधरा को चुना क्योंकि उनके पास समाज को बदलने की प्रेरणा थी और दुनिया देखी भी थी, इसी के चलते परिवार ने फोन किया और पढ़ाई से वापस बुलाया। अगले दो सालों में वाडी गांव में एक डॉक्टर होगी, जो खुद गांव की सरपंच भी होगी। जब ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य के मुद्दे सर्वोपरि हैं, ऐसे में एक गांव और क्या मांग सकता है।

फंडा यह है कि आरामदायक बेडरूम में बैठकर राय देना और दुनिया बदलने के फैसले सुनाना आसान है, पर राजनीति के समुद्र में कूदकर बेहतर भविष्य के लिए पूरी आबादी की मदद करना कठिन है। यशोधरा ने साबित किया उसके काम, शब्दों से ज्यादा ताकतवर हैं।

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