दूसरों के लिए जीना ही अच्छा जीवन है

वह हॉस्पिटल जैसा नहीं, बल्कि सेवन-स्टार होटल जैसा दिख रहा था। इस बुधवार को भोपाल में इसके उद्घाटन समारोह में भीड़ के बीच मैं खड़ा था। अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर में मटेरियल परचेज का प्रबंधन करने वाले मधु कालदा, ऑपरेशंस-पब्लिक रिलेशन देखने वाले देवेश गोपाल, लैब सर्विस मैनेज करने वाले आलोक डैनियल और मरीजों का रिकॉर्ड संभालने वाले दीपक शरद ने अचानक मुझे देखा,आकर हाय-हैलो की।

मेरे दिमाग में सवाल आया कि बिलासपुर जैसे शहर में हेल्थकेयर का इतना बड़ा ब्रांड कैसे है, जबकि भोपाल को वही ब्रांड इस बुधवार को मिला, जिसके उद्घाटन समारोह में मैं आमंत्रित था। दीपक ने मेरी जिज्ञासा शांत की और बताया कि बिलासपुर एनटीपीसी, कोल इंडिया जैसे कई कॉर्पोरेट्स से घिरा है, जो बिजली, सीमेंट आदि बनाते हैं, रेलवे जैसे संगठन कर्मचारियों की सेहत को लेकर सजग हैं, इसलिए अपोलो जैसे ब्रांड पहले बिलासपुर में आए, जो कि भोपाल से काफी छोटा शहर है। शायद वह सही था।

मुझे आश्चर्य हुआ कि क्यों कुछ हॉस्पिटल्स अचानक ऐसे शहर में बने जहां कोई बड़ा कॉर्पोरेट नहीं है? भोपाल के अलावा जो पहला शहर दिमाग में आया, वो जैसलमेर था। मई 2021 में प्रिया ग्रुप ऑफ होटल्स ने अपना पहला 114 बिस्तरों का मल्टी-स्पेशियलटी हॉस्पिटल जैसलमेर में खोला। ऐसी जगह, जहां बेसिक हेल्थकेयर के लिए भी सैकड़ों किमी जाना होता था, वहां इसकी शुरुआत करने का बीज 1996 में अपने परिवार में एक त्रासदी के बाद 13 साल के लड़के ने बो दिया था।

मद्रास (चेन्नई) से रामेश्वरम जा रहे उस बच्चे के पिता बद्री प्रसाद भाटिया को वृद्धाचलम स्टेशन के पास ट्रेन में हार्टअटैक आया, 3 घंटे तक वह मौत से लड़ते रहे। प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा नहीं होने से वह अंत में हार गए। त्रासदी के बावजूद मयंक भाटिया (अब 39 वर्षीय) ने खुद से वादा किया कि वह अपने गृहनगर जैसलमेर में हॉस्पिटल शुरू करेंगे ताकि उनके शहर में किसी और को ऐसी आपात स्थिति में कष्ट न उठाना पड़े।

मयंक का भरोसा था कि ज्यादातर आपात स्थितियों में प्राथमिक उपचार मरीज के लिए गोल्डन आवर को 15 घंटे तक बढ़ा देता है, इस दौरान उन्हें किसी भी हॉस्पिटल पहुंचा सकते हैं। हाल ही में पुणे के मधु सागर (भारत पेट्रोलियम के एक्स-सीजीएम) अपनी 75 वर्षीय बहन नीलम दुग्गल के साथ छुट्टियों पर थे, जहां उनकी बहन को अचानक एक्यूट गैस्ट्रोएन्टराइटिस की परेशानी के बाद गंभीर हालात में भर्ती कराया गया। उन्हें चार दिन निगरानी में रखा गया, जब प्रिया हॉस्पिटल में हालत स्थिर हो गई फिर उन्हें पुणे ले जाया गया।

अत्याधुनिक मशीनें, जिन पर ज्यादातर लोग निवेश करने से बचते हैं, उनके साथ भोपाल में 300 बिस्तरों के ‘सेज अपोलो हॉस्पिटल’ को शुरू करने वाले सेज ग्रुप के सीएमडी संजीव अग्रवाल ने भी ऐसी ही स्थिति झेली। कोरोना की पहली लहर में उनके एक भतीजे को किसी भी अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा था। 48 घंटों की जद्दोजहद के बाद वे किसी तरह उसे भर्ती करा पाए।

उसी दिन संजीव अग्रवाल ने खुद से वादा किया कि उनकी प्राथमिकता अपने शहर में अत्याधुनिक अस्पताल बनाने की है ताकि किसी भी भोपालवासी को इलाज के लिए बाहर न जाना पड़े। उन्होंने महज दो साल में इसे साकार कर दिखाया। इस बुधवार को मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा कि जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन संपूर्ण है।

फंडा यह है कि कुछ लोग अपने निजी क्षति को पीछे छोड़ते हुए मानवता के लिए बहुत सारी उदारता और कुछ अनोखेपन के साथ अपनी पहचान बनाते हैं।

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