कम पैसे में इन 5 तरीकों से जिएं ग्लैमरस लाइफ …?

कम पैसे में इन 5 तरीकों से जिएं ग्लैमरस लाइफ:फिट रहिए-हिट रहिए, एस्थेटिक सेंस डेवलप करें

सरल सवाल, सही जवाब

बात सही लगती है: जरा सोच कर देखिए वो कौनसी चीज है जो किसी पुरुष को सबसे अधिक ताकतवर दिखाती है?

वो है ‘विनम्रता’ और वो कौनसी चीज है जो किसी महिला को सबसे अधिक सुन्दर दिखाती है: ‘आत्मविश्वास’।

क्या विनम्रता और आत्मविशास पैसे से आता है? हो सकता है उसका एक सोर्स पैसा भी हो लेकिन ताकत और आत्मविश्वास से भरी ग्लैमरस लाइफ स्टाइल का मतलब महंगी लाइफ स्टाइल तो कतई नहीं है!

ग्लैमर, ग्लैमर, ग्लैमर

‘ग्लैमर’ वर्ड का उपयोग होते ही अधिकतर भारतीयों के दिमाग में सबसे पहले आता है बॉलीवुड, हॉलीवुड और क्रिकेट, लेकिन ग्लैमर शब्द का वास्तविक अर्थ है साधारण वस्‍तुओं या व्‍यक्तियों से अधिक लुभावना लगने का गुण।

मतलब देखा जाए तो यह एक मानसिक अवस्था है, और आखिर हम में से हर कोई अपनी-अपनी लाइफ स्टोरी का हीरो और हीरोईन ही तो होता है। हमारी पूरी जिन्दगी एक फिल्म की तरह है, जिसमें हम हीरो होते हैं, और हर इंसान एक एक्स्ट्रा।

तो आइए जानते है वो कौनसी बातें हैं जिन्हें जानकर हम सभी कम पैसे में भी एक ग्लैमरस लाइफ लीड कर सकते हैं। ग्लैमर में, और ग्लैमरस होने में, कोई बुराई नहीं।

ग्लैमरस बनने के 5 तरीके

1) फिट रहिए, हिट रहिए

क्या आपने अपनी ग्लैमर फेंटेंसी (कल्पना) में कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा हैं जो बहुत ओवरवेट, मोटा, एकदम हड्डी (दुबला), बीमार, हांफता/खांसता हुआ है? नहीं ना? तो फिर एक ग्लैमरस लाइफ जीने की पहली कंडीशन है कि आपको फिट होना चाहिए। ना बहुत मोटा, न अधिक दुबला, और किसी भी प्रकार की बीमारी से दूर।

ध्यान रखें, वैसे भी आपका स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी संपत्ति है। यदि आप दूसरों की मदद भी करना चाहते हैं तो उसके लिए पहले आपको फिट होना जरूरी है।

इसलिए खान-पान का ध्यान रखें, हेल्दी चीजें जैसे फल, सलाद, विटामिन/प्रोटीन/फाइबर से भरपूर चीजें खाएं। केवल ‘फैट’ बढ़ाने वाली चीजों जैसे ‘जंक फूड’ से बचे, किसी भी प्रकार का नशा ना करें।

प्रॉपर नींद ले और दिनभर में कुछ समय एक्सरसाइज के लिए निकाले। एक्सरसाइज के लिए हर महीने महंगे जिम की फीस देना भी जरूरी नहीं है। पैदल चलें या दौड़ने जाएं।

2) एटिकेट एंड मैनर्स

ग्लैमरस दिखने और महसूस करने में एटिकेट और मैनर्स का बहुत बड़ा रोल है।

एटिकेट्स और मैनर्स आपकी पर्सनेलिटी में एक तरह का शहरीपन या सर्वदेशीयता जोड़ देते हैं। एटिकेट्स और मैनर्स से यहां मेरा अर्थ केवल पश्चिमी सभ्यता के एटिकेट और मैनर्स से नहीं है।

विभिन्न संस्कृतियों में खाने-पीने से लेकर, कपडे पहनने, बात करने, चलने आदि सभी चीजों के लिए कुछ स्पेशल प्रावधानों का उल्लेख हैं जिनमें से कईयों का लॉजिकल आधार हैं, उनके बारे में जाने और अपनी जरूरतों और प्रेक्टिकलिटी के आधार पर अपने जीवन में उतारें।

उदाहरण: ‘मराठी थाली’ परोसने का एक सेट तरीका है जैसे ‘रोटी को चार टुकड़े करके परोसना’ या ‘चावल को कटोरी से आकार देकर’ परोसना, जिसका उद्धेश्य खाना, खाना आसान बनाना और थाली को सुन्दर दिखाना हो सकता है।

3) ऑर्गेनाइज्ड रहिए

जरा ऐसे व्यक्ति की कल्पना कीजिए जो हर वक्त अपनी जरूरत की चीजों को ढूंढता ही रहता है, इमरजेंसी का वक्त हो या नहीं … इस कारण वह व्यक्ति हमेशा ‘परेशान’ दिखेगा। क्या ऐसा व्यक्ति ग्लैमरस हो सकता है?

इसलिए ऑर्गेनाइज्ड होना, ग्लैमरस दिखने का एक बहुत बड़ा हिस्सा है।

घर हो काम करने की जगह आपको को अपने काम का सामान कहां मिलेगा यह पता होना चाहिए और सामान वहां मिलना चाहिए। ऐसा होना सुन्दर है। तो ऑर्गेनाइज्ड रहिए।

आजकल पश्चिम में मिनिमलिज्म (minimalism) का बड़ा ट्रेंड है, कई इंडियंस तो खैर कल्चरल और धार्मिक कारणों से नेच्युरली मिनिमलिस्टिक होते हैं।

मिनिमलिज्म का अर्थ है अपने घर और कार्यस्थल पर अपने आस-पास केवल काम में आने वाली उपयोगी वस्तुओं को ही रखना। अन्य वस्तुएं जो आपके काम नहीं आ रही है उन्हें उस वक्त के लिए संभाल कर निश्चित स्थान पर रख देना जब वे काम आएंगी या फिर डोनेट कर देना।

4) एस्थेटिक सेन्स (सुंदरता की पहचान का भाव) डेवलप करें

कहते हैं सुंदरता देखने वाले की नजरों में होती है, सही भी है। जापान की वाबी-साबी फिलोसोफी इसी पर आधारित है। फिर भी ‘सुंदरता’ का अपना विज्ञान होता है।

उदाहरण के लिए क्या आपने ‘केयरफुल केयरलेसनेस’ के बारे में सुना है? अर्थात जानबूझकर कुछ चीजों को ‘अनपरफेक्ट’ छोड़ देना एक हाई क्वालिटी इंटेलिजेंस है।

अब आपको एक वेल ऑर्गेनाइज्ड गार्डन में जमीन पर बिखरी, हवा में उड़ती सुखी पत्तियों, युवाओं में फटी जीन्स पहनने का क्रेज, नायिका द्वारा केश विन्यास में एक ‘लट’ को गिरा देने आदि सभी का राज समझ में आ जाएगा!

केवल कपड़ों की बात करूं तो अपना स्वयं का ड्रेसिंग स्टाइल डेवलप करें, और यकीन मानिए इसके लिए महंगे कपड़े खरीदने की नहीं बल्कि सही मार्केट और डिजाइन रिसर्च की आवश्यकता है।

अलग-अलग फेब्रिक के कपड़ों का अपनी पर्सनेलिटी पर उपयोग कर के देखें। और यह सब करते वक्त अपने प्रोफेशन की आवश्यकताओं और लोकल ज्योग्राफी का ध्यान जरू रखें।

5) काम करने का अपना अनोखा तरीका विकसित करें

दरअसल इस तरह का चार्म और वार्म्थ, आप चाहे कुछ भी करते हो उसमें ढूंढ सकते हैं/या ला सकते हैं, तो क्यों आप ‘’चश्मा घुमाने’ की ‘रजनीकांत मेथड’ यूज करते हैं! अपना खुद का तरीका बनाइए, जो लोगो को अच्छा लगे।

और क्यों यह तरीका केवल ‘चश्मा घुमाने’ का हो सकता हैं क्यों नहीं ‘स्क्रू टाइट’ करने का, ‘बहस’ करने का या ‘कुकिंग’ का नहीं हो सकता?

वास्तव में ऐसे तरीके ‘डेवलप करने’ के लिए आपको अपने क्राफ्ट और स्किल्स में बहुत दक्ष होना पड़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *