रिमोट वोटिंग सिस्टम …?

रिमोट वोटिंग सिस्टम से क्या BJP को फायदा होगा:30 करोड़ वोटर, बदल सकते हैं किसी चुनाव का रुख; कांग्रेस कर रही विरोध

 30 करोड़ वोटर्स को प्रभावित करने वाली रिमोट वोटिंग मशीन और क्या BJP को इसका चुनावी फायदा हो सकता है?

देश में रिमोट वोटिंग सिस्टम की जरूरत क्यों है?

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान देश में कुल 91 करोड़ मतदाता थे। इनमें 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया। चुनाव आयोग का कहना है कि इनमें वे लोग शामिल हैं, जो दूसरे राज्यों में नौकरी कर रहे हैं या प्रवासी मजदूर हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में लगभग 45.36 करोड़ लोग अपना घर और शहर छोड़कर दूसरे राज्यों में रह रहे हैं यानी वे प्रवासी हैं। यह देश की आबादी का 37% है। यह संख्या समय के साथ बढ़ी है। इसी को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग सिस्टम लेकर आया है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, ‘आबादी का एक बड़ा हिस्सा जरूरी काम के चलते या यात्रा की वजहों से अपना वोट नहीं दे पाता है। यह चुनाव आयोग के कोई मतदाता पीछे नहीं छूटे के टारगेट के खिलाफ है। इसलिए RVM तैयार किया गया है।’

रिमोट वोटिंग मशीन क्या है और इसका आइडिया कैसे आया?

प्रवासियों के वोटिंग के इश्यू को समझने के लिए चुनाव आयोग ने 2016 में कमेटी ऑफ ऑफिसर्स ऑन डोमेस्टिक माइग्रेंट्स बनाई थी। कमेटी ने 2016 के अंत में प्रवासियों के लिए इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, अर्ली वोटिंग और पोस्टल बैलट से वोटिंग का सुझाव दिया था।

हालांकि, इन सभी आइडिया में वोट की गोपनीयता की कमी थी। साथ ही यह कम पढ़े लिखे लोगों के लिए यह फायदेमंद नहीं था। ऐसे में चुनाव आयोग ने सभी आइडिया को खारिज कर दिया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने इसका टेक्निकल सॉल्यूशन RVM सिस्टम के जरिए निकाला। यह वोटर्स को सुरक्षित और कंट्रोल्ड एन्वायर्नमेंट में वोटिंग का मौका देता है।

इस सिस्टम की मदद से घर से दूर यानी दूसरे राज्य या शहर में रहने वाले वोटर्स भी मतदान कर सकेंगे। इसके लिए उन्हें अपने शहर या गांव जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वोटर जिस शहर में रह रहा है, उसे वहीं बनाए गए रिमोट वोटिंग स्पॉट पर जाना होगा।

रिमोट वोटिंग सिस्टम के जरिए कैसे दे सकेंगे वोट?

मान लीजिए वैभव मध्य प्रदेश के रीवा का रहने वाला है और राजस्थान के जयपुर में नौकरी करता है। मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान वैभव जयपुर में ही बने स्पेशल वोटिंग बूथ पर अपनी विधानसभा के लिए वोट डाल सकेगा। वोटिंग की ये प्रक्रिया 4 स्टेप में होगी…

  • बूथ पर पीठासीन अधिकारी वोटर की ID को वेरिफाई करने के बाद उसके कॉन्स्टीट्यूएंसी कार्ड को स्कैन करेंगे।
  • इसके बाद पब्लिक डिस्प्ले यूनिट यानी एक बड़ी स्क्रीन पर वोटर की कॉन्स्टीट्यूएंसी का नाम दिखाई देने लगेगा।
  • वोटर अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करेगा और कॉन्स्टीट्यूएंसी नंबर, राज्य कोड और कैंडिडेट नंबर के साथ यह वोट दर्ज हो जाएगा।
  • VVPAT स्लिप में स्टेट कोड और कॉन्स्टीट्यूएंसी कोड के साथ ही कैंडिडेट का नाम, सिंबल और सीरियल नंबर भी आता है।

रिमोट वोटिंग सिस्टम का विरोध क्यों कर रही हैं कांग्रेस समेत 16 पार्टियां?

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का कहना है कि, ‘RVM सिस्टम अभी बहुत अधूरा है। इसमें भारी राजनीतिक समस्याएं हैं। प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा और संख्या भी साफ नहीं है। ऐसे में हम RVM का समर्थन नहीं करते।’

रिमोट वोटिंग सिस्टम पर तीन बड़े सवाल उठ रहे हैं…

1. घरेलू प्रवासी की परिभाषा क्या होगी? क्या सभी घरेलू प्रवासी मतदान कर सकेंगे?

2. जब टेक्नोलॉजी बेस्ड वोटिंग के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं तो RVM लाना कितना सही होगा?

3. रिमोट वोटिंग लोकेशन पर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट यानी चुनावी आचार संहिता कैसे लागू होगी?

…अब आखिर में वो सवाल कि क्या रिमोट वोटिंग सिस्टम का फायदा BJP को मिलेगा?

  • 2009 के वोटिंग की तुलना में 2014 का मतदान प्रतिशत 8% ज्यादा था। लोकनीति CSDS ने निर्वाचन क्षेत्र स्तर के वोट का एनालिसिस किया। इसमें पता चला कि मतदान बढ़ने से NDA की सीट जीतने की दर भी बढ़ी है। यानी BJP और उसके सहयोगियों की उस सीट पर जीत की संभावना अधिक थी, जहां पर वोटिंग ज्यादा हुई। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा कि रिमोट वोटिंग सिस्टम के लागू होने से यकीनन वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ेगा, लेकिन इसका फायदा किसे होगा ये अभी कहना मुश्किल है।
  • 30 करोड़ रिमोट वोटर जुड़ने से चुनावी मुद्दे भी उनके इर्द-गिर्द होंगे। ऐसे में बड़ी पार्टियों और अमीर कैंडिडेट, जो निर्वाचन क्षेत्र में और उसके बाहर जमकर प्रचार कर सकते हैं, उन्हें फायदा मिल सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि रिसोर्स के मामले में फिलहाल बीजेपी सबसे आगे है।
  • CSDS से जुड़े पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार के मुताबिक, ‘जिस राजनीतिक दल के सत्ता में रहते हुए रिमोट वोटिंग सिस्टम लागू होगा, उसे इसका फायदा जरूर मिलेगा। इसके पीछे वजह यह है कि सूरत, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों को लगेगा कि इस सरकार ने ही उन्हें ये अधिकार दिया है।’
  • 1988 में राजीव गांधी सरकार ने मतदान की उम्र सीमा 21 साल से घटाकर 18 साल कर दी थी। हालांकि, चुनाव नतीजों पर इसका कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ा। 1984 में 426 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 1989 के चुनावों में 195 सीटों पर ही सिमट गई थी।

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