जो कर रहे हों मन लगाकर करें, रास्ते खुद खुल जाएंगे

क्या आप कभी साड़ी की दुकान में गए हैं? घुसते ही सेल्समैन आपका स्वागत करते हुए साड़ी के बंडल उठा लेता है। आइए, बैठिए… करते-करते, दो-चार-आठ आइटम खोलकर भी दिखा देता है। आप मना करते हैं, मगर वो हंसकर कहता है, देखने का कोई टैक्स नहीं। और जैसे ही आपका हाथ किसी एक पीस पर रुकता है वो भांप लेता है- मैडम का टेस्ट क्या है!

ना चाहते हुए भी आप उस माहौल में ऐसे घुल-मिल जाते हैं कि एक साड़ी लेने आए थे, तीन खरीदकर निकलते हैं। चलो, ये वाली कमला बहनजी को गिफ्ट कर दूंगी, वो वाली पिंकी की शादी में काम आएगी। सेल्समैन कहता है, जरा मैडम के लिए चाय लेकर आओ। आप कम शकर वाली लेते हो ना? अब दूसरी ओर आप मॉल की किसी भी बड़ी दुकान में चले जाओ। वहां दूर-दूर तक मदद करने वाला कोई नहीं।

अगर आप को कुछ पसंद आ गया तो भाई दुकान की किस्मत अच्छी। जिनको सेल्समैन के रोल की सैलेरी मिल रही है, उनका कोई योगदान नहीं। जब इस बात पर सवाल उठेगा तो झींककर कहीं और नौकरी ले लेंगे। वैसे उनकी भी कई शिकायतें होंगी, जैसे कि मुझे अपनी पसंद का जॉब नहीं मिला, अगर वो मिलता तब आप मेरी परफॉर्मेंस देखते। भाई, इसी नौकरी में अगर आप मन लगाकर काम करते तो खुद-ब-खुद तरक्की का रास्ता खुलता जाता।

मगर जब खयाली पुलाव पकाने में मानसिक ईंधन जल रहा है तो सामने रखी दाल-चावल वाली थाली की कदर कहां? आज एमबीए के बाद भी आम तौर पर आपको सेल्स की ही नौकरी मिलेगी। उसे कोई झिलमिलाता-सा डेज़िग्नेशन दे देते हैं, जैसे बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव। मगर काम तो वही है। और कहने में शरम आती है। हां, ये फील्ड जॉब है, बाहर घूमना पड़ता है, लोगों से मिलना पड़ता है।

मगर मार्केट का पल्स पकड़ने के लिए बहुत जरूरी है। हिंदुस्तान लीवर में आईआईएम ग्रैजुएट को भी पहला एक्सपोजर ये ही दिया जाता है कि डेढ़ साल तक आप दूर-दराज के किसी इलाके में सेल्स का रोल निभाओ। ऐसे ही एक नौजवान थे, जमनालाल बजाज ग्रैजुएट नितिन परांजपे। यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र में जब वो एरिया सेल्स मैनेजर बने तो दीवारों पर लाई से पोस्टर भी चिपकाए, बैलगाड़ी का सफर भी किया।

जब किसी कस्बे में होटल बदबूदार मिली तो साबुन-डिटर्जेंट वाली वैन में ही रात गुजार ली। बयालीस साल की उम्र में जब नितिन परांजपे एचयूएल के यंगेस्ट सीईओ बने तो उन्हें पूछा गया, आपने कॅरियर किस तरह प्लान किया। उनका जवाब था, कोई प्लान नहीं। जो भी काम मुझे दिया गया, उस पर मैंने सौ प्रतिशत ध्यान दिया। ये नियम हर पेशे में लागू होता है। मान लीजिए, आप टैक्सी चलाते हैं।

अगर रास्ते भर आप फोन पर अपनी पत्नी से लम्बी बातें कर रहे हो, पैसेंजर चिढ़ेगा जरूर। ना आपको टिप मिलेगी, ना आगे कोई अपॉर्चूनिटी। जैसे कि उन्हें रविवार को पुणे जाना है, टैक्सी की जरूरत है, मगर आपको बुलाने का कोई इरादा नहीं बनेगा। मनाली से स्पीति वैली के रास्ते में बस एक ढाबे पर रुकती है। बहुत साधारण है, मगर उसके आलू पराठे कुछ ऐसे कि रोम-रोम खिल उठता है। एक बूढ़े दम्पती वो ढाबा चलाते हैं।

किसी ने उनसे पूछा कि इस उम्र में आप इतनी ठंड वाली जगह पर क्यूं अटके हुए हैं। अंकलजी ने कहा, जब थके-हारे लोगों के चेहरे की मुस्कान देखता हूं, सुकून मिलता है। सुबह छह बजे, बिना नाश्ता किए हम मनाली से निकले हुए थे। उस दिन वो अंकल और आंटी मेरे लिए भगवान से कम नहीं थे। इस नजर से देखा जाए तो कोई काम छोटा या बड़ा नहीं। दूसरों को हम बदल नहीं सकते, मगर अपनी जिंदगी में सही एटिट्यूड जरूर अपना सकते हैं। एक मिसाल बन सकते हैं।

सबसे पहले अपनी फोन की सेटिंग इस तरह रखें कि ऑफिस ऑवर्स में सोशल मीडिया आप ना देख पाएं। घर पर भी बता दें कि सिर्फ इमरजेंसी में फोन से कॉन्टैक्ट करें। यही नियम अपने निजी जीवन में अपनाइए। खाना खाते वक्त खाने पर फोकस। बच्चों के साथ खेल रहे हैं तो उसका आनंद लें। ना कि किचन के काम में मन उलझाएं। जो भी है बस यही इक पल है। पल-पल मस्ती से जीया, वो जीवन सफल है।

आप जिस नौकरी में हों, उसी में मन लगाकर काम करें तो तरक्की का रास्ता खुलता जाता है। मगर जब खयाली पुलाव पकाने में ही मानसिक ईंधन जल रहा है तो सामने रखे दाल-चावल की कदर कहां?

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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